मैं ऐसा व्यक्ति हुआ करता था जो दुनिया की रीतियों के पीछे भागा करता था, मैं विलासिता भरा जीवन जीने के लिए खुद को त्यागना चाहता था, और मैं बस शरीर के आनंदों के बारे में चिंता किया करता था।
मैं अक्सर ही पूरी रात अपने दोस्तों के साथ केटीवी में रहा करता था, मैं आधी रात को जॉयराइड्स के लिए जाया करता था, मैं महासागर पर मछली पकड़ने के लिए जाया करता था, अच्छे खाने की तलाश में सब जगह घूमा करता था। मैं अपने आसपास के लोगों को देखा करता था, और वे सभी अच्छे खाने, अच्छी चीजें पहनने, और अच्छी चीजों को आनंद लेने के लिए प्रयत्नशील थे। मुझे लगता था कि ये ऐसी चीजें थी जिसके लिए मनुष्य को अपनी जिंदगी में काम करना चाहिए, इसी वजह से आपको धन कमाने हेतु कड़ी मेहनत करनी चाहिए, यही जिंदगी का लक्ष्य है जो हर किसी के पास होना चाहिए। केवल इन्हीं चीजों से, जिंदगी निरर्थक नहीं होगी। इन चीजों को हासिल करने के लिए, मैंने इस बात की चिंता नहीं कि मुझे कितनी दूर तय करती थी, तो मैं महासागर पार करके अमेरिका आ गया, और कई सालों तक संघर्ष करने के बाद, मैंने खुद का व्यापार शुरू किया। मेरे पास खुद की कार और खुद का घर था। मैं वह धन्य जीवन जी रहा था जिसका मैंने सपना देखा था। हर रोज मैं खाता, पीता और आनंद का पीछा तब तक करता, जब तक मैं भर न जाऊं और मेरा दिल संतुष्ट न हो जाए। मैं सोचता था कि जिंदगी जीने के इस तरीके से ही जीवन का कोई अर्थ है, और यह सब तब तक चलता रहा जब तक मुझे अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य नहीं मिला। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के बाद ही, मैं यह जान पाया कि सच्चे मायने में एक अर्थपूर्ण जीवन क्या है, और फिर मैंने जीवन के उज्जवल मार्ग में चलने की शुरुआत कर दी।
मई 2016 में, मेरी पत्नी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार से अवगत कराया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को पढ़कर, मैंने मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के छ: हजार साल की प्रबंधन योजना के बारे में जाना, और मैं यह भी समझ गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही यहोवा परमेश्वर है जिसने मिस्र से बाहर जाने में इजरालियों का नेतृत्व किया था, कि वह ही प्रभु यीशु है जिसे सलीब पर लटककर मानवजाति को छुटकारा दिया था, और अब सत्य को व्यक्त करने और मानव का न्याय, शुद्धिकरण करने और उसे बचाने का कार्य करने के लिए वह देहधारण करके वापस आ गया है...। कुछ ही समय बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया में कलीसिया की जिंदगी जीना शुरू कर दिया और वहां मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया के भाइयों व बहनों के संपर्क में आया। मैंने देखा कि वे सभी बहुत ईमानदार थे, वे जो भी बात बोलते थे उसमें कोई दिखावा या खोखली खुशी नहीं होती थी, और उनके संपर्क में रहने से मुझे ऐसी मुक्ति का एहसास मिलता था, जैसा पहले कभी नहीं मिला था।
जब मैंने कलीसिया की धर्मसभाओं में शामिल होना शुरू किया, तो मुझे बहुत निर्मल महसूस होने लगा था, और मैं भाइयों व बहनों के साथ धर्मसभा करना चाहता था और उचित रूप से सत्य का अनुसरण करना चाहता था और अपने जीवन के स्वभाव में बदलाव लाना चाहता था। लेकिन, चूंकि इस समय तक भी मैं इस शरीर की सहूलियतों की लालसा करता था और जीवन की विलासिता की खोज किया करता था, इसलिए भले ही मुझमें धर्मसभा करने और सत्य का अनुसरण करने की इच्छा थी, पर मैं अपनी मदद नहीं कर सकता था। एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझे रात्रिभोज के लिए निमंत्रण दिया, और उसी समय पर कलीसिया में एक धर्मसभा भी थी, जिस वजह से मुझे अपने अंदर एक विरोधाभास महसूस होने लगा। मुझे जाना चाहिए या मुझे नहीं जाना चाहिए? मैंने बार—बार खुद से यह प्रश्न किया: मुझे मजा करने के लिए बाहर गए हुए काफी समय बीत गया है। मेरे दोस्त के लिए भी मुझे आज निमंत्रित करना आसान नहीं था, तो मुझे जाना चाहिए। आखिरकार, मेरे दोस्त मुझे हर रोज निमंत्रण नहीं देते हैं, और मैं कलीसिया की धर्मसभा में अगली बार जा सकता हूं। इसलिए, मैंने यह अनुरोध किया कि मुझे कुछ काम है और कलीसिया की धर्मसभा में जाने की योजना को छोड़ दिया एवं उसके स्थान पर रात्रिभोज के लिए चला गया। हमने खाया, पिया, केटीवी के लिए गए, लेकिन घर वापस लौटते समय, मुझे अपने अंतर्मन में किसी भी प्रकार की खुशी का आभास नहीं हो रहा था। अपनी दिल की गहराई में, मुझे एक प्रकार के अकथनीय खालीपन का अहसास हो रहा था, मुझे अपराधबोध भी महसूस हो रहा था। मैं बीते समय के बारे में सोचा। जब मैं अपने दोस्तों व साथी ग्रामीणों के साथ भोजन कर रहा था, तो वे सभी खाने की मेज पर मेरे साथ बहुत ज्यादा मैत्रीपूर्ण थे, लेकिन मेरी पीठ पीछे अपना दिमाग चला रहे थे और योजना बनाने की कोशिश कर रहे थे कि मुझसे मेरा धन कैसे ठगा जाए। उन सबसे निपटते हुए मुझे काफी थकान महसूस होने लगी थी। मैं बस ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं खोज पाया, जो उन चीजों के बारे में बात करे, जिनकी मुझे फिक्र है। मैं आज बाहर गया और अपने दिल के संतुष्ट होने तक पीता और खाता रहा, और मैंने अपने दोस्तों को भी संतुष्ट किया है, लेकिन इससे मुझे मिला क्या? मुझे खाली और असहाय महसूस हो रहा था, मुझे महसूस हुआ कि मैंने परमेश्वर को निराश किया, और मुझे अपने भाइयों और बहनों के लिए भी बुरा लगा।
हालांकि, मेरी आत्मा के इस खालीपन, खुद को दोष देने की इस भावना में भी, मैं खुद को विषयी विलासिताओं की इस दुनिया के प्रलोभनों से आजाद नहीं करवा पाया था। मेरे लिए, मैं आनंद के जीवन, इस शरीर से संबंधित चीजों के लिए खुद को त्यागने के लिए लालायित था, लेकिन परमेश्वर ने अनुसरण के इन गलत दृष्टिकोणों को बदलने की व्यवस्था की थी और एक प्रायोगिक तरीके का वातावरण स्थापित किया था। राष्ट्रीय दिवस के आने के साथ, मेरी पत्नी ने मुझे सुझाव दिया: “बस साधारण तरीके से उत्सव मनाते हैं, और फिर हमारे पास जो भी समय बचेगा उसमें परमेश्वर के कुछ और वचन पढ़ सकते हैं और परमेश्वर के परिवार के कुछ वीडियोज़ देख सकते हैं ताकि हम और भी ज्यादा सत्य जान सकें और परमेश्वर के उद्धार के अनुग्रह को समझ सकें।” लेकिन मैंने अपनी पत्नी की बातें दिल से नहीं मानी, और इसके स्थान पर छुट्टियां का जश्न मनाने की तैयारियां करने में लगा गया। मैं ध्यानपूर्वक चुना कि मुझे कौन सा मार्ग लेना था, और फिर मैं बाजार गया एवं खाने की सभी सामग्री और वे सभी चीजें खरीदा लाया, जिनकी जरूरत मुझे होती। मैंने अपनी पत्नी के साथ समुद्रतट पर जाने का फैसला लिया और अपना खुद का छोटा बार्बक्यू बना लिया। तो जब राष्ट्रीय दिवस आया, तो मैंने अपनी पत्नी को अपने साथ लिया और हम खुशी—खुशी कार में निकल गए। हालांकि, सबकुछ योजना के अनुसार नहीं हो रहा था, पूरे रास्ते यातायात की भीड़ थी, और इस सफर का आधा रास्ता तय करने पर हमें पता चला कि जीपीएस ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था, जिस वजह से हम गलत रास्ते पर जा रहे थे। हमारे गंतव्य तक पहुंचना आसान नहीं था, और अंत में, जब हम समुद्रतट पर पहुंचे, तो हवाएं इतनी ज्यादा तेज थी, कि हमारे अपना बार्बक्यू बनाना असंभव हो गया था। इसलिए, मेरी पत्नी ने मुझे कार घुमाने और वापस घर चलने के लिए कहा, लेकिन मेरी ऐसा करने की इच्छा नहीं थी। मैं निवेदन किया कि हम ड्राइव करके आस—पास में ऐसा पार्क खोजते है, जहां हम अपना बार्बक्यू बना पाएं, लेकिन हम जिन तीन पार्कों में पहुंचे वे लोगों से भरे हुए थे, और वहां कार पार्क करने की भी जगह नहीं थी। इतना सबकुछ हो जाने के बाद, मैं अनिच्छापूर्वक ड्राइव करके वापस घर आ गया। घर लौटते समय भी रास्ता पहले की तरह यातायात से भरा था। हमने असल में अपरान्ह भोजन के लिए बार्बक्यू की व्यवस्था की थी, लेकिन अब तक शाम 4 बजे से ज्यादा समय हो गया था, और हमने तब भी कुछ भी नहीं पकाया था। हम भूखे थे। आमतौर पर, मुझे यह महसूस होता है कि मैं सही हूं और आत्मविश्वास से भरा हुआ है, लेकिन इस बार मैं गुस्सा नहीं था, और मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता था। मैं बस चुप बैठा था और नाखुश महसूस करते हुए वापस लौट रहा था। उसी समय अचानक, मेरे आगे वाली कार ने ब्रेक लगा दिया, और इसी वजह से मुझे भी तुरंत ब्रेक लगाना पड़ा गया। भले ही, मेरी कार अपने आगे वाली कार से नहीं भिड़ी थी, लेकिन मेरे पीछे वाली कार मेरी कार से भिड़ गई। सौभाग्य से, किसी को चोट नहीं लगी, और कार की सतह पर बस थोड़ी सी खरोंच आ गई थी। मैं जानता था कि परमेश्वर ने इस घटना की अनुमति दी थी, इसलिए मैंने दूसरे ड्राइवर को दोष नहीं दिया, और मैं बस ड्राइव करते हुए वहां से निकल गया। मैं खुद में सोचा: अरे, इस छुट्टी के लिए मैंने ध्यानपूर्वक जितनी भी योजनाएं बनाई थी, वे सभी बर्बाद हो गई, यह वाकई सत्य है कि बदलाव कभी भी परिवर्तन के साथ नहीं चल सकते हैं, और सबकुछ परमेश्वर ही व्यवस्थित करता है। मुझे जीवन की विलासिता हेत खुद को त्यागने के लिए आज बाहर नहीं जाना चाहिए था। मुझे अपने खुद के स्वभाव पर भरोसा नहीं करना चाहिए था!
जब हम वापस घर पहुंचे, तो मेरी पत्नी और मैंने एक साथ परमेश्वर के वचनों के कुछ अवतरण पढे: “अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथकों और पौराणिक कथाओं के रूप में मानते हैं। लोग, अपने हृदयों में, परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति कि परमेश्वर का अस्तित्व है और सभी चीज़ों पर प्रभुत्व धारण करता है, उदासीन बन जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रह जाते हैं। मनुष्य केवल खाने, पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है। ...कुछ लोग स्वयं इस बात की खोज करने का उत्तरदायित्व ले लेते हैं कि आज परमेश्वर अपना कार्य कहाँ करता है, या यह तलाशने का उत्तरदायित्व ले लेते हैं कि वह किस प्रकार मनुष्य के गंतव्य पर नियंत्रण करता और उसे सँवारता है।”(“वचन देह में प्रकट होता है” से “परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है” से)“होता है और यह ऐसा संसार है, जो और अधिक ऐसा होता चला जा रहा है, जब लोग संसार को देखते हैं, उनके हृदय इसकी ओर आकर्षित होते हैं और अनेक लोग स्वयं को इसके बन्धन से मुक्त करने में असमर्थ रहते हैं.… यदि तुम उन्नति के प्रयास नहीं करते और तुम आदर्शरहित हो, तो तुम इस पापमय लहर के द्वारा विनष्ट कर दिए जाओगे।”(“वचन देह में प्रकट होता है” से “अभ्यास (2)” से)सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन दुनिया की रीतियों के सार को बिल्कुल सरल और स्पष्ट बना देते हैं। दुनिया की रीति बस शैतान का मनुष्य को बहकाना और उसने भ्रष्ट बनाना है। यह सब बस वे चालें और योजनाएं हैं, जो मनुष्य को नष्ट करने के लिए हैं। शैतान मनुष्य को छलने और उसे नीचा दिखाने के लिए खाने, पीने, विलासिता का पीछा करने और शरीर को आराम देने अन्य चीजों का इस्तेमाल करता है। एक बार जब मनुष्य का दिल इन चीजों का आदी हो जाएगा जो शरीर से संबंधित है, तो वह सकारात्मक चीजों का अनुसरण करने का इच्छुक नहीं रह जाएगा और वह परमेश्वर से और भी ज्यादा दूर होता जाएगा, जिसकी वजह से वह शैतान द्वारा नष्ट करके बंदी बना लिया जाएगा। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के माध्यम से, मुझे यह आभास हुआ कि अनुसरण करने पर मेरा नजरिया पूरी तरह से गलत था। मेरी चिंता का विषय चाहे जो भी हो, भले ही वह खाना, पीना, शरीर के सुखों का पीछा करना या दूसरों से बेहतर जीवन की खोज करना हो, ये सभी चीजें शैतान द्वारा मानव जाति को भ्रष्ट करने के परिणामस्वरूप ही बनी हैं। मैंने अपने खुद के अनुभवों से इसकी पुष्टि की है कि जब व्यक्ति उन चीजों का पीछा करता है जो शैतान से संबंधित है, तो वह और भी ज्यादा भ्रष्ट, एवं और भी ज्यादा दुराचारी तथा व्यभिचारी होता जाता है। यह बस उनके लालच, उनके स्वार्थ, उनकी क्रूरता और उनके कपट को ही बढ़ाएगा। वे पाप में जीते रहेंगे, और उनमें सामान्य मानवता नहीं रह जाएगी। भले ही मनुष्य इन चीजों का उत्तरोत्तर आनंद ले, भले ही मनुष्य इन चीजों ज्यादा से ज्यादा हासिल करे, लेकिन अंत में, वह फिर भी अधर में लटका होगा। यदि मनुष्य के पास ये सभी चीजे हैं लेकिन वह परमेश्वर के समक्ष नहीं आया है, तो उसका जीवन तब भी दर्द में होगा, और यह किसी भी महत्व या आदर्श के बिना होगा। केवल परमेश्वर के समक्ष आने पर और परमेश्वर में विश्वास करने एवं परमेश्वर की पूजा करने से ही मनुष्य उचित जीवन जीने के मार्ग पर चलेगा, और केवल तब ही मनुष्य खालीपन और बुराई से खुद को मुक्त करा पाएगा। अत:, मैंने अपनी जिंदगी जीने के मार्ग को बदलने और जीवन के सही मार्ग पर चलने का फैसला किया।
जब मैंने अपने भाइयों और बहनों को परमेश्वर के लिए खुद को सक्रिय रूप से व्यय करते हुए देखा, जब मैंने उन्हें पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते और अपने अर्थपूर्ण जीवन का अनुसरण करते हुए देखा, तो मुझे भी इन चीजों का अनुसरण करने और उस तरीके से जीने की इच्छा महसूस हुई, जैसे सच्चे लोग परमेश्वर की जरूरत के अनुसार जीते हैं। इसलिए, नियमित धर्मसभा के अलावा, मैं अपने खुद के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए भी समय खोजना चाहता था। इसी समय कलीसिया ने मेरे लिए कुछ कर्तव्यों की व्यवस्था की। वे चाहते थे कि मैं कार लेकर अपनी दो बहनों को कहीं ले जाऊं, और वे चाहते थे कि मैं अगले हफ्ते उन्हें वापस वहां से ले आऊं। पहली बार जब यह जिम्मेदारी मुझे दी गई, तो मैंने खुशी—खुशी इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन जब मुझे यह काम करने वाले भाई व बहनें चले गए, तो मुझे दूसरे विचार आना शुरू हो गए और कुछ अफसोस भी हुआ: “हे मनुष्य, संभवत: जिस दिन मुझे इन बहनों को लेकर जाना है उस दिन मान लोग कि मेरी छुट्टी है, और अगले हफ्ते मुझे उन्हें लेने भी जाना है। मुझे इन दोनों दिन सुबह बहुत जल्दी ही सोकर उठना होगा। इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह सफर कितना लंबा है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि उस सड़क में यातायात से बचना काफी आसान है। इसलिए सबसे जल्दी जाना सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि उस समय सबसे कम कारें होती हैंं, लेकिन कौन जाने कि वापस लौटते समय मुझे कितनी देर तक यातायात में फंसना होगा? मेरा पूरा समय यातायात में फंसकर बैठे हुए बर्बाद हो जाएगा, ओर मेरी दिन की छुट्टी भी नहीं होगी...।” जब मेरी पत्नी ने मुझे इस तरह की शिकायत करते हुए सुना, तो उसने मेरे साथ सहभागिता की: “जैसा तुमने सोचा है, अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना उतना आसा नहीं है। निश्चित रूप से, इसके लिए तुम्हें सत्य को अभ्यास में लाना होगा। सत्य का अभ्यास करना अपने शरीर को त्याग देना है, और इस अर्थ यह है कि तुम्हें कठिनाईयों का सामना करना होगा और कीमत चुकानी होगी। इसके बारे में सोचो, तुम बाहर जाया करते थे और पिया, खाया और विलासिता का अनुसरण किया करते थे, और भले ही एक थकाऊ दिन के बाद तुम वाकई मजा नहीं करते थे, लेकिन तुमने कभी शिकायत नहीं की। लेकिन अब जबकि तुम्हें एक काम दिया गया है और इस पर तुम्हें अपना कुछ समय खर्च करने की जरूरत है, और तुम्हें एक ऐसे मार्ग पर चलने की जरूरत है जिसमें कठिनाइयां हैं, लेकिन अपने दिल में तुम ऐसा नहीं करना चाहते हो। भले ही, बाहर से यह लगता हो कि तुम्हारे लिए यह कर्तव्य तुम्हारे भाइयों व बहनों द्वारा निश्चित किया गया है, लेकिन असल में, किसी निश्चित व्यक्ति के लिए तुम इस कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हो, बल्कि परमेश्वर को संतुष्ट करने और परमेश्वर के प्रेम की अदायगी करने के लिए कर रहे हो। आज तुम्हे यह कर्तव्य दिया गया है, और यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्थान है, और यह तुम पर बरसाया गया परमेश्वर का प्रेम है। तुम्हें इसे मानना चाहिए। अपने पहले कर्तव्य पर खुद को पछताते हुए मत छोड़ो।” ऐसा कहने के बाद, उसने मुझे परमेश्वर के वचन का एक अवतरण पढ़ने के लिए दिया: “हर एक चीज़ जो तू करता है उसके प्रयासों के लिए तुझे एक कीमत चुकानी होती है। बिना वास्तविक कठिनाई के, तू परमेश्वर को संतुष्ट नहीं कर सकता है, यह परमेश्वर को संतुष्ट करने के कुछ करीब तक भी नहीं पहुंचता है, और ये केवल एक खोखली बातें हैं! क्या ये खोखली बातें परमेश्वर को संतुष्ट कर सकती है? जब परमेश्वर और शैतान आत्मिक क्षेत्र में युद्ध करते हैं, तुझे परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और उसके लिए गवाही में तुझे किस प्रकार से दृढ़ खड़े रहना चाहिए? तुझे यह जानना चाहिए कि जो कुछ भी तेरे साथ होता है वह एक महान परीक्षण है और वह समय है जब परमेश्वर चाहता है तू उसके लिए एक गवाह बनो। बाहरी तौर पर, ये एक बड़ी बात जैसी न दिखाई दें, परन्तु जब ये बातें होती हैं तब यह प्रकट होता है कि तू परमेश्वर से प्रेम करता है या नहीं। यदि तू करता है, तो तू उसके लिए गवाही देते समय दृढ़ खड़ा रह पाएगा, और यदि तूने उसके लिए प्रेम को अभ्यास में नहीं लाया है, तो यह दिखाता है कि तू वह नहीं हो जो सत्य को अभ्यास में लाता है, यह कि तू बिना सत्य के है, और बिना जीवन के भी है, कि तू भूसे के समान है! लोगों के साथ जो कुछ भी होता है यह तब होता है जब परमेश्वर लोगों से अपेक्षा रखता है कि वे उसके लिए गवाही के लिए दृढ़ बने रहें। इस क्षण में तेरे साथ कुछ भी बड़ा नहीं घटा है, और तू महान गवाही नहीं दे रहा है, परन्तु तेरे जीवन का प्रत्येक विस्तार परमेश्वर के लिए गवाही से सम्बन्ध रखता है। ” ( “वचन देह में प्रकट होता है”से “केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है” से).
जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन पढ़ लिया, जब मैंने अपनी पत्नी की बातों को सुन लिया, तब मुझे आभास हुआ कि परमेश्वर का मुझे यह कर्तव्य देना उसका मुझे मेरी असली परीक्षा लेना है, यह देखने के लिए कि मैं परमेश्वर को संतुष्ट करते हुए कठिनाइयों को सह सकता हूं या नहीं। लेकिन मैंने यह प्रकट कर दिया कि मैंने केवल अपने खुद के शरीर के हितों पर विचार किया, कि मैंने केवल अपने निजी लाभ व हानियों के बारे में सोचा, कि मैं कष्ट सहने और कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं था। मैंने देखा कि मैं बहुत ज्यादा स्वार्थी होता जा रहा था, कि मेरे दिल में पीने, खाने और अन्य आनंदों जैसी शारीरिक विलासिताओं ने मेरे दिल में परमेश्वर के दर्ज को मात दे दी थी। मेरे पास जो कुछ भी था उसे व्यय करके, खाने, पीने और आनंद का पीछा करने के लिए कोई भी कीमत अदा करके बहुत ज्यादा खुश था, लेकिन जब मुझे ऐसा कर्तव्य दिया गया जिसमें मुझे परमेश्वर के लिए अपना समय व्यय करने की जरूरत थी, तो मैंने अपने लाभ व हानियों की गणना करनी शुरू कर दी, और मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक नहीं था। मेरे इन विचारों और कार्यों ने शैतान को मुझ पर हंसने दिया था, और परमेश्वर के समक्ष गवाही देने की अनुमति नहीं दी थी। जब मुझे ये बातें समझ में आ गई, तो मैं तुरंत ही परमेश्वर के समक्ष गया और उससे प्रार्थना कि वह मुझे यह सुनिश्चित की इच्छाशक्ति दे कि मैं अपने शरीर को त्याग सकूं और फिर शैतान का अनुसरण न करूं, ताकि मैं परमेश्वर की गवाह दूं और मैं जिस आध्यात्मिक लड़ाई था, उसमें शैतान को हरा दूं! अपने कर्तव्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदल देने के बाद, अपने प्रायोगिक सहयोग में, मैंने निश्चित रूप से परमेश्वर के आशीर्वाद को देखा। इससे फर्क नहीं पड़ता था कि मैं कब अपनी बहनों को उनके स्थान पर ले जा रहा था या उन्हें वापस लेकर आ रहा था, न ही इससे कि उस जगह की ओर मुझे यातायात की काफी भीड़ का सामना करना पड़ता। यह बात पूरी तरह से मेरे विचारों से निकल गई थी, और मेरा दृष्टिकोण यथार्थ रूप से साफ हो गया था। पहली बार, मैंने शांति और खुशी की उस भावना का अनुभव किया, जो कर्तव्य का निर्वहन मेरे लिए लाया था, मैंने यह भी देखा कि जब लोग अपने शरीर को त्याग देते हैं और परमेश्वर को संतुष्ट करने का अभ्यास करते हैं, तो परमेश्वर न केवल उनके लिए मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि उन्हें सत्य को समझने और उसके कर्मों को देखने की अनुमति भी देगा। मुझे अचानक ही महसूस हुआ कि इससे मुझे छुट्टियों में बाहर जाने या बेहतरीन भोजन खाने से भी ज्यादा खुशी मिलती थी। जैसा कि मैंने पाया, कि छुट्टी के दिन ऐसा करना समय की बर्बादी नहीं है। यह असल में काफी महत्वपूर्ण है!
इन प्रायोगिक अनुभवों के अंदर, मैं खुद के लिए यह जानने में सक्षम था कि अपने शरीर को त्याग देने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए कर्तव्य का निर्वहन करने का मीठा स्वाद क्या है। मैंने देखा कि परमेश्वर ने मुझे शैतान के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए यह सब किया है, ताकि जल्द ही एक दिन मैं सत्य का पालन करने के सच्चे मार्ग पर चल सकूं। ये सारी चीजें परमेश्वर का प्रेम और परमेश्वर का उद्धार है। कुछ दिन गुजर गए और फिर मुझे एक और भाई से कॉल मिली। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं कुछ भाइयों व बहनों को लेने के लिए दूसरे राज्य में जाना चाहूंगा, और थोड़ी सी भी हिचकिचाहट के बिना मैं इसके लिए राज़ी हो गया। यह बात स्वीकार करने के बाद मुझे कोई भी उलाहना महसूस नहीं हुई। मुझे जो करना था, मैं उसे करने के लिए पूरी तरह से इच्छुक और खुश था, और वह पूरी यात्रा निर्विघ्न रही। उन भाइयों व बहनों को उनके गंतव्य पर सुरक्षित छोड़ने के बाद, मुझे खुद पर गर्व महसूस होता था, क्योंकि यह पहली बार था जब मैंने एक कर्तव्य इच्छापूर्वक, किसी भी अशुद्धि के बिना पूरा किया था। इससे मैंने यह भी सीखा कि जीव को जिस कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए, उसका निर्वाह करना वाकई वह सबसे महत्वपूर्ण चीज है, जो एक व्यक्ति कर सकता है। मैं अब बिल्कुल भी पीना, खाना और आनंदों का पीछा नहीं करना चाहता था, मैं अब शरीर के आनंदों का पीछा नहीं करना चाहता था, और मैं बस सत्य का अनुसरण करना, सत्य को स्वीकार करना और सत्य का अभ्यास करना चाहता था, ताकि जल्द ही किसी दिन मैं सच्चे मायने में परमेश्वर को प्रेम करने वाला व्यक्ति बन सकूं। मेरे जीवन में ये छोटी चीजें मुझे उस तरीके से बदलने आई हैं जिनके बारे में मुझे नहीं पता है। मेरा जीवन अब पहले की तरह दूषित और भ्रष्ट नहीं था। मैं बदलना और चीजों के प्रति सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया है। यह ऐसा है जैसे कि मैंने अपनी जिंदगी के बिल्कुल नए अध्याय को शुरू कर दिया है। अपने दिल में, मैं ऐसी मिठास और आनंद महसूस करता हूं जिसका अनुभव मैंने पहले कभी नहीं किया था, और मैं जीवन के इस उज्ज्वल मार्ग की ओर मुझे ले जाने के लिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आभारी हूं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का यश रहे!
0 टिप्पणियाँ