बीमारी के कारण आशीर्वाद मिला — परमेश्वर के प्रेम पर निबंध

दुजुआन जापान
मेरा जन्म एक गांव के गरीब परिवार में हुआ था। जब मैं बच्ची थी, तो मेरी जिंदगी कठिनाइयों से भरी थी और दूसरे मुझे तुच्छ समझते थे। कभी—कभी तो मुझे यह भी पता नहीं होता था कि मुझे आगे भोजन मिल पाएगा या नहीं, स्नैक्स और खिलौनों की तो बात ही दूर थी। चूंकि मेरा परिवार गरीब था, इसलिए जब मैं छोटी था, तो मैं वे कपड़े पहनती थी जो मेरी बड़ी बहन पहले पहन चुकी होती थी। उसके कपड़े आमतौर पर मुझे बड़े हुआ करते थे। इस वजह से, जब मैं स्कूल जाती थी, तो अन्य बच्चे मुझ पर हंसा करते थे और मेरे साथ नहीं खेलते थे। मेरा बचपन काफी कठिनाईयों से भरा था। उसी समय, मैंने खुद से कह दिया था: "मैं बड़ी होकर कुछ बनकर दिखाउंगी और ढेर सारा धन कमाउंगी। मैं दूसरों को फिर से खुद को नीचा नहीं दिखाने दूंगी।" चूंकि मेरे परिवार के पास बिल्कुल भी पैसे नहीं थे, इसलिए जूनियर हाई स्कूल से पहले ही मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैं दवा के एक कारखाने में काम करने के लिए काउंटी टाउन चली गई। ज्यादा धन कमाने के लिए, मैं अक्सर ही रात 9 या 10 बजे तक काम करती रहती थी। हालांकि, मैं जो धन कमाती थी वह मेरे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काफी नहीं था। उसके बाद, जब मैंने सुना कि मैं एक महीने तक काम करके जितना धन कमा पाती हूं, उतना धन मेरी बहन सब्जियां बेचकर पांच दिन में कमा लेती है, तो मैंने दवा कारखाने की नौकरी छोड़ दी और सब्जियां बेचने लगी। कुछ ही समय के बाद, मुझे पता चला कि मैं फल बेचकर और ज्यादा धन कमा सकती हूं, तो मैंने फल बेचने का व्यापार शुरू करने का फैसला लिया। मेरी शादी होने के बाद, अपने प​ति के साथ मिलकर हमने रेस्टोरेंट का व्यापार शुरू किया। मैंने सोचा कि अब मेरे पास रेस्टोरेंट है, तो और ज्यादा कमा पाउंगी। एक बार मैं पर्याप्त आय कमा सकूं, तो स्वाभाविक रूप से, दूसरों की प्रशंसा और सम्मान भी पा सकूंगी। दूसरे लोग भी मेरा आदर करना शुरू कर देंगे और इसी के साथ ही, मैं बेहतर जिंदगी जीने में सक्षम हो जाउंगी। हालांकि, कुछ समय तक व्यापार करने के बाद, मैंने पाया कि मैं असल में बहुत ज्यादा धन नहीं कमा पा रही थी। मैं चिड़चिड़ी होने लगी थी। आखिर मैं कब ऐसी जिंदगी जी पाउंगी, जिसकी लोग प्रशंसा करें?

2008 में, इत्तेफाक से, मुझे एक दोस्त ने कहा कि जापान में ए​क दिन काम करना चीन में 10 दिन काम करने के बराबर था। जब मुझे यह समाचार मिला, तो मैं बहुत खुश हो गई। मुझे लगा कि आखिरकार, मुझे धन कमाने का एक बेहतरीन मौका मिल गया था। मैंने सोचा कि मुझे थोड़े का त्याग करके ज्यादा लाभ कमाना चाहिए। मुझे बस जापान जाने की जरूरत थी ओर मैं अपने खर्चों की क्षतिपूर्ति करने में सक्षम हो जाती। अपने सपनों को सच करने के लिए, मेरे पति व मैंने यह परवाह नहीं की कि एजेंट की फीस कितनी होगी। हमने तुरंत ही जापान जाने का निर्णय लिया। जापान पहुंचने के बाद, हम बहुत जल्दी एक नौकरी पाने में सक्षम हुए। हर रोज मेरे पति व मैं 13 या 14 घंटे काम किया करते थे। काम का तनाव भी बहुत ज़्यादा था। मैं पूरे दिन में थक जाया करती थी। काम करने के बाद, मुझे बस लेटकर आराम करने की इच्छा होती थी। मैं खाना तक नहीं खाना चाहती थी। मैंने पाया कि इतनी तेज भागती जीवनशैली को सहन करना कठिन था। हालांकि, जब मैंने उस धन के बारे में सोचा जो कुछ सालों तक संघर्ष करने के बाद कमा लूंगी, तो मैंने खुद को प्रोत्साहित किया: "भले ही यह आज कठिन व थकावट भरा हो, लेकिन बाद में, मेरी जिंदगी बेहतरीन होगी। मुझे आगे बढ़ना चाहिए।" परिणामस्वरूप, हर रोज मैं कड़ी से कड़ी मेहनत करने लगी, जैसे कि मैं धन कमाने वाली कोई मशीन थी। 2015 तक, मैंने भारी कार्यभार के नीचे दब गई। मैं जांच कराने के लिए अस्पताल गई और चिकित्सक ने मुझे बताया कि मुझे सर्पी चक्रिका (हर्निऐटेड डिस्क) हो गई थी और यह मेरी नस को दबा रही थी। मैं जैसे काम किया करती थी अगर मैंने वैसे ही काम करना जारी रखा, तो मैं अंतत: शय्याग्रस्त व अपना खुद का ख्याल रखने में असक्षम हो जाउंगी। इस खबर ने मुझ पर आकाश से बिजली गिरने जैसा वार किया। मैं तुरंत ही बेहद कमजोर हो गई थी। मेरी जिंदगी तभी तो ​थोड़ी बेहतर होना शुरू हुई थी, और मैं अपने सपनों के और नजदीक पहुंच रही थी। मैंने कभी सोचा भी नहीं रहा होगा कि मैं बीमार पड़ जाउंगी। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी। मैंने सोचा: "मैं अब भी जवान हूं। मुझे बस हिम्मत बांधकर इससे निकलने की जरूरत है। अगर मैंने अभी और धन नहीं कमाया, तो मैं घर जाउंगी तो मेरे पास ढेर सारा धन नहीं होगा। क्या यह और भी शर्मिंदगी की बात नहीं होगी?" परिणामस्वरूप, मैंने हिम्मत बांधी और अपने कमजोर शरीर को वापस काम पर ले गई। हालांकि, कुछ दिनों के बाद मैं इतनी कमजोर गई थी कि मैं वाकई उठ नहीं पा रही थी।
मैं बहुत बेबस महसूस कर रही थी क्योंकि मैं अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी थी और मेरी देखभाल के लिए कोई भी नहीं था। मैं ऐसी स्थिति में कैसे फंस गई? क्या मैं वाकई इस बिस्तर से उठने में सक्षम हो पाउंगी? मैं वाकई चाहती थी कि कोई मेरे पास हो। दुर्भाग्य से, मेरे पति काम पर थे और मेरा बेटा स्कूल में था। मेरे बॉस व मेरे सहकर्मियों का ध्यान केवल लाभ पर था। उन्हें मूलरूप से मेरी​ बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। वह वार्ड हर तरह के बीमार लोगों से भरा हुआ था। मैं गहराई से सोचने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था: लोग किस उद्देश्य के लिए जीते हैं? व्यक्ति कैसे अर्थपूर्ण जिंदगी जी सकता है? क्या धन वाकई खुशियां खरीद सकता है? मैं सोचने लगी कि 30 साल तक संघर्ष करने के बाद मैंने क्या पाया। मैंने दवा के कारखाने में काम किया, फल बेचे, रेस्टोरेंट चलाया और काम करने के लिए जापान आ गई। भले ही, इतने सालों में काफी कुछ धन कमा लिया था, फिर भी, मैं उदासी से घिरी हुई थी। मैंने तो यह सोच लिया कि जापान पहुंचने के बाद मैं अपने सपनों को बहुत ही जल्दी सच कर दिखाउंगी। जापान में कुछ साल रहने के बाद, जब मैं चीन वापस लौटूंगी, तो मैं एक अमीर व्यक्ति के तौर पर नई जिंदगी शुरू करने में सक्षम हो पाउंगी और दूसरे लोग मेरी प्रशंसा करेंगे। हालांकि, अब मैं शय्याग्रस्त थी और इस संभावना का भी सामना कर रही थी कि अब मैं खुद का ख्याल नहीं रख पाउंगी और दुखदायी रूप से मुझे अपनी बाकी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही बितानी होगी। ... ये बात सोचते हुए, मुझे इस बात पर पछतावा होने लगा था कि मैंने धन कमाने और जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए अपनी खुद की जिंदगी को भी दांव पर लगा दिया था। मैं जितना इसके बारे में सोचती थी, उतने ही ज्यादा आंसू मेरे आंखों से निकला करते थे। इस व्यथा में, मैं रोने के अलावा कुछ और कर भी नहीं सकती थी: परमेश्वर! मुझे बचा लीजिए! जिंदगी इतनी क्रूर क्यों है?
जब मैं दर्द में और बिल्कुल असहाय थी, तभी मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उद्धार मिला और मेरी 'बीमारी' मेरा 'आशीर्वाद' बन गई। कितने इत्तेफाक की बात है कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया की तीन बहनों को जानती थी। चूंकि उन्होंने मुझसे संवाद किया था, इसलिए मैं समझ पाई कि मेरी बीमारी कहां से आ रही थी और मैं जान गई थी कि मेरे कष्ट कहां से आ रहे थे। ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने पूर्व में कभी विश्वास नहीं रखा था, मुझे किसी तरह अब एक जीवन दिशा मिली थी और मैं जान गई थी कि मुझे किसके लिए ​जिंदगी जीना चाहिए। उस बहन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एक अवतरण बताया: "जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापे का जो दर्द मनुष्य के पूरे जीवन भर रहता है, वह कहाँ से आया? सबसे पहले किस कारण से लोगों को ये चीज़ें हुईं? जब मनुष्य की सृष्टि हुई, तब क्या वह इन चीज़ों से पीड़ित था? नहीं था, है ना? तो फिर ये चीज़ें कहाँ से आयीं? ये चीज़ें शैतान के प्रलोभन के बाद आयीं, मनुष्य के शरीर की विकृति के बाद आयीं। शरीर का दर्द, उसकी परेशानियां और खालीपन, और संसार की अत्यधिक दुर्दशा, शैतान के मनुष्य को भ्रष्ट करने के बाद उस पर किये गए अत्यचार से आयीं। तब मनुष्य और अधिक विकृत होता गया, उसकी बीमारियाँ बढ़ती गयीं, उसकी पीड़ा और अधिक गहन होती गयी, और मनुष्य को खालीपन का, संसार में जीते रहने की असमर्थता और त्रासदी का एहसास बढ़ता ही गया। संसार के लिए मनुष्य की आशा कम से कमतर होती गयी, और ये वे सारी चीज़ें हैं जो शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट कर देने के बाद आयीं।" ("परमेश्वर द्वारा संसार की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ" मसीह की बातचीतों के अभिलेख में) उनमें से एक बहन ने मुझे बताया कि आरंभ में जब मनुष्य को बनाया गया था, तो मनुष्य को जन्म, मृत्यु, बीमारी व वृद्धावस्था जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता था, न ही उसे थकान व तनाव होता था। इसके स्थान पर, वह अदन के बाग में एक निश्चिंत जिंदगी जीता था, उन सभी अच्छी चीजों का आनंद लेते हुए जो मनुष्य को परमेश्वर ने दी थी। हालांकि, जब शैतान ने मानवता को ललचा दिया व भ्रष्ट कर दिया, तो मानवता ने परमेश्वर को धोखा दे दिया और उनकी आज्ञा मानना बंद कर दी। परमेश्वर ने मनुष्य का ध्यान रखना, सुर​क्षा करना व उसे आशीर्वाद देना बंद कर दिया और वह शैतान के प्रभाव में रहने लगा। वह शैतान के नियमों के अनुसार जीने लगा। उसने प्रसिद्धि, ओहदे व धन के लिए जीना शुरू कर दिया था। फिर हम इंसानों ने एक—दूसरे के विरुद्ध षडयंत्र करना शुरू कर दिया। हम एक—दूसरे से भयंकर रूप से लड़ने लगें। हर एक—दूसरे को धोखा दिया, और एक—दूसरे की हत्या भी की। यहीं से हमारी बीमारी, हमारी जिंदगी में कठिनाइयां, और हमारे दिलों में दर्द व कड़वाहट आने लगी थी। इस दर्द व आपदा के कारण ही हर व्यक्ति यह महसूस करता है कि धरती में जिंदगी में बहुत ही पीड़ादायक, थकाऊ व कठिन है। शैतान द्वारा आदमी को भ्रष्ट करने के बाद से ही ये सभी चीजें उदित हुईं। यह शैतान ही है जो हमें नुकसान पहुंचाता है। उस बहन ने मुझसे जो बातें कहीं उसे सुनने के बाद, मैं यह समझ गई थी कि: आरंभ में, हम परमेश्वर के आशीर्वाद में जी रहे थे। हमारी जिंदगी में खुशियां थी और कोई बीमारी या संकट नहीं था। जब शैतान ने हमें भ्रष्ट कर दिया, उसके बाद से हमने परमेश्वर का संरक्षण खो दिया और हम बीमारियों से घिरने लगे व हमने हर तरह की पीड़ाओं को सहना शुरू कर दिया। उसी पल, मुझे असल में यह आभास हुआ कि शैतान कितना घिनौना था। मैं यह भी समझ गई थी कि इतने सालों में मैंने जो भी पीड़ाएं सही थी, वह उस शैतान के कारण ही हुई थी।
उस बहन ने मुझसे संवाद करना जारी रखा: "परमेश्वर मानवता को लगातार भ्रष्ट होते हुए और शैतान के हाथों नुकसान सहते हुए नहीं देख सकते हैं। उन्होंने एक बार फिर से देह धरी है, वे मनुष्यों के बीच जीते हैं और हमें अपने भ्रष्टाचार से बचाने के लिए सत्य को व्यक्त भी करते हैं। जब तक हम परमेश्वर को सुनते रहेंगे और परमेश्वर के वचनों में निहित सच को समझते रहेंगे, तब तक हम उन सभी विधियों व तरीकों को स्पष्ट रूप से देखने व उनमें अंतर करने में सक्षम होते रहेंगे जिनसे शैतान मानवता को भ्रष्ट करता है। हम शैतान की दुष्ट प्रवृत्ति को समझ पाएंगे और हमारे पास क्षमता होगी कि हम शैतान को दूर भगाएं, शैतान के नुकसान से पीछा छुड़ाएं, परमेश्वर की शरण में आएं, परमेश्वर का उद्धार पाएं और अंत में, परमेश्वर द्वारा एक सुंदर मंजिल में ले जाए जाएं।" जब मैंने यह सुना कि परमेश्वर मानवता को बचाने के लिए खुद आए थे, तो मैं बहुत भावुक हो गई। चूंकि मैं यह नहीं चाहती थी कि शैतान मुझे और नुकसान पहुंचाए, इसलिए मैंने अपने बहनों को मेरे दर्द व संदेह के बारे में बताया: "मैं बस समझ नहीं पाती हूं। ऐसा क्यों ​है कि मुझे दूसरों से बेहतर बनने के लिए इतना दर्द सहना पड़ा है? क्या यह सब भी शैतान के कारण ही हो सकता है?" उस बहन ने मेरे लिए परमेश्वर के कुछ और वचन पढ़ें: "कोई भी महान या प्रसिद्ध व्यक्ति, और वास्तव में सभी लोग, जिस किसी चीज़ का वे जीवन में अनुसरण करते हैं वह केवल इन दो शब्दों से ही जुड़ा होता हैः "प्रसिद्धि" एवं "लाभ"। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ।) लोग सोचते हैं कि जब एक बार उनके पास प्रसिद्धि एवं लाभ आ जाता है, तो वे ऊँचे रुतबे एवं अपार धन-सम्पत्ति का आनन्द लेने के लिए, और जीवन का आनन्द लेने के लिए उनका लाभ उठा सकते हैं। जब एक बार उनके पास प्रसिद्धि एवं लाभ आ जाता है, तो वे देह के सुख विलास की अपनी खोज में और अनैतिक आनन्द में उनका लाभ उठा सकते हैं। लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीरों, मनों, वह सब जो उनके पास है, अपने भविष्य एवं अपनी नियति को शैतान के हाथों में दे देते हैं जिससे उस प्रसिद्धि एवं लाभ को अर्जित कर सकें जिनकी उन्होंने लालसा की है। लोग इसे एक पल की हिचकिचाहट के बगैर सदैव करते हैं, और उस आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान होकर ऐसा करते हैं कि उन्हें सब कुछ पुनः प्राप्त करना है। क्या लोगों के पास अभी भी स्वयं पर कोई नियन्त्रण हो सकता है जब एक बार वे शैतान की ओर इस प्रकार से चले जाते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं? कदापि नहीं। उन्हें पूरी तरह से और सम्पूर्ण रीति से शैतान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। साथ ही वे पूरी तरह से और सम्पूर्ण रीति से अपने आप को उस दलदल से आज़ाद कराने में असमर्थ हैं जिसके भीतर वे धंस गए हैं।… अतः शैतान तब तक मनुष्य के विचारों को नियन्त्रित करने के लिए प्रसिद्धि एवं लाभ का इस्तेमाल करता है जब तक वे पूरी तरह से यह नहीं सोच सकते हैं कि यह प्रसिद्धि एवं लाभ है। वे प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए कठिनाईयों को सहते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए जो कुछ उनके पास है उसका बलिदान करते हैं, और प्रसिद्धि एवं लाभ दोनों को बरकरार रखने एवं अर्जित करने के लिए वे किसी भी प्रकार का आंकलन करेंगे या कोई भी निर्णय लेंगे। इस रीति से, शैतान मनुष्य को अदृश्य बन्धनों से बांध देता है। इन बन्धनों को लोगों की देहों पर डाला जाता है, और उनके पास इन्हें उतार फेंकने की न तो सामर्थ होती है न ही साहस होता है। अतः लोग अनजाने में ही इन बन्धनों को सहते हुए बड़ी कठिनाई में भारी कदमों से नित्य आगे बढ़ते रहते हैं।" ("वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से  "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय VI" से)। परमेश्वर के वचनों के प्रकटन के कारण मुझे अचानक ही ज्ञान की रोशनी दिखाई दी। मैं तो उस व्यक्ति का एक आदर्श उदाहरण थी, जिसे शैतान ने गुलाम बनाया हुआ था, वह जिसने प्रसिद्धि व लाभ खोजते हुए खुद को ही बर्बाद कर लिया था। दूसरों से बेहतर बनने और ईर्ष्या करने योग्य धन कमाने के पीछे भागते हुए मैंने खुद को खो दिया था। मैं मूल रूप से धन कमाने वाली मशीन बन गई थी। प्रसिद्धि व सौभाग्य के लिए, मैंने अपनी खुद की सेहत की बलि भी चढ़ा दी थी। मैं निश्चित रूप से प्रसिद्धि व लाभ की गुलाम बन गई थी। जिंदगी में धन कमाने व ईर्ष्या की वस्तु बनने के दृष्टिकोण से निर्देशित, मैं अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कठिन परिश्रम किया जब तक कि मेरे शरीर ने मूल रूप से बस नहीं कह दिया। प्रसिद्धि व लाभ की इन इच्छाओं के कारण मैंने शारीरिक व भावनात्मक रूप से काफी पीड़ा सही थी। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को मुझे नहीं बताया गया होता, तो मुझे कभी पता ही नहीं चल पाता कि मैं जिन चीजों के पीछे भाग रही थी, वे गलत थीं। असल में, यह तो इंसान को कष्ट देने के शैतान के तरीकों में से एक तरीका था।
चूंकि वे बहनें अक्सर ही मुझसे मिलने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर संवाद करने के लिए आया करती थी, इसलिए धीरे—धीरे मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य पर और भी ज्यादा विश्वास करने लगी। इसके साथ ही, मैं उन विधियों व तरीकों को भी और बेहतर तरीके से समझने लगी थी जिनसे शैतान इंसानों को कष्ट देता है। इस दौरान, मैंने अपनी एक महिला सहकर्मी की स्थिति पर ध्यान दिया। धन कमाने के लिए, वह और उसका पति काम करने के लिए जापान आए थे। भले ही उन दोनों ने कुछ धन कमा लिया था, लेकिन उसके पति को कुछ शारीरिक समस्याएं आनी शुरू हो गई थी। उसके पास इलाज के लिए घर वापस जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। इसके बाद उसने पाया कि वह कैंसर के अंतिम चरण में है। उन्हें इसके बारे में पता चलने के बाद, वे धन कमाने के लिए जापान वापस नहीं आना चाहते थे। पूरा परिवार डर व दुख में जी रहा था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा: "लोग धन-दौलत एवं प्रसिद्धि का पीछा करते हुए अपनी ज़िन्दगियों को बिता देते हैं; वे इन तिनकों को मज़बूती से पकड़े रहते हैं, यह सोचते हुए कि वे उनके जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन है, मानों उन्हें प्राप्त करने के द्वारा वे निरन्तर जीवित रह सकते हैं, और अपने आपको मृत्यु से बचा सकते हैं। परन्तु जब वे मरने के करीब होते हैं केवल तभी उनको महसूस होता है कि ये चीज़ें उनसे कितनी दूर हैं, वे मृत्यु का सामना होने पर कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर सकते हैं, वे कितने अकेले एवं असहाय हैं, और सहायता के लिए कहीं नहीं जा सकते हैं। वे एहसास करते हैं कि जीवन को धन-दौलत एवं प्रसिद्धि से खरीदा नहीं जा सकता है, यह कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि कोई व्यक्ति कितना धनी है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उस पुरुष एवं स्त्री का पद कितना ऊंचा है, क्योंकि मृत्यु का सामना होने पर सभी लोग समान रूप से कंगाल एवं महत्वहीन होते हैं। वे एहसास करते हैं कि धन-दौलत जीवन को खरीद नहीं सकता है, यह कि प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, यह कि न धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है।" ("वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से  "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय III" से)। मेरी सहकर्मी के दुर्भाग्य ने मुझे और भी अहसास कराया कि जिंदगी अंतत: बहुत अनमोल है। इसी के साथ ही, मैं उन तरीकों को देख पाई जिनसे शैतान कई लोगों की जिंदगियों को नुकसान पहुंचाने के लिए 'प्रसिद्धि' व 'लाभ' का प्रयोग कर रहा था। उसी पल, मुझे अहसास हुआ कि मैं कितनी भाग्यशाली थी कि मैं अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को जानने में सक्षम हो पाईं थी। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ा होता, तो मैं शैतान के इंसानों को नुकसान पहुंचाने की सच्चाई को समझने में सक्षम नहीं हो पाती। जल्दी या देरी से, शैतान ने मुझे निगल लिया होता।
इसके बाद, कलीसिया की वे बहनें अक्सर ही मुझसे मिलने मेरे घर आने लगीं। चूंकि मैं अपने कूल्हें नहीं हिला पाती थी, इसलिए उन्होंने मेरी मसाज करके व मुझ पर कुछ चषकन करके मेरी मदद की। उन में से एक मेडिकली प्रशिक्षित बहन ने मुझे बताया कि अगर मैं एक निश्चित एक्यूपंक्चर बिंदु को दबाउं तो इससे मेरी हालत में आराम मिलेगा। उन्होंने पहल करते हुए मेरे घरेलू कामों में भी मेरी मदद की। उन्होंने इस तरह से मेरा ख्याल रखा जैसे कि वे मेरे परिवार का ही हिस्सा हों। विदेश में एक प्रवासी होने की वजह, इस दुनिया में मेरा कोई दोस्त नहीं था। उस दिन, मुझे वाकई महसूस हुआ कि इन बहनों ने मेरा जितना ध्यान रखा है उतना तो मेरे अपने रिश्तेदार भी नहीं रख पाते। मैंने बार—बार उनका धन्यवाद किया। हालांकि, मेरी बहनों ने मुझे बताया, "हजारों साल पहले, परमेश्वर ने हमें पूर्वनिर्धारित करके चुन लिया था। अब, उन्होंने अंत के दिनों में हमारे जन्म लेने और अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकारने हेतु हमारे लिए व्यवस्था की है। एक साथ, हम इस मार्ग पर चलते हैं। यह परमेश्वर का नियम है। बहुत समय पहले हम असल में एक ही परिवार थे। नियति से हम अलग हो गए थे और अब हमने एक—दूसरे को पा लिया है।" एक बार जब उन बहनों ने कहा, तो मैं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाई और अपनी आंखों से निकलते आंसुओं के साथ मैंने उन्हें गले लगा लिया। उस समय, मैंने अपनी बहनों के साथ ऐसी नजदीकी महसूस की जिसका वर्णन मैं नहीं कर सकती। मेरा दिल सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति और भी ज्यादा आभार व्यक्त करने लगा था।
अचेतन रूप से, मैं तेजी से बेहतर होने लगी थी। बीमारी की इस घटना के दर्द व कष्ट का अनुभव करने के बाद, मुझे यह समझ आ गया था कि मैं 'दूसरों से बेहतर बनने की भूख' को लेकर जिंदगी में शैतान के गलत दृष्टिकोण के नियंत्रण में थी। इसके साथ ही, मैंने अपने साथियों से भी दूर होना शुरू कर दिया था और अकेली जिंदगी जीने लगी थी ताकि लोग मेरी प्रशंसा करें या मुझसे ईर्ष्या करें। हालांकि, मैंने कभी भी यह नहीं सोचा था कि मुझे इसके ​बदले दर्द और उदासी मिलेगी। मुझे लेशमात्र के लिए शांति व खुशी नहीं मिल पाई थी। मैं दर्द की इस प्रक्रिया को चख चुकी हूं और अब किस्मत से लड़ने की इच्छा मुझमें नहीं है न ही मुझे प्रसिद्धि व लाभ पाने की चाहत है। यह वह जिंदगी नहीं जो मैं चाहती हूं। मैं अब तेजी से धन कमाने वाली मशीन नहीं हूं। इसके स्थान पर, मैं रोजाना नियमित जीवन जीने लगी हूं। काम पर जाने के अलावा, मैं अक्सर मीटिंग में शामिल होती हूं, परमेश्वर के वचन पढ़ती हूं और अपने भाईयों व बहनों के साथ अपने खुद के अनुभव व समझ को साझा करती हूं। मैंने परमेश्वर के वचनों के भजन गाना व खुशनुमा जिंदगी जीना भी सीख लिया है। मुझे एक प्रकार का भरोसा व शांति मिल गई है, जिसका अहसास मैंने पहले कभी भी अपने दिल में नहीं किया था। एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक निम्न अवतरण पढ़ा: "जब किसी व्यक्ति के पास परमेश्वर नहीं है, जब वह उसे देख नहीं सकता है, जब वह स्पष्ट रूप से परमेश्वर की संप्रभुता को देख नहीं सकता है, तो हर एक दिन निरर्थक, बेकार, एवं दयनीय है। कोई व्यक्ति जहाँ कहीं भी हो, उसका कार्य जो कुछ भी हो, उसके जीवन जीने का अर्थ एवं उसके लक्ष्यों का अनुसरण उसके लिए अंतहीन मर्मभेदी दुख एवं असहनीय कष्ट के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आता है, कुछ इस तरह कि पीछे मुड़कर देखना वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है।जब वह सृष्टिकर्ता की संप्रभुता को स्वीकार करता है, उसके आयोजनों एवं इंतज़ामों के अधीन होता है, और सच्चे मानव जीवन की खोज करता है, केवल तभी वह धीरे-धीरे सभी अंतहीन मर्मभेदी दुखों एवं कष्टों से छूटकर आज़ाद होगा, और जीवन के सम्पूर्ण खालीपन से छुटकारा पाएगा।" ("वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से  "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय III" से)।
परमेश्वर के वचनों से, मैं समझ गई थी कि इंसान के अस्तित्व का अर्थ परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना और उस निर्माता के नियमों व व्यवस्थाओं का पालन करना है। यही मानव की असली जिंदगी है। वे चीजें जो इंसान अपनी पूरी जिंदगी में पा सकता है, वे पूरे समय पर दौड़ते—भागते रहने व पागलपन की तरह काम करने पर निर्भर नहीं करती हैं। बल्कि, यह परमेश्वर के नियम व परमेश्वर के पूर्वविचार पर निर्भर करती है। इसी के साथ, मैं यह भी समझ गई कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति कितनी संपदा एकत्रित कर ले, यह सब कुछ केवल सांसारिक संपत्ति है। जब आप पैदा हुए थे तो इसे साथ नहीं लेकर आए थे और मरने के बाद इसे अपने साथ ले भी नहीं जा सकते। यह बात समझने के बाद, मैं परमेश्वर के नियम व व्यवस्थाओं का पालन करना चाह रही थी। मैंने अपनी बाकी जिंदगी पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पित कर दी है। अब मैं दूसरों की प्रशंसा की इच्छा नहीं रखती। बल्कि, अब मैं वह बन गई हूं जो परमेश्वर का पालन करती है। अब, एक दिन में तीन से चार घंटे काम करती हूं। मेरा बॉस जापानी है। भले ही, हम शब्दों में संवाद नहीं कर सकते हैं, लेकिन मेरा बॉस मेरा ख्याल रखता है। जब भी उसे मुझे कोई काम करने के लिए कहना होता है, तो वह मुझे तक संवाद पहुंचाने के लिए सरल शब्दों का प्रयोग करता है। वह कभी भी मुझे तनाव नहीं देता। अब तो मुझे यह और भी महसूस होने लगा है, कि जब तक इंसान परमेश्वर का पालन करेगा, तब तक वह शांतिपूर्ण व खुशनुमा जिंदगी जीने में सक्षम रहेगा।
जब भी मैं अकेली होती हूं, तो मैं अक्सर ही ईश्वर के समक्ष पहुंचने की अपनी प्रक्रिया के बारे में सोचने लगती हूं। अगर मेरी वह बीमारी नहीं होती, जिसने मुझे प्रसिद्धि व लाभ पाने से रोका, तो इस दुनिया में अब भी मैं धन कमाने वाली एक मशीन ही होती। शैतान की बर्बादी के मुझे मार देने तक मैं इसी प्रकार से अंधी बनी रहती। शैतान ने प्रसिद्धि, लाभ व बीमारी से मुझे नुकसान पहुंचाया था। इसके विपरीत, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरी बीमारी का प्रयोग मुझे उन तक लाने के लिए किया। उनके वचनों के माध्यम से, मैं साफ तौर पर यह देख पाई कि शैतान ही इंसानों के भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है। मैं यह भी साफ तौर पर देख पाई कि शैतान द्वारा इंसानों को निगलने के लिए प्रसिद्धि व लाभ का प्रयोग करना शैतान के लिए कितना दुष्टता भरा व घिनौना था। मैं अंतत: इस स्थिति में थी कि प्रसिद्ध व लाभ की बेड़ियों को तोड़ दूं और जिंदगी के उचित दृष्टिकोण को स्थापित करूं। मेरी आत्मा स्वतंत्र थी। परमेश्वर सर्वशक्तिमान व बुद्धिमान है! मैं आभारी हूं कि परमेश्वर ने मुझे प्यार और मुझे बचा लिया है। इसका पूरा श्रेय सर्वशक्तिमान परमेश्वर को है!
आपके लिए अनुशंसित:परमेश्वर का प्रेम सर्वाधिक यथार्थ है

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

आपदा से पहले प्रभु गुप्त रूप से बहुत पहले ही आ गया है। हम उसका स्वागत कैसे कर सकते हैं? इसका मार्ग ढूंढने के लिए हमारी ऑनलाइन सभाओं में शामिल हों।