परमेश्वर के दैनिक वचन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I" (अंश 5)


उत्पत्ति 17:4-6: "मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।"
यह वचन वह वाचा थी जो परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधी थी, साथ ही साथ परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को आशीष देने की वाचा भी थीः परमेश्वर अब्राहम को जातियों का पिता बनाएगा, और उसे बहुत ही अधिक फलवंत करेगा, और उससे अनेक जातियाँ बनाएगा, और उसके वंश में राजा पैदा होंगे। क्या तुम इन वचनों में परमेश्वर के अधिकार को देखते हो? और ऐसे अधिकार को कैसे देखते हो? तुम परमेश्वर के अधिकार की हस्ती के किस पहलु को देखते हो? इन वचनों को नज़दीक से पढ़ने से, यह पता करना कठिन नहीं है कि परमेश्वर का अधिकार और पहचान परमेश्वर के कथनों में स्पष्टता से प्रकाशित है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर ने कहा "मेरी वाचा तेरे साथ बनी रहेगी, इसलिए तू ... मैं ने तुझे ठहरा दिया ... मैं तुझे बनाऊँगा...," जैसे वाक्यांश "तू बनेगा" और "मैं करूँगा," जिसके वचन परमेश्वर की पहचान और अधिकार के दृढ़ निश्चय को लिए हुए हैं, और एक मायने में, सृष्टिकर्ता की विश्वासयोग्यता का संकेत है; दूसरे मायने में, वे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए विशिष्ट वचन हैं, जिनमें सृष्टिकर्ता की पहचान है—साथ ही साथ रूढ़िगत शब्दावली का एक भाग भी है। यदि कोई कहता है कि वे आशा करते हैं कि एक फलाना व्यक्ति बहुतायत से फलवंत होगा, और उससे जातियाँ उत्पन्न होंगी, और उसके वंश में राजा पैदा होंगे, तब निःसन्देह यह एक प्रकार की अभिलाषा है, और यह आशीष की प्रतिज्ञा नहीं है। और इस प्रकार, यह कहने की लोगों की हिम्मत नहीं होगी, "कि मैं तुम्हें ऐसा बनाऊँगा, और तुम ऐसे हो...," क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास ऐसी सामर्थ नहीं है; यह उनके ऊपर निर्भर नहीं है, और भले ही वे ऐसी बातें कहें, उनके शब्द खोखले और बेतुके होंगे, जो उनकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के द्वारा उकसाए गए होंगे। यदि वे महसूस करें कि वे अपनी अभिलाषाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं तो क्या किसी में हिम्मत है कि ऐसे विशाल अन्दाज़ में बात करे? हर कोई अपने वंशों के लिए अभिलाषा करता है, और यह आशा करता है कि वे दूसरों से आगे बढ़ जाएँगे और बड़ी सफलता का आनंद उठाएँगे। उन में से कोई महाराजा बन जाए तो उसके लिए क्या ही सौभाग्य की बात होगी! यदि कोई एक हाकिम बन जाए तो अच्छा होगा, वह भी—जब तक वे एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। यह सब मनुष्य की अभिलाषाएँ हैं, परन्तु लोग केवल अपने वंशों के ऊपर आशीषों की अभिलाषा कर सकते हैं, और किसी भी प्रतिज्ञा को पूर्ण और सच्चा साबित नहीं कर सकते हैं। अपने हृदयों में, हर कोई जानता है कि उसके पास ऐसी चीज़ों को प्राप्त करने के लिए सामर्थ नहीं है, क्योंकि उनका सब कुछ उनके नियन्त्रण से बाहर है, और इस प्रकार वे कैसे दूसरों की तक़दीर का फैसला कर सकते हैं? परमेश्वर क्यों ऐसे वचनों को कह सकता है उसका कारण यह है क्योंकि परमेश्वर के पास ऐसा अधिकार है, और सभी प्रतिज्ञाएँ जो उसने मनुष्य से की हैं वह उन्हें पूर्ण और साकार करने, और सारी आशीषें जिन्हें वह मनुष्य को देता है उन्हें उन तक पहुँचाने में सक्षम है। मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था, और किसी को बहुतायत से फलवंत करना परमेश्वर के लिए बच्चों का खेल है; किसी के वंश को समृद्ध करने के लिए सिर्फ उसके एक वचन की आवश्यकता होगी। उसे अपने लिए ऐसे कार्य करने हेतु पसीना बहाने, या अपने मस्तिष्क की माथापच्ची करने या उसके साथ अपने आप को गठानों में बाँधने की कभी आवश्यकता नहीं होगी; यह परमेश्वर की ही सामर्थ, और परमेश्वर का ही अधिकार है।

— "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I" से उद्धृत
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