अध्याय 37.अपनी नकारात्मक स्थिति को हल करने के लिए आपको सत्य का उपयोग करना चाहिए

अधिकांश लोगों के पास ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिसकी हमने पहले चर्चा की थी, हालांकि वे पहले की तरह स्पष्ट नहीं हैं। इसका कारण यह है कि उस समय लोगों को सत्य का कोई ज्ञान नहीं था, और वे कुछ भी नहीं समझते थे। आजकल, आप अधिक सुनते हैं, और कुछ नहीं तो, आप सभी लोग कुछ मतों को समझते हैं। हालांकि, आपके अंदर कुछ गहरी जड़ों वाली परिस्थितियाँ हैं जो अभी खुली नहीं है। आप उस भ्रष्ट आचरण के आर-पार देख सकते हैं जो बार-बार आपके सामने प्रकट होता है और एक बार उसके प्रकट होने से, आप जागरूक हो जाते हैं; आप अपने प्रकट इरादों, शब्दों और कार्यों की प्रकृति को जानते हैं। लेकिन फिलहाल, आप उन चीजों को नहीं समझते हैं जो आपके भीतर गहरी हैं, वो चीजें जो अधिक छिपी हुई हैं और जो मानव प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। कभी-कभी, भले ही आप कुछ हद तक जानते हों, आपको नहीं लगता कि वे चीजें गलत हैं; कभी-कभी आप जानते तो हैं कि इस तरह से कुछ करना सही या गलत है, लेकिन फिर भी आप इसे स्पष्ट रूप से अलग नहीं कर पाते। इसका कारण यह है कि आप सत्य के बारे में स्पष्ट नहीं हैं। सही समझ तक पहुंच पाने की एक प्रक्रिया होती है। भले ही लोग पुराने या नए हों, वे इस समय सत्य को नहीं समझते हैं, और वे स्पष्ट समझ के स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं। वे केवल किसी मत के कुछ वाक्यांशों को समझते हैं, या कुछ नियमों का पालन करते हैं और फिर वहां रुक जाते हैं। इसका कारण यह है कि लोगों के अंदर वे परिस्थितियाँ हैं जो उन्हें भीतर प्रवेश करने से रोकती हैं, वे सभी अपनी अंदरूनी प्रकृतियों के द्वारा नियंत्रित होते हैं, और उनके जीवन के रूप में उनके पास परमेश्वर के वचन का तत्व नहीं होता। लोग अपनी प्रकृतियों से उत्पन्न चीजों की खोज करने में खुद सक्षम नहीं हैं, और इसे खोजने में असमर्थ होने के कारण, वे यह सोचने लग जाते हैं कि वे कुछ सुधर चुके हैं और कुछ नियमों का पालन करते हुए, कुछ मतों के बारे में बात करते हुए, और कुछ अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करने के माध्यम से उनका कोई कद बन चुका है, और उन्हें लगता है कि परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए यह पर्याप्त होना चाहिए। ये विचार साबित करते हैं कि वे बहुत उथले हैं और उनके पास सही कद नहीं हैं।
हालांकि कुछ परिस्थितियाँ जो लोगों के अंदर हैं वे परमेश्वर के खिलाफ विचार नहीं हैं, वे नकारात्मक नहीं, और लोगों को लगता है कि वे काफी उचित और उपयुक्त हैं, वे वास्तव में मानव प्रकृति के उत्पाद हैं। एक निश्चित अवस्था में, हालांकि लोगों के पास कुछ कद  है, ये चीजें अभी भी उनके अंदर हैं। यह अपरिहार्य है, और शायद किसी बिंदु पर, वे फट निकलेंगी। वे खुद को मदद नहीं कर सकते। लोगों में कुछ जागरूकता है, लेकिन वे स्पष्ट रूप से इन्हें (इन परिस्थितियों को) अलग नहीं करते, और वे नहीं जानते कि ये परिस्थितियाँ सही या गलत हैं; वे अपने दिल में यह सोचते भी हैं कि उन्हें पता क्यों नहीं चला। यह बात कोई असंभव-सी चीज़ की तरह लगती है। यही है वह बात जो लोगों से निपटना सबसे अधिक मुश्किल बना देती है। त्वचा पर हुईं बाहरी चोटों को आसानी से ठीक किया जा सकता है, लेकिन खून की बीमारियां का, जिसे लोग देख नहीं सकते हैं, इलाज करना आसान नहीं हैं। उन्हें इसका पता करने के लिए खून निकाल कर परीक्षण करवाना पड़ता है। जो चीजें लोगों के अंदर गहरी जड़ें ली हुईं हैं और जो मानवीय स्वभाव से उत्पन्न होती हैं, वे ही चीजें हैं जिस पर लोग जीवित रहने के लिए भरोसा करते हैं। इसलिए, लोग मानते हैं कि मानव स्वभाव से उत्पन्न होने वाली चीजें उचित हैं। ऐसा लगता है मानो, लोगों को इस तरह से होना चाहिए, और उन्हें इस या उस तरह की मंशा, आवश्यकता और इच्छा होनी चाहिए। एक भी व्यक्ति नहीं समझता कि सत्य तो सत्य है, जो कुछ भी मानव स्वभाव से उत्पन्न होता है वह भ्रष्ट है, और यह समूचा सत्य का उल्लंघन है। लोग इसे भांप नहीं सकते हैं और वे इसके बारे में अनजान हैं। विशेषकर लोग आजकल कुछ सरल मतों के बारे में कुछ-कुछ स्पष्ट रूप से बात कर सकते हैं, उनको थोड़ा-सा कद और अनुभव प्राप्त है, यदि वे थोड़े अशुद्ध हैं तो इसके प्रति वे उदासीन हैं, और उन्हें लगता है कि यही वह आधार है जिस पर उन्हें परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए और उनका अनुसरण करना चाहिए। दरअसल, यह एक गंभीर भूल है। लोगों को जो सही लगता है उसे सत्य के साथ मिश्रित नहीं करना चाहिए या त्रुटि की नींव पर सत्य का अनुसरण नहीं करना चाहिए। सत्य अशुद्ध नहीं। वर्तमान में ऐसे कई लोग हैं जो खुद को प्रोत्साहित करते हैं, और परमेश्वर के दिन और उनके द्वारा रूपान्तरण की प्रतीक्षा के आधार पर सत्य को खोजते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह की खोज करना सही है और कार्यवाई का पथ सही है, लेकिन उनका प्रारंभिक बिंदु मौलिक रूप से गलत है, और जो कुछ भी एक गलत प्रारंभिक बिंदु से आता है, वह हमेशा गलत होगा। लोग चाहे जिस स्तर पर भी हों, अगर वे इस तरह की परिस्थिति को अपने भीतर नहीं समझ पाते और वे इसे नहीं बदल सकते, तो यह एक बेकार इंजीनियरिंग परियोजना की तरह है, चाहे वे कैसे भी खोजें। यदि कोई प्रारंभिक बिंदु ही गलत है और  नींव भी गलत है, तो देर-सबेर उनकी परियोजना ढह जाएगी और संभल न पाएगी। इस तरह का व्यक्ति आज नहीं तो कल खतरे में होगा। क्या आप लोग इन शब्दों को समझते हैं? इतने सारे धार्मिक लोग क्यों हैं जो सही तरीके को स्वीकार नहीं कर सकते? क्योंकि परमेश्वर पर उनका विश्वास मौलिक रूप से दोषपूर्ण है; वे सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं और परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाते हैं। परमेश्वर के परिवार में कुछ ऐसे नेता हैं, जिनकी परिस्थितियाँ  बहुत बुरी हो गई हैं और जिनमें बहुत अधिक दोष हैं, जिन्हें उन्होंने हल नहीं किया है। काटने-छांटने और उनसे निपटने से कोई फायदा नहीं है, और अंत में, उनकी पुरानी बीमारियां फिर से उभर आती हैं, वे पूरी तरह से अपनी सच्ची प्रकृति को प्रकट कर देते हैं और हटा दिए जाते हैं। कुछ परिस्थितियाँ जो लोगों की हैं, वे कैंसर की तरह होती हैं: यदि इन्हें शुरू में ठीक नहीं किया जाता है, तो देर-सबेर वे भड़क उठेंगी और लोग अपने जीवन खो देंगे।
हर स्तर पर, लोगों की परिस्थितियाँ सीधे जुड़ी होती हैं इस बात से कि वे कितना प्रवेश कर चुके हैं और उन्होंने किस अनुपात में प्राप्त किया है। जब लोगों की परिस्थितियाँ अपेक्षाकृत सामान्य होती हैं, तो वे कुछ सच्चाइयों को समझते हैं और प्रवेश कर सकते हैं और परमेश्वर के वचनों के आधार पर कुछ वास्तविक बातें समझ सकते हैं, और वे दूसरों के लिए भरण-पोषण और सेवा प्रदान कर सकते हैं। कुछ लोगों की परिस्थितियाँ सही नहीं हैं, और भले ही वे अपनी खोज में दूसरों का अनुसरण करते हैं, और वे पढ़ते, सुनते हैं और संवाद भी करते हैं, वे अंततः सामान्य परिस्थितियों वाले लोगों की तुलना में बहुत कम प्राप्त करते हैं। यदि हमेशा मानवीय अशुद्धताएँ, उनके भ्रष्ट प्रकृतियों के खुलासे, और लोगों के विचारों और कल्पनाओं की विकृतियाँ रहेंगी, तो लोगों के अन्दर अस्पष्टता का आवरण अवश्य होगा। यह सत्य में किसी की प्रविष्टि को कैसे प्रभावित नहीं करेगा? केवल गंभीर मन वाले लोग सत्य को समझ सकते हैं, केवल शुद्ध हृदय वाले लोग परमेश्वर को देख सकते हैं; केवल आपके अंदर की चीजों को खाली करके ही आप आसानी से सत्य को प्राप्त कर सकते हैं। जब लोगों के दिलों में खलबली होती है, तो सत्य को समझना आसान नहीं है। केवल जो लोग सत्य को समझते हैं, वे ही अपनी परिस्थितियों के आर-पार कुछ हद तक देख सकते हैं, और समस्याओं के तत्व को देख कर ही कोई स्वयं अपनी प्रकृति को समझ सकता है। यदि लोगों की परिस्थितियाँ अंदर से सही और पूरी तरह से सामान्य हैं, तो उनके पास सही कद है; जब उन पर बात आती है तो वे फिसलने या शिकायत करने की संभावना नहीं रखते हैं। प्रत्येक चरण में जिस तरह से आप  तलाश करते हैं और जिस परिस्थिति में आप तलाश करते हैं, वे ऐसी चीजें हैं जिन्हें आप अनदेखी नहीं कर सकते हैं। लापरवाही अंततः मुसीबत लाएगी। जब आपकी परिस्थिति सामान्य होती है, तो आप सही रास्ते पर चलेंगे और सही तरीके से काम करेंगे और आप जल्दी से परमेश्वर के वचनों  में प्रवेश करेंगे। केवल इस तरह से जीवन की तलाश कर आप बड़े हो सकते हैं।
एक और परिस्थिति है जो लोगों के अंदर होती है जहां वे कुछ वर्षों के लिए परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और कुछ निपटने का और छँटाई का अनुभव करते हैं; वे आशीर्वाद प्राप्त करने के अपने इरादों से थोड़ा-सा जाने देने में सक्षम हैं; उनके दिल अधिक विश्राम में आ जाते हैं, और वे आशीर्वाद प्राप्त करने की खोज नहीं करते; उनके दिल स्वीकार कर रहे हैं, और वे तो केवल परमेश्वर के आयोजन को मानते हैं, उनके सिर कुछ झुके होते हैं, और चाहे परमेश्वर जो कुछ भी करें, वह उनके साथ ठीक है। यह स्थिति भी सही नहीं है। “जो कुछ भी परमेश्वर करते हैं, वह ठीक है, कुछ भी हो, मैं आशीर्वाद के लिए मांग नहीं करूँगा।” - इस तरह की परिस्थिति वाले लोग यह महसूस करते हुए प्रतीत होते हैं कि उनको तो सिर्फ परमेश्वर के आयोजन का पालन करना है। मैं आपसे पूछता हूँ : “क्या आप वास्तव में परमेश्वर के आयोजन का पालन करते हैं? क्या आपके पास वास्तव में इस पहलू की सच्चाई हैं?” सच्चे कद के बिना आप सचमुच समर्पण कैसे करेंगे? आप अभी भी सोचते हैं कि आप परमेश्वर के आयोजन का पालन कर रहे हैं! आजकल कुछ लोगों का रवैया है: मुझे आशीर्वाद प्राप्त करने या दुर्भाग्य प्राप्त करने की परवाह नहीं है। परमेश्वर जैसा चाहें वैसा कर सकते हैं! यह पूरी तरह से एक नकारात्मक और असंयुक्त स्थिति है; वे सच्चाई पर ध्यान नहीं देते, यह कहते हैं: “किसी भी स्थिति में यह परमेश्वर का आयोजन है, और अंत में, परमेश्वर हमारे भाग्य का फैसला करेंगे। हम कुछ भी तय नहीं करते हैं, इसलिए हम जिस किसी भी तरह खोजें, वही ठीक है।” यह निष्क्रिय हो जाना, सुस्त हो जाना है, और व्यक्तिपरक रूप से कोई प्रयास नहीं किया गया है। जिनकी इस तरह की स्थिति है क्या वे लोग प्रगति कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं?
मानसिकता का बदलना प्रविष्टि के लिए नाजुक रूप से महत्वपूर्ण है; यदि आपकी परिस्थिति बदलती है, और आपके रास्ते में कोई  भी रुकावट नहीं है, तो आप प्रभावी ढंग से खोज कर सकते हैं। लोग अपनी खोज के द्वारा सच्चाई में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं, या उनकी मांग में कितनी ताकत है, यह पूरी तरह से इस बात पर आधारित है कि उनकी स्थिति क्या है। अगर लोगों की स्थिति सामान्य है, तो उनकी खोज में ताकत होगी। अगर लोगों में ताकत नहीं होती है, अगर वे न तो गर्म और न ही ठंडे हैं, तो उनकी स्थिति निश्चित रूप से सामान्य नहीं होगी, उनके भीतर समस्याएं होनी चाहिए, और उन्हें निश्चित रूप से कुछ रोक रहा है: वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं लेकिन उनमें परिकल्पना नहीं होती और वे नहीं जानते कि कैसे खोजना है; या उन्होंने उन पर हो रहे पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है और उनके पास सत्य का प्रकाश नहीं है; या वे एक नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और सच्चे विश्वास को खो चुके हैं। ये सभी संभावनाएं होती हैं। मुझे पता है कि कुछ लोग हैं जो हमेशा परेशान होते हैं; वे हमेशा महसूस करते हैं कि उनकी आत्माओं में समस्याएं हैं: “मैं हमेशा गलत काम क्यों करता रहता हूँ? मुझसे हमेशा भूलें क्यों होती हैं? क्या ऐसा इसलिए है कि मेरे भीतर एक दुष्ट आत्मा है? अगर मुझमें एक दुष्ट आत्मा काम कर रही थी, तो क्या मेरा काम तमाम नहीं हो गया?” जिन लोगों में उन बुरी आत्माओं का अप्राकृतिक काम था, इन मामलों में विशेष रूप से बाधित हो जाना उनके लिए आसान होता है। हृदय के लिए यह बहुत खतरनाक है कि यह हमेशा संदेह में हो, और तब शैतान के द्वारा शोषण होना और उनके भय का सच होना सबसे आसान होता है। निपटने में यह सबसे कठिन स्थिति है। “यदि लोगों की आत्माएं सही नहीं हैं, तो वे समाप्त हो जाते हैं। आत्म-भाव ही सब कुछ तय करता है।” आप में कुछ लोग ऐसे हैं जो इस तरह से सोचने के प्रति उन्मुख हैं। यह मामला उनके लिए बाधक  बन जाता है, और इस परिस्थिति का परिणाम घबराहट में टूट जाना (‘नर्वस ब्रेकडाउन’) हो सकता है और वे अपने विश्वास को जारी नहीं रख पाएंगे। इस तरह की स्थिति सबसे अधिक खतरनाक है, और इसे जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी हल कर देना चाहिए। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपने दिलों में बेतुके विचार रखते हैं; वे हमेशा सोचते हैं: चूंकि परमेश्वर ही लोगों के भाग्य का पूर्व-निर्धारण करते और उन्हें चुनते हैं, और यह परमेश्वर ही हैं जो सब कुछ तय करते हैं, तो हम किसके लिए खोज रहे हैं? वे इस स्थिति में डूब जाएंगे और इससे बाहर निकल आने में सक्षम नहीं होंगे, और जब वे अन्य लोगों के साथ सहभागिता करेंगे तो उनकी नहीं सुनेंगे; वे कहेंगे, “मैं यह सब समझता हूं, मैं इससे बाहर नहीं निकल सकता।” जिस दिन वे वास्तव में समझेंगे, तो वे अफसोस करेंगे, “मैं उस समय इतना बेवकूफ कैसे बन सकता था? मैं इतना मूर्ख हूँ!” वास्तव में, सभी के भीतर असामान्य स्थितियां हैं; हर किसी की प्रकृति उनके अलग वातावरण और पृष्ठभूमि के आधार पर कुछ अलग रचती है। लोगों की प्रकृति तो समान होती है, लेकिन क्योंकि उनके वातावरण और उनकी पृष्ठभूमि भिन्न  हैं, या क्योंकि जो-जो काम वे लेते हैं, वे अलग हैं और उनकी अवस्थाएं अलग है, वे अलग-अलग परिस्थितियों का उत्पादन करते हैं। तथापि, लोगों की प्रकृतियों की कुल विशेषताएं समान हैं। जब एक वातावरण किसी और पर बन आता है, तो इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है; जब एक वातावरण खुद आप पर आता है, तो उस स्थिति का निर्माण होता है। कुछ लोग इस मामले में ठोकर खाते हैं, कुछ लोग उस मामले में ठोकर खाते हैं, कुछ लोग इस मामले में नकारात्मक हो जाते हैं, कुछ लोग उस मामले में कमजोर होते हैं। अंत में, जब वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि पवित्र आत्मा उन पर काम नहीं कर रहे हैं, और एक अन्य स्थिति अंदर से उठ आती है: “यदि पवित्र आत्मा काम नहीं कर रहे हैं और परमेश्वर ने मुझे त्याग दिया है, तो क्या मेरा काम तमाम नहीं हो गया? तब मैं विश्वास न भी करूँ तो ठीक है ; मुझे विश्वास है, लेकिन कुछ भी प्राप्त नहीं हो रहा। परमेश्वर मुझ में काम नहीं कर रहे हैं, तो क्या मेरा सफाया नहीं हुआ है?” इस तरह की एक और स्थिति सामने आती है, और पुरानी बीमारी अब भी एक नए रूप में बनी रहती है। जब लोगों के मरने का समय होता है, उन्हें बचाने के लिए कुछ भी नहीं होता। जो लोग सही राह पर वापस आने के काबिल हैं, वे वास्तव में कुछ हैं, याने कि, जिसे मरना नहीं है वह हमेशा बचा लिया जाएगा। जब लोग अपने रास्ते में खो जाते हैं, तो वे जाग सकते हैं और महसूस कर सकते हैं कि उनकी परिस्थितियाँ सामान्य नहीं हैं, वे भांप सकते हैं कि वे खतरनाक स्थितियों में हैं; और वे अपनी शक्ति के भीतर सब कुछ कर सकते हैं और वे उठ कर एक सामान्य स्थिति में वापस लौट सकते हैं। इस तरह के कद के लोग अब तक बहुत कम हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि लोगों का कद नहीं है? क्योंकि आप स्पष्ट रूप से नहीं देखते हैं, आप नहीं जानते, या आपको यह भी नहीं पता है कि किस स्थिति से क्या परिणाम निकलेगा। इसलिए, जब कुछ मामले लोगों पर आते हैं तो वे हमेशा कमज़ोर और नकारात्मक हो जाते हैं, और उनके लिए गिरना आसान होता है। कद होने का क्या मतलब है? यदि आप अपने आप को पकड़ पाने में असमर्थ हैं, यदि आप अक्सर सामान्य स्थिति में नहीं रह सकते हैं, और आप स्पष्ट रूप से अपनी असामान्य स्थिति  देख भी नहीं सकते हैं, तो आपके पास कद नहीं है। कद का मतलब है कि आप वास्तव में कुछ सच्चाई समझते हैं और सच्चाई आपका जीवन, आपका सहारा और आपके अस्तित्व की नींव बन गई है। आप पर जो कुछ भी बन आता है, आप सच्चाई के अनुसार जी सकते हैं, आपके कमज़ोर होने और गिरने की संभावना कम होगी, और सभी तरह की खतरनाक परिस्थितियों में डूबने की संभावना बहुत कम होगी। यह है कद का होना। क्या लोग वर्तमान में इस स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते! अधिकांश लोग आमतौर पर नकारात्मक और कमज़ोर होते हैं, वे सभी ऐसी स्थिति में डूब गए हैं कि वे आसानी से बाहर नहीं निकल सकते। भले ही वे बाद में बाहर निकल सकें, वे नहीं जान पाएंगे कि क्या हो रहा था, और वे नहीं जान पाएंगे कि उनकी परिस्थितियों में से कौन-सी सही नहीं थी। जब यह मामला उन पर फिर से आता है, वे फिर से फिसलेंगे और गए काम से हो जायेंगे, और पुरानी बीमारी लौट आयेगी। वे कमजोर होते हैं और उन पर आने वाले हर मामले में फंस जाते हैं। यदि लोग उनके साथ संवाद करते हैं और वे विचार करें, तो वे जाग सकते हैं, लेकिन वे अभी भी पूरी तरह से अपनी परिस्थितियों को समझ नहीं सकते हैं, न ही उनकी प्रकृति के रहस्योद्घाटन को थाम सकते  हैं। अंततः, वे बदल नहीं पाएंगे चाहे उनके पास कोई भी अनुभव हों; जब भी यह  मामला उन पर आता है, तब वे गिर जाते हैं, और जब भी वह मामला उन पर आता है तो वे कमज़ोर हो जाते हैं। अगर उन्हें कोई भी झटका पड़ता है, तो वे अपने काम को छोड़ना चाहते हैं; वे सामान्य रहने से अधिक बार नकारात्मक होते हैं और अक्सर उन पर काम करते हुए पवित्र आत्मा को वे खो देते हैं। यह वास्तविक स्थिति है जो हर किसी की है। भले ही लोग अपनी परिस्थितियों का सामना कर सकें या नहीं, चाहे वे सामान्य स्थिति में जी रहे हैं इसका विश्वास दिला सकें या नहीं, वे पूरी तरह से निर्भर हैं जिस दर्जे तक उन्होंने सत्य में प्रवेश किया है, उस दर्जे पर। इस से हम लोगों के सच्चे कदों को बेहतरीन देख सकते हैं। कुछ लोगों का कहना है: “मुझे लगता है कि मेरे पास परमेश्वर को समर्पित होने के संबंध में छोटा-सा कद है।” आपको लगता है कि आपके पास थोड़ा-सा ही कद है, लेकिन वास्तव में, आपका वर्तमान वातावरण उतना बुरा नहीं है, या इससे कोई खतरा नहीं है आप को, या यह स्थिति बहुत दर्दनाक नहीं है, और आप परमेश्वर के आयोजन के प्रति समर्पण करने में सक्षम हैं। क्या होगा अगर यह एक निश्चित हद तक  दर्दनाक हो? क्या आप तब भी पूरी तरह से समर्पित हो पाएंगे? अगर दर्द अय्यूब की पीड़ा की तरह असहनीय हो, तो क्या आप परमेश्वर के आयोजन के प्रति समर्पण करने में सक्षम होंगे? यही मुद्दा है कद के साथ। इसलिए, जब वातावरण अच्छा होता है, तो आप महसूस करते हैं: मैं परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकता हूँ, मैं परमेश्वर की व्यवस्था को समर्पण कर सकता हूँ, मेरे पास इच्छा और संकल्प है कि अंत तक पालन करूँ और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करूँ और अय्यूब की तरह ईश्वर की गवाही दूँ। आपको लगता है कि आपके पास यह इच्छा-शक्ति है, लेकिन जब इस माहौल से अधिक कुछ आप पर आ पड़ता है, जब आप पर अधिक से अधिक परीक्षण आते हैं, और जब आप पर अधिक से अधिक पीड़ा आती है, तो क्या आप डटे रहेंगे? क्या आप जानते हैं? क्या आप इसका पूर्व-अनुमान लगा सकते हैं? बहुत से लोग वास्तव में नहीं जानते कि वे कौन हैं, क्योंकि किसी के पास सत्य नहीं है, और वे वास्तव में खुद को जानने में असमर्थ हैं।
मसीह की बातचीतों के अभिलेख” से  

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