ईश्वर के वचनों ने मुझे गवाह बनाया

शिआओ मिन, शेंडांग प्रान्‍त
मेरा जन्‍म एक पिछड़े देहाती इलाके में हुआ था और बचपन में मैंने कठिनाइयों से भरा गरीबी का जीवन जिया था। जल्‍दी से जल्‍दी एक बेहतर जीवन जीने की खातिर, शादी के बाद मैंने पागलों की तरह काम करना शुरू कर दिया।लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि अधिक काम करने की वजह से मैं बीमार पड़ गयी, और जहाँ मैं चुस्‍त-दुरुस्‍त हुआ करती थी, वहीं अब बीमारी ने मुझे तोड़कर रख दिया। मुझे हर समय बीमारी से होने वाली पीड़ा बनी रहने लगी और मैं हर मुमकिन जगह जाकर चिकित्‍सकीय परामर्श तथा इलाज की तलाश करने लगी। नतीजतन मैंने ढेर सारा पैसा खर्च कर डाला, लेकिन मेरी बीमारी में कोई सुधार नहीं हुआ। 1999 के वसन्‍त में मुझे दो बहनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य के सुसमाचार का उपदेश दिया। सर्वश‍क्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़कर मैंने परमेश्‍वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को समझा, और मैं जान गयी कि ये वचन किसी भी मनुष्‍य द्वारा नहीं बोले गये हो सकते थे, और यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन सचमुच परेमश्‍वर की वाणी हैं। मैं पूरी तरह इस निश्‍चय पर पहुँच गयी कि, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, और यह कि वह हमें हमारी सारी पीड़ाओं से बचा सकता है। जैसे जैसे मैं परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ती गयी, मुझे कुछ सत्‍य समझ में आते गये और मैं दुनिया की बहुत सी चीज़ों को पूरी तरह समझ गयी। मेरी पीड़ित, घुटी हुई आत्‍मा ने मुक्ति का अनुभव किया, और मैं धीरे धीरे स्‍वस्‍थ होती गयी। परमेश्‍वर के प्रति मेरे आभार की कोई सीमा नहीं थी, मैं सक्रिय रूप से सुसमाचार का उपदेश देने लगी और परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य की साक्षी बन गयी।
लेकिन इसके बाद बहुत समय नहीं गुज़रा था कि मुझे सुसमाचारका उपदेश करने के अपराध में सीसीपी सरकार द्वारा क्रमश: तीन बार गिरफ़्तार किया गया, और जितनी बार भी मैं गिरफ़्तार हुई, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने शैतान के उत्‍पीड़न पर विजय हासिल करने में मेरा मार्गदर्शन किया। 2012 में कलीसिया के प्रति अपने कर्तव्‍य का पालन करने के दौरान मैं एक बार फिर उसी दानव के अड्डे पर जा पहुँची और दुरात्‍मा शैतान के हाथों दी गयी यातना की शिकार बनायी गयी ...
13 सितम्‍बर, 2012 को करीब शाम के वक्त मैं, हमेशा की तरह, अपने मेज़बान के घर वापस लौटी, मैंने बाहर अपना स्‍कूटर खड़ा किया और घण्‍टी का बटन दबाया। मैं चकित रह गयी कि जैसे ही दरवाज़ा खुला, वैसे ही चार मोटे-तगड़े आदमी मुझ पर भेडि़यों तरह झपट पड़े। उन्‍होंने मेरे हाथ पीछे मोड़े और मुझे हथकड़ियाँ पहना दीं, फिर मुझे एक कुर्सी की ओर धकेला और उस पर जकड़ दिया। तुरन्‍त ही कई पुलिसवाले मेरे थैले की तलाशी लेने लगे...। इस आकस्मिक और वहशियाना बलप्रयोग के सामने मैं आतंक के मारे हक्की–बक्की रह गयी और क्रूर भेडि़यों द्वारा घेर ली गयी एक ऐसी दयनीय छोटी-सी भेड़ जैसा महसूस करने लगी, जिसमें किसी तरह का प्रतिरोध करने की ताक़त नहीं थी। इसके बाद उन्‍होंने मुझे बाहर ले जा कर एक काली सेडान कार में बिठा दिया। कार के भीतर, अपनी ही कामयाबी के नशे में चूर किसी बौने दयनीय इन्‍सान की तरह दिखता पुलिस का मुखिया मेरी ओर मुड़ा और कुटिल ढंग से मुस्‍कराता हुआ बोला, "हह! तू जानती है हमने तुझे कैसे पकड़ा!" इस डर से कि कहीं मैं भाग न जाऊँ, पुलिस अधिकारियों ने मुझे दोनों ओर से इस तरह जकड़ लिया, मानो मैं कोई ख़तरनाक अपराधी थी। मैंने एक साथ गुस्‍सा और डर महसूस किया, और अनुमान नहीं लगा पा रही थी कि पुलिस मुझे किस तरह की सज़ा और पीड़ा देने वाली थी। मुझे इस बात का बहुत गहरा डर सता रहा था कि मैं उनके द्वारा दी जाने वाली यातना को सह नहीं सकूँगी और एक यहूदा बन कर परेमश्‍वर के साथ विश्‍वासघात कर बैठूँगी। लेकिन फिर मैंने परमेश्‍वर के वचनों पर विचार किया: "जब तक तुम अक्सर मेरे सामने प्रार्थना और अनुनय करते हो, मैं तुम सभी को विश्वास प्रदान करूँगा। सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है तुम सब का विश्वास बहुत कम है। जब तक तुम सभी का विश्वास बढ़ता है, तब तक कुछ भी मुश्किल नहीं होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 75")। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे आस्‍था और बल प्रदान किया और, धीरे-धीरे उनसे मुझे शान्‍त होने में मदद मिली। "हाँ," मैंने सोचा। "पुलिस के लोग कितने भी बर्बर, जंगली और दुष्‍ट क्‍यों न हों, वे परमेश्‍वर के हाथों के मुहरे हैं और परमेश्‍वर की योजना का हिस्‍सा हैं। जब तक मैं प्रार्थना करती रहूँगी और सच्‍चे हृदय से परमेश्‍वर को पुकारती रहूँगी, तब तक परमेश्‍वर मेरे साथ होगा और इसलिए चिन्‍ता करने की कोई बात नहीं है। अगर ये दुष्‍ट पुलिस वाले मुझे क्रूरतापूर्वक यातना देते हैं और पीटते हैं, तो इसका सिर्फ़ इतना ही मतलब होगा कि परमेश्‍वर मेरी आस्‍था की परीक्षा लेना चाह रहा है। वे मेरे शरीर को कितनी भी पीड़ा पहुँचा लें, लेकिन वे मेरे हृदय को परमेश्‍वर का ध्‍यान करने से और परमेश्‍वर को पुकारने से नहीं रोक सकते। अगर वे मेरे शरीर की हत्‍या भी कर दें, तो भी वे मेरी आत्‍मा की हत्‍या नहीं कर सकते, क्‍योंकि मैं जो कुछ भी हूँ वह सब परमेश्‍वर के हाथों में है।" जैसे ही मैंने यह सोचा, मेरे मन से शैतान का भय जाता रहा और मैं परमेश्‍वर की गवाह होने के लिए कृतसंकल्‍प हो गयी। इसीलिए मैंने मन ही मन आह्वान किया, "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! आज वे लोग मेरे साथ जो भी करें, मैं उस सब का सामना करने को तैयार हूँ। हालाँकि मेरा शरीर कमज़ोर है, मैं तुझ पर निर्भर रहते हुए जीना चाहती हूँ और शैतान को अपना शोषण करने का एक भी अवसर नहीं देना चाहती। मेरी रक्षा कर, ताकि मैं तेरे साथ विश्‍वासघात न करूँ, और एक शर्मनाक यहूदा न बन जाऊँ।" जब हमारी कार चली जा रही थी, मैंने मन ही मन कलीसिया का एक भजन गाया: "उनकी पवित्र योजना और प्रभुसत्ता से, मैं अपने इम्तहानों का सामना करता हूँ। मैं कैसे हार मान लूँ या छिपने की कोशिश करूं? सबसे पहले जो है वो है परमेश्वर की महिमा। संकट की घड़ियों में, परमेश्वर के वचन राह दिखायें मुझे और पूरी करें मेरी आस्था मैं हूँ पूरा निष्ठा में डूबा हुआ, परमेश्वर को समर्पित, मौत के भय के बिना। हमेशा सबसे ऊपर है उनकी इच्छा" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "मैं बस इतना चाहूँ कि परमेश्वर को संतुष्टि मिले")। जैसे ही मैंने मन ही मन यह गाया, मेरा हृदय अक्षय बल से भर गया, और मैंने उस उस बुद्धि और बल पर भरोसा करने का दृढ़ निश्‍चय कर लिया जो परमेश्‍वर मुझे प्रदान कर रहा था ताकि मैं मरते दम तक शैतान से लड़ती रहूँ। जैसे ही वे मुझे पूछताछ कक्ष में ले गये, मुझे यह देख कर आश्‍चर्य हुआ कि वहाँ पर मेरी ही तरह कलीसिया का कर्तव्य निभाने वाली एक बहन, मेरे मेज़बान के घर की बहन, और कलीसियाका एक नेता भी वहाँ मौजूद थे। वे सब भी पकड़े गये थे! एक पुलिस अधिकारी ने मुझे कलीसिया की अपनी बहनों की ओर ताकते हुए देखा और उसने मुझ पर अपनी नज़रें गड़ा दीं और मुझे घुड़कते हुए बोला, "तू किसे घूर रही है। वहाँ चल!" हमें एक दूसरे से बात करने से रोकने के लिए पुलिस ने हमें अलग-अलग पूछताछ-कक्षों में बन्‍द कर दिया। उन्‍होंने भद्दे ढंग से मेरी तलाशी ली, मेरा बेल्‍ट खोला और मुझे नीचे से उपर तक टटोला। यह मुझे बेहद अपमानजनक लगा, और मैंने देखा कि सीसीपी सरकार के ये राक्षस मातहत वास्‍तव में किस क़दर दुरात्‍मा, घृणित और ओछे हैं! मुझे बहुत ज्‍़यादा ग़ुस्‍सा आया, लेकिन मुझे अपने ग़ुस्‍से को रोकना पड़ा, क्‍योंकि दैत्‍यों के उस अड्डे में बहस के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। कलीसिया का नया स्‍कूटर और मेरे पास के 600 युआन ज़ब्‍त करने के बाद, उन्‍होंने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिया। "तेरा नाम क्‍या है? कलीसियामें तेरा पद क्‍या है? तेरा नेता कौन है? वे लोग अभी कहाँ हैं?" मैंने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए पुलिसवाला मुझ पर गुर्राया, "तू क्‍या सोचती है कि अगर तू हमें नहीं बताएगी तो हम पता नहीं लगा पाऍंगे? तुझे अन्‍दाज़ा भी नहीं है कि हम क्‍या कर सकते हैं! तुझे मालूम होना चाहिए कि हमने तेरे उच्‍च स्‍तरीय नेताओं को भी गिरफ़्तार कर लिया है?" इसके बाद उन्‍होंने कुछ नाम बताये और पूछा कि क्‍या मैं उनको जानती हूँ, और उन्‍होंने मुझसे सवाल पूछना जारी रखा। "तेरी कलीसिया का सारा पैसा कहाँ पर रखा हुआ है? बता हमें!" मैंने उनके हर सवाल को दो टूक नकारते हुए कह दिया कि "मैं किसी को नहीं जानती! मैं कुछ भी नहीं जानती!" जब उन्‍होंने देखा कि उनकी पूछताछ का पहला दौर नाकामयाब रहा है, तो उन्‍होंने अपना तुरुप का पत्‍ता चलने का फ़ैसला किया, और मुझे थका डालने के लिए वे एक-एक कर मुझसे पूछताछ करने लगे और सताने लगे। पुलिस ने मुझसे तीन दिनों और चार रातों तक निरन्‍तर पूछताछ की और मुझे सताया। इस मुश्किल समय के दौरान मैं भरपूर ईमानदारी के साथ परमेश्‍वर को पुकारती रही, और परमेश्‍वर के इन वचनों ने मेरा मार्गदर्शन किया: "आपको इससे या उससे भयभीत नहीं होना चाहिए। चाहे तुम कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करो, तुम मेरे सम्मुख स्थिर रहो; किसी भी चीज से बाधित ना हो, ताकि मेरी इच्छा पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य होगा...। मत डरो; मेरी सहायता के कारण कौन तुम्हारे मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! स्मरण रखो! जो कुछ घटित होता है वह मेरी भली इच्छा से और मेरी देख-रेख में होता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 10")। "हाँ!" मैंने सोचा। "मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर पर पक्‍का भरोसा है, और जब तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरा सच्‍चा सहारा है, तब तक मुझे किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं है! जब तक मुझमें परमेश्‍वर के साथ सहयोग करने की आस्‍था बनी हुई है, तब तक मुझे विश्‍वास है कि परमेश्‍वर शैतान के बहकावों पर विजय पाने में और इस मुश्किल समय को पार करने में मेरी मदद करेगा।"
चूँकि पहले दिन पुलिस के लोग मुझसे वह जानकारी हासिल नहीं कर सके जो वे चाहते थे, वे अपमान के मारे क्रोधित हो उठे, और उनके एक नेता ने सख्‍़त लहजे में मुझसे कहा, "मैं इसके अक्‍खड़पन के सामने हथियार डालने वाला नहीं हूँ। इसको यातना दो!" जब मैंने उसको यह कहते हुए सुना तो मेरा साहस लड़खड़ा गया और मैं डरने लगी, और मुझे यह चिन्‍ता सताने लगी कि मैं तो उनकी यातना से पहले ही ढहने लग गयी हूँ। मैं इतना ही कर सकी कि मैंने सच्‍चे हृदय से परमेश्‍वर को पुकारा: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! इस वक्‍़त मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रही हूँ और सारी शक्ति मेरा साथ छोड़ चुकी है। लेकिन पुलिस मुझे यातना देना चाहती है और मैं वाक़ई नहीं जानती कि मैं दृढ़ बनी रह पाऊँगी या नहीं। मेरा साथ दे और मुझे शक्ति दे।" पुलिस ने मेरे हथकड़ी-बँधे हाथों को, जो अभी भी मेरे पीछे मुड़े हुए थे, पकड़ा और उनको एक टूटी हुई मेज़ से लटका दिया, इसके बाद उन्‍होंने मुझे अर्ध-अश्‍व (हाफ़-स्क्वाट) मुद्रा में बैठे रहने को बाध्‍य किया। उन्‍होंने मुझे आक्रामक ढंग से घूरते हुए अपने सवालों का दबाव डाला। "कहाँ है तेरा नेता? कलीसा का सारा पैसा कहॉं पर है?" वे बेचैन हो रहे थे कि‍ मैं उस यातना के अधीन टूट जाती और उनके सामने आत्‍मसमर्पण कर देती। जब उस क्रूर पुलिस ने लगभग आधा घण्‍टे तक मुझे उसी तरह तड़पाना जारी रखा, तो मेरे पैर दुखने और काँपने लगे। मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था और मेरे हाथ भी बुरी तरह दर्द कर रहे थे। मैं अपनी सहनशीलता की हद पर पहुँच चुकी थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अब एक भी क्षण और नहीं टिक सकूँगी, और इसलिए मैंने सच्‍चे हृदय से पुकार लगायी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मुझे बचा ले। अब मैं और नहीं सह सकती। मैं यहूदा की तरह तेरे साथ विश्‍वासघात नहीं करना चाहती। मेरी रक्षा कर।" ठीक तभी, मेरे मन में परमेश्‍वर के ये वचन आये: "परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और किस प्रकार उसकी लिए गवाही में तुम्हें अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है जब परमेश्वर चाहता है तुम उसके लिए एक गवाही दो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है")। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे जाग्रत कर दिया और मुझे यह समझने में सक्षम बनाया कि यह शैतान है जो मुझे परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात करने और सत्‍य की तलाश छोड़ देने के लिए तड़पा रहा है। यह अध्‍यात्‍म के क्षेत्र में छिड़ा युद्ध था: यह शैतान था जो मुझे बहकाने की कोशिश कर रहा था, और इसी के साथ यह मेरी परीक्षा लेने का परमेश्‍वर का ढंग भी था। यह ठीक वह क्षण था जब परमेश्‍वर को मेरी गवाही की ज़रूरत थी। परमेश्‍वर की मुझसे अपेक्षाएँ थीं और इस वक्‍़त बहुत-से देवदूत मुझ पर उसी तरह निगाह रखे हुए थे जिस तरह शैतान रखे हुए था, और वे सब प्रतीक्षा कर रहे थे कि मैं अपना दृष्टिकोण घोषित करूँ। मैं यूँ ही हार मानकरबैठ नहीं सकती थी और शैतान के समक्ष आत्‍मसमर्पण नहीं कर सकती थी; मैं जानती थी कि मुझे परमेश्‍वर की इच्‍छा को पूरा करने की ख़ातिर परमेश्‍वर को इस बात की गुंजाइश देनी थी कि वह मेरे माध्‍यम से अपना कार्य पूरा कर सके। एक न बदलने वाले सिद्धांत के तौर पर, यह वह कर्तव्‍य था जिसका निर्वाह मुझे एक रचे गये प्राणी के रूप में करना चाहिए था—यह मेरा उद्यम था। इस निर्णायक मोड़ पर, मेरे रवैये और मेरे आचरण का सीधा असर परमेश्‍वर की विजयी गवाह होने की मेरी योग्‍यता पर पड़ना था, और उससे भी ज्‍़यादा सीधा असर पड़ना था मेरी उस योग्‍यता पर जिसके तहत मैं परमेश्‍वर द्वारा शैतान को पराजित किये जाने और उसके द्वारा अपनी महिमा हासिल किये जाने की साक्षी बन सकती थी। मैं जानती थी कि मैं परमेश्‍वर को दुखी नहीं कर सकती थी या उसको निराश नहीं कर सकती थी, और मैं शैतान की उन चालाक योजनाओं की छूट नहीं दे सकती थी जिन्होंने अपनी कामयाबी की ख़ातिर मुझे पीड़ा पहुँचायी थी। इन बातों पर विचार करते हुए, सहसा मेरे हृदय में बल उत्‍पन्‍न हुआ और मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, "तुम चाहो तो मुझे पीट-पीट कर मार डालो, लेकिन मैं अभी भी कुछ नहीं जानती!" ठीक उसी वक्‍़त एक महिला पुलिस अधिकारी कमरे में आयी। उसने मुझे देखा और कहा, "तुरन्‍त, उसको नीचे आने दो। तुम उसके साथ क्‍या करने की कोशिश कर रहे हो, उसको मारना चाहते हो? अगर उसको कुछ हुआ, तो उसके लिए तुम जि़म्‍मेदार होगे!" मैं अपने हृदय से इस बात को जानती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने मेरी प्रार्थनाएँ सुन लीथीं और ख़तरे की इस घड़ी में मुझे बचा लिया ताकि मुझे कोई हानि न पहुँचे। जब उन दुष्‍ट पुलिस वालों ने मुझे नीचे आ जाने दिया, तो मैं तुरन्‍त फ़र्श पर जा गिरी। मैं खड़ी नहीं रह सकी, मेरे हाथ और पैर पूरी तरह सुन्न हो गये। मुझमें साँस लेने की ताक़त नहीं रह गयी थी और मैं अपने चारों अंगों को महसूस नहीं कर पा रही थी। मैं उस वक्‍़त बेहद भयभीत महसूस कर रही थी और मेरी आँखों से धाराप्रवाह आँसू बह रहे थे। मैंने सोचा कि: "क्‍या मैं अपंग होने वाली हूँ?" लेकिन इसके बावजूद उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मुझे तब भी नहीं जाने दिया। उनमें से दो मेरी दोनों ओर आये, उन्‍होंने मेरी बाँहें पकड़ीं और मुझे एक लाश की तरह घसीटते हुए एक टूटी हुई कुर्सी तक ले गये, और उन्‍होंने मुझे उस कुर्सी में धकेल दिया। उनमें से एक पुलिसवाले ने क्रूरतापूर्वक कहा, "अगर ये मुँह नहीं खोलती, तो इसको रस्‍सी से लटका दो!" दूसरे दुष्‍ट पुलिस वाले ने बहुत फुर्ती से नायलॉन की एक रस्‍सी ली और उससे मेरे हथकड़ी-बँधे हाथों को एक गरमाते पाइप से लटका दिया। मेरी बाँहें तुरन्‍त सीधी खिंच गयीं, और मेरी पीठ और कन्‍धे जल्‍दी ही दुखने लगे। उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मुझसे सवाल जारी रखते हुए पूछा, "क्‍या तू हमें वह बताने जा रही है जो हम जानना चाहते हैं?" अभी भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया। वे इतने नाराज़ हो उठे कि उन्‍होंने मेरे चेहरे पर एक कप पानी फेंकते हुए कहा, कि इसका उद्देश्‍य मुझे जगाना था। अब तक मुझे पहले ही इस हद तक यातना दी जा चुकी थी कि मुझमें ज़रा-सी भी ताक़त नहीं बच रह गयी थी, और मेरी आँखें इतनी थक चुकी थीं कि मैं उनको खोल तक नहीं पा रही थी। यह देखकर कि मैं ख़ामोश बनी हुई थी, एक दुष्‍ट पुलिस वाले ने नीचता और बेशर्मी के साथ अपने हाथों से जबरदस्‍ती मेरी ऑंखों को खोला और मेरा मज़ाक उड़ाया। कई घंटों की पूछताछ और यातना के बाद उन दुष्‍ट पुलिस वालों ने अपनी हर सम्‍भव युक्ति अपनायी, लेकिन मुझसे बुलवाने की उनकी हर कोशिश एक बार फिर अंतत: नाकामयाब रही।
जब उन दुष्‍ट पुलिस वालों ने देखा कि वे मुझ से पूछताछ कर कुछ भी हासिल नहीं कर सके, तो उन्‍होंने एक शैतानियत से भरी यु‍क्ति का इस्‍तेमाल करने का फ़ैसला किया: उन्‍होंने मुझसे निपटने के लिए शहर से किसी को बुलाया जो खुद को एक "पूछताछ विशेषज्ञ" कहता था। वे मुझे दूसरे कमरे में ले गये और मुझे लोहे की एक कुर्सी पर बैठने का आदेश दिया, फिर उन्‍होंने कुर्सी के पायों से मेरे टखने और उसके हत्‍थों से मेरे हाथ कस कर बाँध दिये। कुछ देर बाद, सभ्‍य-सा दिखने वाला एक चश्‍माधारी आदमी एक ब्रीफ़केस लिये हुए अन्‍दर आया। वह मेरी ओर देखकर खुल कर मुस्‍कराया और, भलमनसाहत का ढोंग करते हुए उसने वे जंज़ीरें खोल दीं जिनसे मेरे हाथ और टखने कुर्सी से बाँधे हुएथे और मुझे कमरे में एक ओर पड़ी खाट पर बैठने की इजाज़त दी। क्षण भर बाद ही वह मेरे लिए कप में पानी भर रहा था, और फिर मुझे मिठाइयाँ पेश कर रहा था। वह मेरे पास आया और दोस्‍ताना लहजे का स्‍वाँग करता हुआ बोला, "इस तरह तकलीफ़ क्‍यों भोग रही हो? तुम बहुत तकलीफ़ भोग चुकी हो, लेकिन यह कोई इतना बड़ा मसला नहीं है। हम जो जानना चाहते हैं वह हमें बता दो, और सब कुछ ठीक हो जाएगा...।" इस नयी परिस्थिति का सामना करते हुए मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझे परमेश्‍वर के साथ किस तरह सहयोग करना चाहिए, इसलिए मैंने जल्‍दी से मन ही मन परमेश्‍वर से प्रार्थना कर उससे प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्रदान करने का अनुरोध किया। तभी, मैंने परमेश्‍वर के इन वचनों पर विचार किया: "तुम्हें सभी परीक्षणों को सहना होगा, और जो कुछ मुझ से आता है उसे स्वीकार करना होगा। पवित्र आत्मा तुम्हारा नेतृत्व करने में जो कुछ भी करे, तुम्हें उसका अनुपालन करना होगा। तुम्हारे पास तीव्र उत्साह और चीज़ों को परखने की क्षमता अवश्य होनी चाहिए। तुम्हें लोगों को समझना होगा और दूसरों का अंधाधुंध अनुसरण करने से बचना होगा, अपनी आध्यात्मिक आँखों को उज्ज्वल रखना होगा और चीजों की गहन जानकारी रखनी होगी" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 18")। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का रास्‍ता दिखाया और यह समझने में मेरी मदद की कि शैतान हमेशा शैतान ही रहेगा, और शैतान कभी भी अपने परमेश्‍वर-प्रतिरोधी, परमेश्‍वर से घृणा के को बदल नहीं सकता। वे चाहे कठोर युक्तियाँ अपनाएँ या विनम्र, उनका लक्ष्‍य हमेशा मुझे परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने को और सत्‍य का मार्ग त्‍यागने को प्रेरित करना होता है। परमेश्‍वर के वचनों की चेतावनी की बदौलत मुझमें शैतान की चालाक योजनाओं को पहचानने का कुछ विवेक पैदा हुआ, मेरा दिमाग़ साफ़ हुआ, और मैं एक दृढ़तापूर्ण रुख अपनाने में सक्षम हुई। इसके बाद उस पूछताछकर्ता ने मुझसे कहा, "सीसीपी सरकार लोगों को परमेश्‍वर में विश्‍वास करने से मना करती है। अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करना जारी रखती हो, तो तुम्‍हारे पूरे परिवार को फँसा लिया जाएगा, और इससे तुम्‍हारे परिवार के बच्‍चों के भविष्‍य, रोज़गार की उम्‍मीदों, और सरकारी नौकरी की सम्‍भावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बेहतर होगा कि तुम इस पर सावधानी के साथ विचार करो...।" उसके यह कहने के बाद मेरे भीतर एक लड़ाई छिड़ गयी, और मेरी मानसिक अशान्ति दुगनी हो गयी। ठीक जिस वक्‍़त मैं लाचार महसूस कर रही थी, तभी मैंने सहसा पतरस के उस समय के अनुभवों के बारे में सोचा जब उन्‍होंने शैतान के समक्ष पूरी कामयाबी के साथ सत्‍य की गवाही दी थी; पतरस ने परमेश्‍वर को हमेशा उन कुटिल चालों के माध्‍यम से समझने का प्रयास किया था जो शैतान ने उनके साथ चली थीं। और इसलिए, मैंने अपने हृदय की गहराई में परमेश्‍वर को खोजा और सब कुछ उसके भरोसे छोड़ दिया, और परमेश्‍वर की इच्‍छा जाननी चाही। अनजाने ही सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के ये वचन मेरे मन में आये: "केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की सम्प्रभुता से जुड़ी है, मानवजाति का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में निहित है। ... केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति के जीवन के ढंग को नियंत्रित करता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है")। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे प्रकाश से भर दिया। "हाँ!" मैंने सोचा। "परमेश्‍वर सर्जक है और मानव-जाति के रूप में हमारी नियति परमेश्‍वर के हाथों में है। शैतान उनमें से है जो परमेश्‍वर की अवज्ञा करते हैं। अगर वे स्‍वयं नर्क जाने के लिए अभिशप्‍त अपनी नियति को नहीं बदल सकते, तो फिर वे मनुष्‍य की नियति पर शासन कैसे कर सकते हैं? मनुष्‍य की नियति परमेश्‍वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है, और भविष्‍य में मेरे बच्‍चे क्‍या काम करेंगे और उनकी सम्‍भावनाएँ किस तरह की होंगी, यह सब परमेश्‍वर पर निर्भर है—शैतान का इन चीज़ों पर किसी तरह का कोई नियन्‍त्रण नहीं है।" यह सोचते हुए मैं इसे और भी स्‍पष्‍टता के साथ देख सकी कि शैतान और उसके दैत्‍य कितने घिनौने और निर्लज्‍ज हैं। इसलिए मुझे परमेश्‍वर को नकारने और परमेश्‍वर का तिरस्‍कार करने को बाध्‍य करते हुए वह मुझे फुसला कर ठगने के उद्देश्‍य से इन धूर्ततापूर्ण और घृणित चालों—इन "दिमाग़ी खेलों" —का इस्‍तेमाल कर रहा था। अगर समय रहते सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्राप्‍त न हुआ होता, तो मैं अब तक शैतान के हाथों पराजित होकर उसके द्वारा बन्‍धक बना ली गयी होती। अब यह जान लेने के बाद कि दुष्‍ट शैतान कितना घिनौना है, उसकी धूर्त योजनाओं के सामने न झुकने का मेरा आत्‍मविश्‍वास और भी मजबूत हो गया था। अन्‍त में, जब वह दुष्‍ट पुलिस वाला उलझन में पड़ गया और उसे और कुछ नहीं सूझा, तो वह निराश होकर चला गया।
तीसरे दिन, जब पुलिस के मुखिया ने पाया कि वे मुझसे कोई जानकारी हासिल नहीं कर पाये हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने मातहतों की नाक़ाबिलियत को लेकर कुड़कुड़ाने लगा। वह मेरे पास आया और, चेहरे पर एक अनमनी-सी मुस्‍कराहट के साथ, व्यंग्यात्मक ढंग से बोला, "तूने अब तक सब कुछ क़बूल क्‍यों नहीं किया? तू अपने आप को समझती क्‍या है, ल्यू हूलन? तू क्‍या सोचती है कि हम जितना बुरे से बुरा कर सकते थे वह कर चुके हैं इसलिए तुझे कोई डर नहीं हैं, हुँ? तेरा सर्वशक्मिान परमेश्‍वर तुझे बचाने क्‍यों नहीं आया? ..." बोलते हुए वह मुझे डराने के लिए मेरी आँखों के सामने एक छोटी-सी टेज़र घुमा रहा था जो चिटचिटाती थी और उससे नीली रोशनी चमकती थी। इसके बाद उसने एक बड़ी टेज़र की ओर इशारा किया जो फिलहाल चार्ज हो रही थी और मुझे धमकाते हुए बोला, "उसे देखती हो? इस छोटी टेज़र की बिजली जल्‍दी ही ख़त्‍म हो जाएगी। पल भर बाद मैं तुझे बिजली के झटके देने के लिए उस पूरी तरह चार्ज्‍ड बड़ी टेज़र का इस्‍तेमाल करूँगा, और तब हम देखेंगे कि तू बोलती है या नहीं! मैं जानता हूँ कि उसके बाद तू बोलने लगेगी!" मैंने उस बड़ी टेज़र की ओर देखा और मैं दहशत में आये बिना नहीं रह सकी: "यह दुष्‍ट पुलिस वाला बहुत ही भयानक और शैतानियत से भरा है। क्‍या ये मेरी हत्‍या कर बैठेगा? क्‍या मैं यह सन्‍ताप झेल पाऊँगी? क्‍या मुझे बिजली का करंट देकर मार डाला जाएगा?" उस क्षण, मैंने महसूस किया कि मेरा दिमाग़ कमज़ोरी, कायरता, पीड़ा और बेबसी से भर उठा था...। मैंने जल्‍दी से परमेश्‍वर से मदद की गुहार लगायी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, हालाँकि मेरा शरीर बहुत अधिक पीडित और बहुत अधिक कमज़ोर है, तब भी मैं शैतान को वह नहीं सौंपना चाहती जो वह चाहता है। मेरा शरीर अधम और निरर्थक है, और मेरी इच्‍छा है कि सिर्फ़ तू ही मेरे हृदय को हासिल करे और उसे स्‍वीकार करे। कृपा कर मुझे बचा और मुझको तेरे साथ विश्‍वासघात करने से और एक विश्‍वासघाती यहूदा बनने से रोक ले।" जैसे ही मैंने परमेश्‍वर से गुहार लगायी, वैसे ही परमेश्‍वर के वचनों के एक भजन की कई पंक्तियाँ मेरे दिमाग़ में तैरने लगीं: "विश्वास लकड़ी के इकलौते लट्ठे के पुल की तरह है, जो लोग अशिष्टापूर्वक जीवन से लिपटे रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो खुद का त्याग करने को तैयार रहते हैं वे बिना किसी फ़िक्र के उसे पार कर सकते हैं। अगर हम में कायरता और भय के विचार हैं तो जान लें कि शैतान हमें मूर्ख बना रहा है जो कि इस बात से डरता है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर जायेंगे" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "परमेश्वर को हमारे सर्वस्व पर अधिकार करने दो")। प्रभु यीशु के ये वचन भी मुझे याद हो आये:"जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। परमेश्‍वर के इन वचनों की वजह से मेरे आँसू उन्‍मुक्‍त होकर बहने लगे—मैंने अविश्‍वसनीय रूप से द्रवित महसूस किया। मेरे हृदय की शक्ति प्रचण्‍ड अग्नि की तरह थी। मैंने सोचा, "मैं अगर आज मर भी जाऊँ, तब भी डरने की क्‍या बात है? परमेश्‍वर की ख़ातिर मरना गौरव की बात है, और मैं मरते दम तक शैतान से लड़ने के लिए हर चीज़ त्‍याग दूँगी!" ठीक उसी क्षण, परमेश्‍वर के वचनों के एक और भजन की कुछ पंक्तियाँ मुझे याद हो आयीं: "यरूशलेम जाने के मार्ग पर, यीशु ने संताप में महसूस किया, मानो कि कोई एक नश्तर उसके हृदय में भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं थी; हमेशा से एक सामर्थ्यवान ताक़त थी जो उसे लगातार उस ओर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाएगा। अंततः, उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा करते हुए ... पापमय देह के सदृश बन गया" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "प्रभु यीशु का अनुकरण करो")। मैं मन ही मन लगातार गाती रही, और मेरे आँसू अनवरत मेरे गालों पर बहते रहे। प्रभु यीशु मसीह को सलीब पर लटकाये जाने का दृश्‍य साक्षात मेरी आँखों के सामने घटित हो रहा था: फ़रीसियों द्वारा प्रभु यीशु का मखौल उड़ाया जा रहा था, उनको धिक्‍कारा और लांछित किया जा रहा था, उनके वधिक उन पर तब तक तक लोहे की मूठ वाला कोड़ा बरसाते रहे जब तक कि उनकी देह घावों और खरोंचों से ढँक नहीं गयी, जब तक कि अन्‍तत: उनको क्रूरतापूर्वक सलीब पर कीलों से नहीं ठोंक दिया गया, और तब भी उन्‍होंने एक बार भी कोई आवाज़ नहीं की...। प्रभु यीशु जिन यातनाओं से गुज़रे थे उनमें से एक-एक यातना उन्‍होंने मानव-जाति के प्रति अपने प्रेम की ख़ातिर सही थी, और इस प्रेम ने स्‍वयं अपने जीवन के प्रति उनके प्रेम पर विजय पायी थी। उस क्षण में मेरा हृदय परमेश्‍वर के प्रेम से विभोर और द्रवित था, मैं ज़बर्दस्त शक्ति और आस्था से भर गया। मुझे किसी बात का भय नहीं रहा और मुझे लग रहा था कि परमेश्‍वर की ख़ातिर मर जाना गौरव की बात होगी, जबकि एक यहूदा बन जाना सबसे बड़ा कलंक होगा। मैं आश्‍चर्यचकित थी कि जब मैंने यह निश्‍चय किया कि मैं अपने जीवन की क़ीमत पर परमेश्‍वर की गवाही दूँगी, तो परमेश्‍वर ने एक बार फिर मृत्‍यु के पंजों से भाग निकलने में मेरी मदद की, और उसने मेरे लिए एक राह खोल दी। उस क्षण, एक दुष्‍ट पुलिसवाला यह कहता हुआ तेज़ी से कमरे में आया कि "नगर के चौक में हंगामा हो गया है, उसको कुचलने के लिए और सार्वजनिक कानून-व्‍यवस्‍था बरकरार रखने के लिए हमें पुलिस बल को ले जाना होगा!" वे दुष्‍ट पुलिसवाले फुर्ती से बाहर निकल गये। जब तक वे वापस आये तब तक काफ़ी रात हो चुकी थी, और उनमें मुझसे और पूछताछ करने की ऊर्जा शेष नहीं रह गयी थी। उन्‍होंने मुझसे क्रूरतापूर्वक कहा, "चूँकि तू बोलेगी नहीं, इसलिए हम तुझे नज़रबन्‍दी गृह में भेज देंगे!"
चौथे दिन सुबह, उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मेरी तस्‍वीर खींची और मेरे गले में एक बड़ी चौकोर तख्‍़ती लटका दी जिस पर ब्रश से मेरा नाम लिखा हुआ था। मैं एक बदनामशुदा अपराधी की तरह थी, जिसका दुष्‍ट पुलिस द्वारा मज़ाक उड़ाया जा रहा था और फ़जीहत की जा रही थी। मुझे लग रहा था जैसे मैं घोर अपमान का पात्र बनायी जा रही हूँ, और मैं अन्‍दर से बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी। मुझे समझ में आ गया था कि मेरी मानसिक अवस्‍था ठीक नहीं है, और इसलिए मैंने जल्‍दी से अपने हृदय में चुपचाप परमेश्‍वर को पुकारा: "हे परमेश्‍वर! मेरे हृदय की रक्षा कर और मुझे तेरी इच्‍छा को समझने और शैतान की कुटिल योजनाओं का शिकार न होने की सामर्थ्‍य प्रदान कर।" जब मैंने प्रार्थना कर ली, तो मेरे मन में परमेश्‍वर के वचनों का एक अंश स्‍पष्‍टता के साथ उभरा: "एक सृष्ट प्राणी के रूप में, तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए और एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहिए। ... एक मनुष्य के रूप में, तुम्हें परमेश्वर में बढ़ना और समस्त दुखों को सहना चाहिए। तुम्हें थोड़ा दुःख, जो तुम्हें प्राप्त होना ही है, प्रसन्नतापूर्वक और निश्चित ही स्वीकार करना चाहिए ... एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहिए। ...तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग पर चलते हो, वे लोग जो उन्नति को खोजते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, वे लोग जिन्हें परमेश्वर धर्मी बुलाता है। क्या यही सब से अर्थपूर्ण जीवन नहीं है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "अभ्यास (2)")। परमेश्‍वर के इन वचनों में अधिकार और शक्ति निहित थी, उन्होंने मेरे हृदय को प्रकाश से भर दिया और सारे अँधेरे को ख़त्‍म कर दिया, और उन्होंने मुझे जीवन का अर्थ और मूल्‍य समझने में सक्षम बनाया। उन्होंने मुझे इस बात को समझने की गुंजाइश दी कि एक सृजित प्राणी के रूप में सत्‍य की खोज में सक्षम होना, और परमेश्‍वर की आराधना करना और उसको सन्‍तुष्‍ट करना ही सबसे सार्थक और उचित जीवन है। आज परमेश्‍वर में अपने विश्‍वास की ख़ातिर पकड़े जाने और नज़रबन्‍द किये जाने में सक्षम होना, इस सारे अपमान और पीड़ाओं को सहना, तथा क्लेशों और मसीह के राज्‍य में साझा करने में सक्षम होना कोई शर्मनाक बात नहीं थी, बल्कि गौरव की बात थी। शैतान परमेश्‍वर की आराधना नहीं करता; इसके विपरीत, वह परमेश्‍वर के कार्य में दखल देने और बाधा डालने के लिए वह हर सम्‍भव प्रयत्‍न करता है, और यही सबसे ज्‍़यादा निन्‍दनीय और घृणित है। इन बातों पर विचार करते हुए मैं शक्ति और आनन्‍द से भर उठी। दुष्‍ट पुलिसवालों ने मेरे चेहरे पर मुस्‍कराहट देखी और विस्‍मय से भर कर मेरी ओर देखते हुए कहा, "तू किस बात से प्रसन्‍न है?" मैंने ईमानदारी से और बलपूर्वक जवाब दिया, "परमेश्‍वर में विश्‍वास करना और उसकी आराधना करना पूरी तरह से उचित है। ऐसा करने में सर्वथा कुछ भी ग़लत नहीं है। मुझे प्रसन्‍न क्‍यों नहीं होना चाहिए?" परमेश्‍वर के मार्गदर्शन में, मैं एक बार फिर परमेश्‍वर पर भरोसा करने में और शैतान पर विजय हासिल करने में सक्षम थी।
तब मुझे निगरानी गृह में ले जाया गया। उस जगह की हर चीज़ और भी मनहूस तथा डरावनी थी, और मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी नर्क में आ पहुँची हूँ। हर बार के भोजन में मुझे भाप में पकी हुई ब्रेड का एक स्‍याह टुकड़ा और थोड़ा-सा उबला हुआ चीनी पत्‍ता गोभी दिया जाता था जो उस क्लियर सूप के कटोरे में पड़ा होता था जिसकी सतह पर कुछ सब्‍ज़ पत्तियाँ तैरती रहती थीं। हर रोज़ दिन भर इस क़दर भूखी बनी रहती थी कि मेरा पेट भोजन की माँग करता रहता था। लेकिन, इसके बावजूद, मुझे बोझा ढोने वाले टट्टू की तरह काम में जुते रहना पड़ता था, और अगर मैं अपने हिस्‍से का काम पूरा नहीं कर पाती थी, तो मुझे पीटा जाता था या सज़ा के तौर पर पहरेदारी करते हुए खड़े रहना पड़ता था। चूँकि यह क्रूर यातना दिनों-दिन चलती रही, इसलिए मैं सिर से पैर तक खरोंचों और ज़ख्‍़मों से भर गयी थी, और मेरे लिए चलना तक मुश्किल हो गया था, लेकिन तब भी वार्डन मुझे ताँबे के तारों का भारी बोझा ढोने के लिए बाध्‍य करते थे। इस भारी काम की वजह से मेरी घायल पीठ में असहनीय पीड़ा होने लगी, और मेरी हालत यह हो गयी थी कि मैं हर रोज़ दिन के अन्‍त में सिर्फ़ रेंगते हुए अपने बिस्‍तर पर जाने के क़ाबिल भर रह गयी। लेकिन रात को भी दुष्‍ट पुलिस मुझे क़ैदियों की पहरेदारी के लिए खड़ा रखती थी, और यह अतिशय और थका देने वाला काम मेरे लिए असहनीय हो गया था। एक रात जब मैं पहरा दे रही थी, मैंने दुष्‍ट पुलिस की अनुपस्थिति का फ़ायदा उठाया और, थोड़ा-सा विश्राम लेने की उम्‍मीद में, चुपके-से घुटने मोड़ कर बैठ गयी। लेकिन मेरी उम्‍मीद के विपरीत, निगरानी कक्ष में बैठे एक दुष्‍ट पुलिसवाले ने मुझे कैमरे की मार्फ़त देख लिया और धड़धड़ाता हुआ मेरे पास आकर गरज उठा, "तुझसे किसने कहा था कि तू बैठ सकती है?" एक अन्‍य क़ैदी ने फुसफुसाते हुए मुझसे कहा, "जल्‍दी-से उससे माफ़ी माँग ले, नहीं तो वह तुझे 'लकड़ी के बिस्‍तर पर' सोने को मजबूर कर देगा।" इससे उसका आशय उस यातना से था जिसके तहत लकड़ी का एक तख्‍ता क़ैदी की कोठरी में लाया जाता है, उसमें क़ैदियों की टाँगें और पैर जंज़ीर से बाँध दिये जाते हैं, और उनकी कलाइयाँ उसमें रस्‍सी से कस दी जाती हैं। इस तरह क़ैदी को उस तख्‍ते से बाँध दिया जाता है, और फिर उनको दो हफ्तों तक हिलने-डुलने की गुंजाइश नहीं दी जाती। यह सुनकर मैं क्रोध और नफ़रत से भर उठी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं रत्‍ती भर भी प्रतिरोध नहीं दर्शा सकती थी—मैं सिर्फ़ इतना भर कर सकती थी कि अपने ग़ुस्‍से को पी जाती और ख़ामोश बनी रहती। इस तरह की दबिश और यातना मुझे असहनीय प्रतीत हुई। उस रात मैं इस सारे अन्‍याय पर रोती हुई अपने बर्फ़ जैसे ठण्‍डे बिस्‍तर पर पड़ी रही, मेरा हृदय परमेश्‍वर के प्रति फ़रियादों और तक़ाज़ों से भरा हुआ था, और मैं सोच रही थी: "इसका अन्‍त कब होगा? इस नारकीय जगह पर तो एक दिन भी बहुत भारी है।" इसके बाद मैंने परमेश्‍वर के इन वचनों पर विचार किया: "अगर तुम मानवीय जीवन के महत्व को समझते हो, और तुमने मानवीय जीवन के सही मार्ग को अपनाया है, और अगर भविष्य में परमेश्वर तुमसे जैसा भी व्यवहार करे, तुम बिना किन्हीं शिकायतों या विकल्पों के परमेश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित हो जाओगे, और तुम्हें परमेश्वर से कोई मांगें भी नहीं रहेंगी, इस रीति से तुम महत्व से युक्त एक व्यक्ति होगे"("वचन देह में प्रकट होता है" में "अपने मार्ग के अंतिम चरण में तुम्हें कैसे चलना चाहिए")। परमेश्‍वर के इन वचनों ने मुझे अपने ही प्रति शर्मिन्‍दा कर दिया। मैंने सोचा कि मैं किस तरह हमेशा यह कहती रही थी कि परमेश्‍वर की ख़ातिर कोई भी पीड़ा सह लूँगी, पीड़ा या मुसीबत चाहे कितनी बड़ी क्‍यों न हो, मैं हमेशा हर तरह से परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करूँगी जिस तरह पतरस ने किया था, और मैं अपनी ख़ातिर कोई फ़ैसले नहीं लूँगी या कोई याचनाएँ नहीं करूँगी। लेकिन जब मैं उत्‍पीड़न और मुश्किलों की शिकार हुई, और मुझे दुख भोगना पड़ा और क़ीमत चुकानी पड़ी, तो मैं अपने वचनों को वास्‍तविकता में ढालने में पूरी तरह विफल रही। मैं परमेश्‍वर से और परमेश्‍वर के विरुद्ध अनुचित याचनाओं से भरी हुई थी, और मैं महज़ इस बदहाली से पीछा छुड़ाना चाहती थी ताकि मेरे शरीर को और अधिक कष्‍ट न भोगना पड़े—ऐसा करते हुए मैं उस सत्‍य और जीवन को कैसे प्राप्‍त कर सकती थी जो परमेश्‍वर मेरे लिए प्रदान कर रहा था? सिर्फ़ तभी मैं आखिकार परमेश्‍वर के नेक इरादों को समझ सकी: परमेश्‍वर मुझ पर इन मुसीबतों का पहाड़ टूटने की छूट इसलिए दे रहा था ताकि दुख भोगने का मेरा संकल्‍प मजबूत हो सके, और मुझे यह सीख मिल पाए कि दुख के क्षणों में आज्ञा-पालन कैसे किया जाए, ताकि मैं परमेश्‍वर के आयोजन के प्रति समर्पण कर सकूँ और उसकी प्रतिज्ञा को हासिल करने के योग्‍य बन सकूँ। परमेश्‍वर जो कुछ भी मेरे साथ कर रहा था वह मेरे प्रति उसके प्रेम की वजह से किया जा रहा था, वह मुझे बचाने के लिए किया जा रहा था, और वह मुझे एक सच्‍चे मनुष्‍य में रूपान्‍तरित करने के लिए किया जा रहा था। इसके बाद मेरा हृदय उन्‍मुक्‍त हो गया, और मैं अपकृत और पीडि़त महसूस नहीं कर रही थी। मैं अब केवल परमेश्‍वर की आयोजनों और व्‍यवस्‍थाओं के प्रति समर्पित होना चाहती थी, इस परिस्थिति में और भी गम्‍भीरता के साथ सहयोग करना चाहती थी, और सत्‍य की प्राप्ति का उद्यम करना चाहती थी।
एक महीने बाद, पुलिस मुझसे हालाँकि कोई ख़ास प्रमाण हासिल नहीं कर सकी थी, तब उन्‍होंने मुझे जाने दिया। लेकिन उन्‍होंने मुझे "क़ानून के प्रवर्तन में बाधा डालने और और शी जियाओ संगठन में भाग लेने" का आरोपी बना दिया ताकि वे मेरी निजी स्‍वतन्‍त्रता को बाधित कर सकें। एक साल तक, मुझे प्रान्‍त या नगरपालिका का इलाक़ा छोड़ने की इजाज़त नहीं थी, और जब भी पुलिस चाहती तब-तब उसके आदेशों के पालन के लिए मुझे तैयार रहना होता था। घर वापस आने के बाद ही मुझे पता चला कि मैंने अपना जो भी सामान अपनी मेज़बान के घर रखा हुआ था वह सब पुलिस ने लूट कर अपने क़ब्‍ज़े में कर लिया था। इसके अलावा, दुष्‍ट पुलिस ने मेरे घर को लुटेरों की तरह छान डाला था, और मेरे परिवार को यह कहते हुए धमकाया था कि जब तक वे उनको 25,000 युआन नहीं देंगे तब तक वे मुझे रिहा नहीं करेंगे। मेरी सास इस सारे आतंक को सह नहीं सकीं और उनको हृदयाघात हुआ, और वे अस्‍पताल में भर्ती होने और इलाज़ कराने के बाद ही स्‍वस्‍थ हो सकीं, जिस पर उनको 2,000 युआन ख़र्च करने पड़े। अन्‍त में, मेरे परिवार को अपने हर परिचित से पैसे उधार माँग कर पुलिस को देने के लिए 3,000 युआन जुटाने पड़े, और तब जाकर मुझे रिहा किया गया। दुष्‍ट पुलिस द्वारा मुझे दी गयी क्रूर यातनाओं की वजह से मेरे शरीर को गम्‍भीर परिणाम भोगने पड़े: क़ैद के दौरान मेरी बाँहों और टाँगों पर जो कठोर दबाव डाला गया था उसकी वजह से वे अक्‍सर सूज जाया करते हैं; मैं ढाई किलो वज़न की सब्जियाँ तक नहीं उठा पाती या अपने कपड़े नहीं धो पाती, मैंने काम करने की क्षमता पूरी तरह खो दी। सीसीपी सरकार द्वारा मुझ पर ढाये गये क्रूर ज़ुल्‍म ने मेरे मन में शैतान के प्रति और भी नफ़रत भर दी – मैं इस प्रतिक्रियावादी, स्‍वर्ग की अवज्ञा करने वाले राक्षसी शैतान से घृणा करती हूँ।
इस उत्‍पीड़न और मुसीबत के माध्‍यम से मैं सचमुच इस बात को स्‍वीकार करने लगी हूँ कि परमेश्‍वर का काम सचमुच बहुत व्‍यावहारिक और विवेकपूर्ण है। मेरे द्वारा दुख भोगे जाने के दौरान परमेश्‍वर ने मुझमें धीरे-धीरे सत्‍य को प्रतिष्ठित किया था, और इस तरह मुझे अन्‍धकार को पीछे छोड़ देने, मृत्‍यु से बच निकलने, और सत्‍य में निहित स्‍वतन्‍त्रता और मुक्ति हासिल करने में सक्षम बनाया था। परमेश्‍वर ने इसी तरह, शैतान द्वारा मुझ पर ढाये गये ज़ुल्‍मों और मुसीबतों के माध्‍यम से, शैतान पर विजय प्राप्‍त करने के लिए बारम्‍बार मेरा मार्गदर्शन किया था। उसने मुझे अपने वचनों की सिंचाई और आपूर्ति हासिल करने की, सत्‍य को समझने और नीर-क्षीर-विवेक विकसित करने की गुंजाइश दी थी, और उसने मेरी इच्‍छाशक्ति को मजबूत किया था, मेरी आस्‍था को पूर्ण किया था, मुझे उसकी ओर उन्‍मुख होने और उस पर भरोसा करने की सीख दी थी, और मेरा जीवन धीरे-धीरे विकसित और परिपक्‍व होता गया। मैं सचमुच यह समझने लगी थी कि परमेश्‍वर हमेशा से विजेता है और शैतान हमेशा से पराजित है, ठीक उसी अर्थ में जिस तरह परमेश्‍वर के वचनों से युक्‍त इस भजन में गाया गया है: "बड़े लाल अजगर के उत्तरोत्तर ढहने का सबूत लोगों की निरंतर परिपक्वता में देखा जा सकता है। इसे किसी के भी द्वारा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। लोगों की परिपक्वता दुश्मन की मृत्यु का संकेत है। मैं व्यक्तिगत रूप से, लाल अजगर से युद्ध करने, उस स्थान पर जाता हूँ जहाँ वह दुबककर बैठा है। और जब सारी मानवता मुझे देह में पहचान जाती है, और मेरे देह के द्वारा किए गए कार्यों को देखने के योग्य हो जाती है, तब उस बड़े लाल अजगर की मांद राख में बदल जाती है और बिना किसी नामों निशान के विलुप्त हो जाती है" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "परमेश्वर के लोगों के बढ़ने के साथ बड़ा लाल अजगर होता है धराशायी")।

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