सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यद्यपि नीनवे का नगर ऐसे लोगों से भरा हुआ था जो सदोम के लोगों के समान ही भ्रष्ट, बुरे और उपद्रवी थे, उनके पश्चाताप ने परमेश्वर को बाध्य किया कि वे अपना मन बदल दें और उन्हें नाश न करने का निर्णय लें। क्योंकि परमेश्वर के वचनों और निर्देशों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया ने एक ऐसे रवैये का प्रदर्शन किया जो सदोम के नागरिकों के रवैये के ठीक विपरीत था, और परमेश्वर के प्रति उनके सच्चे समर्पण और अपने पापों के लिए उनके सच्चे पश्चाताप, साथ ही साथ हर लिहाज से उनके सच्चे और हार्दिक आचरण के कारण, परमेश्वर ने एक बार फिर से उनके ऊपर अपनी हार्दिक दया दिखाई और उन्हें यह प्रदान किया। मानवता के लिए परमेश्वर के प्रतिफल और उनकी दया की नकल कर पाना किसी के लिए भी असंभव है; कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की दया या सहनशीलता को धारण नहीं कर सकता है, न ही मानवता के प्रति उनके सच्चे एहसासों को धारण कर सकता है। क्या कोई है जिसे तुम महान पुरुष या स्त्री मानते हो, या यहाँ तक कि कोई उत्कृष्ट मानव भी, जो, श्रेष्ठ नज़रिए से, एक महान पुरुष या स्त्री के रूप में, या उच्चतम बिन्दु पर बोलते हुए, मानवजाति या सृष्टि के लिए इस प्रकार का कथन कहेगा? मानवजाति के मध्य ऐसा कौन है जो मानवता के जीवन की स्थितियों को अपने हाथों की हथेली के समान जान सकता है? मानवता के अस्तित्व के लिए बोझ और ज़िम्मेदारी कौन उठा सकता है? किसी नगर के विनाश की घोषणा करने के लिए कौन समर्थ है? और किसी नगर को क्षमा करने के लिए कौन सक्षम है? कौन कह सकता है कि वह अपनी स्वयं की सृष्टि का पालन पोषण करता है? केवल सृष्टिकर्ता! केवल सृष्टिकर्ता ने ही इस मानवजाति के ऊपर दया की है। केवल सृष्टिकर्ता ने ही इस मानवजाति को कोमलता और स्नेह दिखाया है। केवल सृष्टिकर्ता ही इस मानवजाति के लिए सच्चा और कभी न टूटनेवाला प्रेम रखता है। उसी प्रकार, केवल सृष्टिकर्ता ही इस मानवजाति पर दया कर सकता है और अपनी सम्पूर्ण सृष्टि का पालन पोषण कर सकता है। उसका हृदय मनुष्य के हर एक कार्यों से खुशी से उछलता और दुखित होता है: वह मनुष्य की दुष्टता और भ्रष्टता के ऊपर क्रोधित, परेशान और दुखित होता है; वह मनुष्य के पश्चाताप और विश्वास के लिए प्रसन्न, आनंदित, क्षमाशील और प्रफुल्लित होता है; उसका हर एक विचार और उपाय मानवजाति के लिए अस्तित्व में बने हुए हैं और उसके चारों और परिक्रमा करते हैं; जो वह है और जो उसके पास है उसे पूरी तरह से मानवजाति के वास्ते प्रकट किया जाता है; उसकी भावनाओं की सम्पूर्णता मानवजाति के अस्तित्व के साथ आपस में गुथी हुई है। मनुष्य के वास्ते, वह भ्रमण करता है और यहां वहां भागता है, वह खामोशी से अपने जीवन का हर अंश दे देता है; वह अपने जीवन का हर मिनट और सेकेंड समर्पित कर देता है। उसने कभी नहीं जाना कि स्वयं अपने जीवन पर किस प्रकार दया करना है, फिर भी उसने हमेशा से मानवजाति पर दया की है और उसका पालन पोषण किया है जिसे उसने स्वयं सृजा था। वह सब कुछ देता है जिसे उसे इस मानवजाति को देना है। वह बिना किसी शर्त के और बिना किसी प्रतिफल की अपेक्षा के अपनी दया और सहनशीलता प्रदान करता है। वह ऐसा सिर्फ इसलिए करता है जिससे मानवजाति उसकी नज़रों के सामने निरन्तर जीवित रहे, और जीवन के उसके प्रावधान प्राप्त करती रहे; वह ऐसा सिर्फ इसलिए करता है जिससे मानवजाति एक दिन उसके सम्मुख समर्पित हो जाए और यह पहचान जाए कि यह वही ईश्वर हैं जो मुनष्य के अस्तित्व का पालन पोषण करता है और समूची सृष्टि के जीवन की आपूर्ति करता है।"
— "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II" से उद्धृत
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