अध्याय 17.परमेश्वर जिस तरह से कार्य करता है उसे मनुष्य को जानना होगा

परमेश्वर का कार्य, चाहे शरीर में या आत्मा के द्वारा, पूर्णतया प्रबंधकीय योजना के अनुसार किया जाता है। उसके कार्य इस अनुरूपता के साथ नहीं किए जाते हैं कि वह सार्वजनिक है या व्यक्तिगत, या मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है-इसे प्रबंधकीय योजना के अनुसार किया जाता है। कार्य के इस चरण को किसी पुराने तरीके से नहीं किया जा सकता है: इसे कार्य के पिछले दो चरणों की नींव पर पूरा किया जाना चाहिए। कार्य का दूसरा चरण जो अनुग्रह के युग के दौरान पूरा हुआ था उसने मनुष्य को छुटकारा दिया था। इसे देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया था। ऐसा नहीं है कि आत्मा वर्तमान चरण के कार्य को क्रियान्वित नहीं कर सकता था, आत्मा भी सक्षम था, परन्तु वह देहधारी के समान, मनुष्य को बचाने में सक्षम होने के लिए, उतना उपयुक्त नहीं होता। आत्मा के लिहाज से लोग वास्तव में किस मात्रा तक अवधारणाएँ बनाएंगे और लोग आत्मा के प्रति कितने विद्रोही होंगे? आखिरकार, आत्मा देहधारी के समान मनुष्य को जीतने और परमेश्वर के विषय में लोगों के ज्ञान को आसान बनाने में उतना सक्षम नहीं है। यदि आत्मा कार्य करे, तो वह हमेशा लोगों के साथ नहीं हो सकता है; जैसे शरीर अब करता है वैसे लोगों से सीधे बात करना और उनके साथ रहना और आमने सामने बात करना आत्मा के लिए असंभव है। कभी-कभी आत्मा लोगों के बीच में चीज़ों को बस यों ही प्रकट नहीं कर सकता है जैसे कि देहधारी करता है। कार्य का यह चरण जिसे देहधारी कर रहा है वह मुख्य रूप से मनुष्य पर विजय पाने, और फिर, उसे सिद्ध करने से सम्बन्धित है, और यह परमेश्वर को जानने और उसकी आराधना करने के लिए है। यह युग को समाप्त करने का कार्य है। यदि कार्य का यह चरण मानवजाति पर विजय पाने से सम्बन्धित नहीं होता, परन्तु केवल मनुष्य को यह जानने देने से सम्बन्धित होता कि परमेश्वर सचमुच में मौजूद है, तो वास्तव में आत्मा यह कार्य कर सकता था। यदि आप सभी सोचते हैं कि कार्य के इस चरण को निष्पादित करने में आत्मा देह का स्थान ले सकता है-साथ ही यह कार्य भी कर सकता है, क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं-यदि आप लोग सोचते हैं कि चाहे देह होता या आत्मा, वे दोनों एक ही प्रभाव हासिल करेंगे, तो आप सब ग़लत होंगे। उनका कार्य उनके प्रबंधन के अनुसार, उस योजना और उन चरणों के अनुसार किया जाता है जिसके द्वारा वे मनुष्य में कार्य करते हैं। यह ऐसा नहीं है जैसी आप कल्पना करते हैं, कि किसी तरह से, क्योंकि आत्मा, देह और स्वयं परमेश्वर सब सर्वशक्तिमान हैं, वे किसी भी पुराने तरीके से कार्य कर सकते हैं जिसे वे चाहते हैं। परमेश्वर का कार्य प्रबंधकीय योजना के अनुसार किया जाता है और उनके कार्य का निष्पादन हमेशा एक विशेष चरणबद्ध प्रक्रिया का अनुसरण करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चरण कौनसा है। इस चरण का निष्पादन और सभी विशेषताओं की योजना बना ली गई है। कार्य का पहला चरण इस्राएल में पूरा किया गया था, और कार्य के इस चरण को बड़े लाल अजगर के देश में किया जा रहा है। कुछ लोग पूछतें हैं: “इसे किसी दूसरे देश में नहीं किया जा सकता था?” कार्य के इस चरण के लिए प्रबंधकीय योजना के अनुसार, इस चरण को आवश्यक रूप से इसी देश में पूरा किया जाना होगा। इस देश के लोग पिछड़े हैं और उनका जीवन पतित है, वे शैतान के प्रभुत्व के अधीन हैं, और स्वयं इस देश में मानव अधिकारों और स्वतन्त्रता का अभाव है। जैसा आप लोगों ने कहा यदि वैसा होता, तो इस चरण में परमेश्वर के देहधारण का कोई अर्थ नहीं होता। यदि इसे किसी पुराने ढंग से किया जा सकता था, तो क्या बात होती? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे किस चरण को पूरा कर रहे हैं, हमेशा एक निश्चित आवश्यकता होती है-किसी चरण को एक विशेष तरीके से निष्पादित किया जाता है क्योंकि उसे उसी तरह से ही किया जाना चाहिए। इसीलिए इस तरह से चीज़ों को करना अर्थपूर्ण है। यदि यह वैसा होता जैसा आप सभी ने कहा था, यदि इसे किसी पुराने तरीके से किया जाता, तो यह अर्थहीन होता। उदाहरण के लिये, भोजन को लीजिए: यदि कोई महसूस करता है कि वे एक समय का भोजन खा सकता हैं या उसके बिना रह सकते हैं, तो उस व्यक्ति के लिये उस भोजन का कोई मूल्य नहीं है। और यदि वह बहुत भूखा है और उसके सामने वह भोजन रखा जाता है, तो उसके लिये खाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि वह भूखा है। इस मुद्दे को ग़लत न समझिए। शरीर में किया गया कार्य एक निश्चित प्रभाव हासिल करने में सक्षम है, बिलकुल वैसे ही जैसे आत्मा के द्वारा किया गया कार्य अपना कुछ निश्चित प्रभाव हासिल करने में सक्षम है। वे इस आधार पर शरीर और आत्मा के बीच में अपना चुनाव करते हैं कि कौन सी पद्धति या पहलु किसी विशेष प्रभाव को हासिल करने के लिए सबसे अधिक लाभदायक होगी। उदाहरण के लिए, यदि बाहर बहुत गर्मी है, तो कपास से भरी हुई जैकेट पहनना वास्तव में बहुत असुविधाजनक होगा, परन्तु जाड़े में यह बहुत उपयुक्त है। सबसे लाभदायक पद्धति वह है जिसे चुना गया है। यह ऐसा नहीं है जैसा आप लोगों ने कहा था, कि कोई भी पुराना तरीका ठीक है-यह कि शरीर किसी भी विशेष छवि में प्रकट होकर काम कर सकता है या यह कि आत्मा काम कर सकता है भले ही वह लोगों से नहीं मिलता है और वे एक निश्चित प्रभाव हासिल करने में सक्षम होंगे। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। परमेश्वर का एक व्यवहारिक पक्ष है जिसे लोग नहीं देखते हैं। लोग हमेशा परमेश्वर के बारे में सोचते हैं कि वह अव्यावहारिक और अवास्तविक है-वे सोचते हैं कि वह केवल पुरानी चीज़ों को करता है जिसे वह बिना किसी विशेष अर्थ के सोचता है। वे सोचते हैं कि परमेश्वर की दृष्टि में वह अर्थ बस तुच्छ सामग्री से बना हुआ है-मानो वे जो कुछ चाहते हैं बस वही कहते हैं। लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि इसके अन्दर सच्चाई है। जिस तरह से परमेश्वर कार्य करते हैं वह अर्थपूर्ण है, और आवश्यकता के द्वारा बंधा हुआ है और सर्वोत्तम प्रभाव हासिल करता है। इन सब को एक विशेष उद्देश्य, अर्थ एवं योजना के लिहाज से किया जाता है। आप सोचते हैं कि परमेश्वर का कार्य बस यों ही बिना सोचे समझे किया जाता है? उसका एक सर्व-शक्तिमान पहलु है, परन्तु उसका एक व्यावहारिक पहलु भी है। उनके विषय में आप सभी का ज्ञान सिर्फ एक तरफा है, परमेश्वर की सर्वसामर्थता के विषय में और उससे भी बढ़कर उसके व्यावहारिक पहलु के विषय में आप सभी के ज्ञान के साथ कुछ समस्या है-उनके व्यावहारिक पहलु के विषय में आप लोगों का ज्ञान तो और भी अधिक समस्याग्रस्त है। आत्मा ने तीन चरणों में से प्रथम को क्रियान्वित किया था और शरीर ने दूसरे और तीसरे चरण को क्रियान्वित किया था। यह सबकुछ आवश्यकता के द्वारा बंधा हुआ था। यीशु(क) को लीजिए जिन्हें क्रूस पर कीलों से जड़ा गया था: क्या क्रूस पर आत्मा को कीलों से जड़ने का कोई अर्थ होता है? आत्मा को कोई दर्द महसूस नहीं होता है, अतः उसका कोई अर्थ नहीं होगा। क्योंकि मनुष्य पर विजय पाने के कार्य के इस चरण में, आत्मा देह का स्थान नहीं ले सकता था-आत्मा शरीर का कार्य नहीं कर सकता है, बिलकुल वैसे ही जैसे शरीर आत्मा का कार्य नहीं कर सकता है। कार्य के किसी भी चरण में, सर्वोत्तम परिणाम हासिल करने में और परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना के उद्देश्य का एहसास करने में देह या आत्मा में से किसी एक के चयन की हमेशा से ही एक निश्चित आवश्यकता रही है। परमेश्वर के पास एक सर्वशक्तिमान पहलु और एक व्यावहारिक पहलु है: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह कार्य के किस चरण में लगा हुआ है, वह हमेशा व्यावहारिक रूप से कार्य करता है। यह ऐसा नहीं है जैसा कुछ लोग सोचते हैं, कि परमेश्वर सोचते या बोलते नहीं हैं और जो कुछ उन्हें महसूस होता है वही करते हैं। उनके पास बुद्धि है और उनका अस्तित्व है, और यह उसकी हस्ती है। अपने कार्य को करने के लिए, उन्हें आवश्यक तत्व, बुद्धि और मनुष्य के लिए अपने सम्पूर्ण स्वभाव को प्रकट करने और प्रकाशित करने की ज़रूरत है कि वह उसे स्वीकार करे। वे बिना किसी आधार के कार्य नहीं करते हैं। वे व्यावहारिक रूप से बोलते हैं, वे दिन ब दिन कार्य करते हैं, और वे दिन ब दिन पीड़ा सहते हैं। उनके द्वारा सही जाने वाली यातनाएँ भी दर्दनाक होती हैं। यह ऐसा नहीं है मानो जब देहधारी परमेश्वर कार्य कर रहे होते हैं और बोल रहे होते हैं तब आत्मा उनके साथ होता है और जब वह काम नहीं कर रहे और बोल नहीं रहे होते हैं तब आत्मा चला जाता है। यदि यह बात होती, तो उन्हें कोई यातना नहीं सहना पड़ता और उन्हें देहधारी ईश्वर नहीं माना जा सकता था। लोग परमेश्वर के व्यावहारिक पहलु को नहीं देख सकते हैं, अतः लोग परमेश्वर को जानने में कभी समर्थ नहीं हैं-वे उन्हें पूरी तरह से और सच्चाई से नहीं जानते हैं। लोगों के पास परमेश्वर का केवल ऊपरी ज्ञान है: वे या तो यह सोचते हैं कि परमेश्वर व्यावहारिक और सामान्य है या यह सोचते हैं कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वसामर्थी है। ऐसी चीज़ें जिन्हें लोग कहते हैं वे जो कुछ उन्होंने सीखा है उससे निकली हैं-उनके पास परमेश्वर का वास्तविक ज्ञान नहीं है, और उनके पास उसका वास्तविक अनुभव नहीं है। देहधारण के आवश्यक तत्व पर इतना जोर क्यों दिया गया है? आत्मा के बारे में क्यों नहीं बोला गया है? देह के तत्व देह को प्रमुखता देते हैं। शरीर ही है जो मुख्य रूप से कार्य करता है; आत्मा का कार्य अनुपूरक है, और एक प्रकार की सहायता है। इस तरह से शरीर उनके कार्य के माध्यम से उस प्रभाव को हासिल करता है। एक मनुष्य सिलसिलेवार कदमों से परमेश्वर को जान पाता है। बाधाओं को पार करना तथा बहुत अधिक जानना मुश्किल है। परमेश्वर के सन्देश के जरिए आप लोग उन्हें थोड़ा और जान पाते हैं, परन्तु आप सब अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं, और आप लोगों के पास अब भी चीज़ों के तत्व की समझ नहीं है। आप सभी विश्वास करते हैं कि वह कार्य या तो शरीर में या आत्मा के द्वारा किया जा सकता है-यह कि आत्मा शरीर का स्थान ले सकता है। इस तरह से, आप लोग शरीर के महत्व और शरीर में उस कार्य को कभी नहीं समझ पाएँगे। आप कभी नहीं जान पाएँगे कि देहधारण क्या है।
पद टिप्पणियां:
(क) मूल पाठ "यीशु" को छोड़ देता है।
“मसीह की बातचीतों के अभिलेख” से

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