अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है (III) परमेश्वर का अधिकार (II)" (भाग सात)


अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है (III) परमेश्वर का अधिकार (II)" (भाग सात)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "इसे साधारण रूप से कहें, तो परमेश्वर के अधिकार के अधीन प्रत्येक व्यक्ति सक्रियता से या निष्क्रियता से उसकी संप्रभुता एवं इंतज़ामों को स्वीकार करता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस प्रकार अपने जीवन के पथक्रम में संघर्ष करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह कितने टेढ़े-मेढ़े पथों पर चलता है, क्योंकि अंत में वह नियति की परिक्रमा-पथ पर वापस लौट आएगा जिसे सृष्टिकर्ता ने उस पुरुष या स्त्री के लिए चिन्हित किया है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार की अजेयता है, और वह रीति है जिसके तहत उसका अधिकार विश्व पर नियन्त्रण एवं शासन करता है। …... परमेश्वर ही मनुष्य का एकमात्र प्रभु है, परमेश्वर ही मानव की नियति का एकमात्र स्वामी है, और इस प्रकार मनुष्य के लिए अपनी स्वयं की नियति का नियन्त्रण करना असंभव है, और उससे बढ़कर होना असंभव है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसी व्यक्ति की योग्यताएं कितनी ऊंची हैं, वह दूसरों की नियति को प्रभावित नहीं कर सकता है, आयोजित, व्यवस्थित, नियन्त्रित, या परिवर्तित तो बिलकुल नहीं कर सकता है। केवल स्वयं अद्वितीय परमेश्वर ही मनुष्य के लिए सभी हालातों को नियन्त्रित करता है, क्योंकि केवल वह ही अद्वितीय अधिकार धारण करता है जो मानव की नियति के ऊपर संप्रभुता रखता है; और इस प्रकार केवल सृष्टिकर्ता ही मनुष्य का अद्वितीय स्वामी है।"

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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है (III) परमेश्वर का अधिकार (II)" (भाग 1); अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है (III) परमेश्वर का अधिकार (II)" (भाग 2)

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