जब मैं मौत के कगार पर था, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरी मदद के लिए आया

वांग चेंग, हेबेई प्रांत
प्रभु यीशु मसीह में मेरे विश्वास रखने के दौरान, सीसीपी ने मेरा उत्पीड़न किया। सरकार ने प्रभु यीशु में मेरी आस्था के “अपराध” को मुझे पीड़ा देने और मेरा दमन करने के कारण की तरह इस्तेमाल किया। यहाँ तक कि उसने ग्राम काडर को यह आदेश दिया था कि मेरी आस्था संबंधी मान्यताओं की छानबीन करने के लिए वे अक्सर मेरे घर आते रहें। 1998 में, मैंने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया। जब मैंने स्वयं सृष्टिकर्ता द्वारा व्यक्त वचन सुने, तो मैं जितना उत्साहित और द्रवित हुआ, उसे मैं बयाँ भी नहीं कर सकता। परमेश्वर के प्रेम से हौसला पाकर, मैंने संकल्प लिया: चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अंत तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूँगा। उस दौरान, मैं पूरे जोश से सभाओं में शामिल होता था, सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करता था, जिसने सीसीपी सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस बार, उनके द्वारा मेरा सबसे भयानक उत्पीड़न हुआ। यह इतना दुखद था कि मैं अपने घर में भी सामान्य तौर पर अपनी आस्था का अभ्यास नहीं कर पा रहा था। मुझे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए मजबूरन घर छोड़ना पड़ा।
2006 में, मेरा कार्य था परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की छपाई का काम देखना। एक बार कुछ भाई-बहन और मुद्रण कम्पनी का ड्राइवर किताबें लेकर जा रहे थे, बदकिस्मती से सीसीपी पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। ट्रक में रखी “वचन देह में प्रकट होता है” की दस हज़ार प्रतियाँ ज़ब्त कर ली गईं। बाद में, ड्राइवर ने दस अन्य भाई-बहनों के नाम उजागर कर दिए। उन सबको भी एक-एक करके हिरासत में ले लिया गया। इस घटना ने दो प्रांतों में तहलका मचा दिया, केंद्रीय अधिकारी सीधे ही इस मामले पर नज़र रख रहे थे। जब सीसीपी को पता चला कि मैं अगुवा हूँ, तो उन्होंने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी, मेरे काम से जुड़े हर मामले की छानबीन के लिए उन्होंने सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती कर दी। हम जिस मुद्रण कम्पनी के साथ काम करते थे, उसकी दो कारें और एक वैन उन्होंने ज़ब्त कर ली और उनकी 65,500 चीनी मुद्रा का गबन कर लिया। जो भाई-बहन उस दिन ट्रक में थे, उनकी 3,000 चीनी मुद्रा भी उन्होंने चुरा ली। इसके अलावा, पुलिस ने दो बार आकर मेरे घर की तलाशी ली। वे जब भी आते, दरवाज़े को लात मारते, मेरा सामान तोड़-फोड़ देते, और मेरे पूरे घर को उलट-पुलट देते। वे लोग डाकुओं से भी ज़्यादा कमीने थे! उसके बाद, चूँकि सीसीपी सरकार मुझे ढूँढ़ नहीं पायी थी, इसलिए उसने मेरे पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया और मेरे पते-ठिकाने के बारे में उनसे पूछताछ करने लगी।
मुझे मजबूरन दूर-दराज़ के इलाकों में रह रहे संबंधियों के यहाँ भागना पड़ा ताकि सीसीपी सरकार मुझे गिरफ़्तार करके मेरा उत्पीड़न न करे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि सीसीपी मुझे गिरफ़्तार करने के लिए इतने दूर-दराज़ के इलाकों तक मेरा पीछा करेगी। जिस दिन मैं अपने रिश्तेदार के यहाँ आया, उसके तीसरे दिन, रात के वक्त करीब 100 अधिकारियों ने जिसमें मेरे होम टाउन का पुलिस यूनिट भी शामिल था, मेरे रिश्तेदार के घर को चारों तरफ़ से घेर लिया और फिर मेरे सारे रिश्तेदारों की धर-पकड़ और गिरफ़्तारी करने लगे। मुझे दस सशस्त्र पुलिसवालों ने घेर लिया, सबने मेरे सिर पर बंदूक तान रखी थी, और चिल्लाने लगे, “ज़रा भी हिलने की कोशिश की तो गोली मार देंगे!” उसके बाद, कुछ पुलिसवाले मुझ पर टूट पड़े और हथकड़ी से मेरे हाथ पीछे की ओर बाँधने की कोशिश करने लगे। उन्होंने मेरा दायाँ हाथ मेरे कंधे के ऊपर उठाया और मेरे बायें हाथ को पीछे की ओर करके ऊपर की ओर ज़ोर का झटका दिया। जब वे लोग मेरे हाथों को एक साथ नहीं बाँध पाए, तो उन्होंने मेरी पीठ पर चढ़कर और ज़ोर से खींचा और किसी तरह मेरे हाथों को एक-साथ बाँध दिया। अब दर्द को सहना मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया, मैं ज़ोर से चिल्लाया, “मुझ से दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा,” लेकिन उन पुलिसवालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, मेरे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था कि मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँ को वो मुझे शक्ति प्रदान करे। उन्होंने मेरी 650 चीनी मुद्रा ज़ब्त कर ली और मुझसे सख्ती से पूछताछ करने लगे कि कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है। उनकी माँग थी कि मैं उन्हें सारा पैसा दे दूँ। मेरे अंदर उनके प्रति मन ही मन क्रोध और नफ़रत पैदा हो रही थी, “ये लोग अपने आपको ‘जनता की पुलिस’ और जनता की जीवन और ‘संपत्ति का रक्षक’ कहते हैं, फिर भी इन्होंने न सिर्फ़ परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने के लिए मुझे गिरफ़्तार करने की ख़ातिर पुलिस का इतना ताम-झाम लेकर इतनी दूर तक मेरा पीछा किया, बल्कि इसके पीछे कलीसिया का पैसा लूटना भी इनकी मंशा है! पैसे को लेकर इन दुष्ट पुलिसवालों की भूख कभी कम ही नहीं होती। अपनी तिजोरियाँ भरने के लिए ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। कौन जाने इन लोगों ने पैसे की ख़ातिर क्या-क्या निकृष्ट काम किए होंगे या धनवान बनने के लिए कितने ही मासूम लोगों की ज़िंदगी तबाह की होगी?” मैं इन बातों पर जितना सोचता, मेरा गुस्सा उतना ही बढ़ता जाता, मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि मैं जान दे दूँगा लेकिन परमेश्वर से धोखा नहीं करूँगा। मैंने कसम खायी कि मैं इन दरिंदों से लड़ूँगा चाहे अंजाम कितना भी बुरा हो। जब एक पुलिसवाले ने देखा कि मैं उन्हें गुस्से से घूर रहा हूँ, तो वह मेरे पास आया और मेरे चेहरे पर कसकर दो घूँसे मारे, मेरे होठ सूज गए और उनसे बुरी तरह ख़ून बहने लगा। जैसे इतने से ही उन्हें संतोष नहीं हुआ, उन दुष्ट पुलिसवालों ने मुझ पर बुरी तरह से लात-घूँसों और गालियों की बरसात शुरू कर दी, मैं ज़मीन पर गिर पड़ा। पता नहीं वो लोग मुझे कब तक फुटबॉल की तरह कूटते रहे। आख़िरकार, मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया, तो गाड़ी से मुझे मेरे होमटाउन ले जाया जा रहा था। उन्होंने मुझे सिर से पाँव तक लोहे की एक विशालकाय ज़ंजीर से बाँध रखा था, मैं सीधा नहीं बैठ पा रहा था, मैंने मजबूरन अपना चेहरा नीचे झुका रखा था, मैं इस तरह सिकुड़ा हुआ था जैसे एक भ्रूण गर्भ में होता है। छाती और सिर से मुझे कोई सहारा नहीं मिल पा रहा था। जब उन पुलिसवालों ने मुझे पीड़ा झेलते देखा, तो वे खिलखिलाकर हँसने और व्यंग्य करने लगे, “चल देखते हैं तेरा परमेश्वर तुझे बचाता है क्या!” उन्होंने और भी कई अपमानजनक फब्तियाँ कसीं। मैं समझ गया कि चूँकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विश्वासी हूँ, इसलिए ये लोग मेरे साथ इस ढंग का बर्ताव कर रहे हैं। यह बिल्कुल वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने अनुग्रह के युग में कहा था: “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा” (यूहन्ना 15:18)। उन्होंने जितना अधिक मेरा अपमान किया, मैंने उतना ही अधिक परमेश्वर के शत्रु के रूप में उनके शैतानी सार को और परमेश्वर से घृणा करने वाली उनकी दुष्ट प्रकृति को देखा। उसकी वजह से मुझे उनसे और भी अधिक घृणा हो गई। साथ ही मैं निरंतर परमेश्वर को पुकारता रहा, “प्रिय सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मुझे पुलिसवालों के हाथों पकड़वाने में ज़रूर तेरा कोई नेक इरादा रहा होगा, मैं तेरे आगे समर्पित होने को तैयार हूँ। हालाँकि, आज मेरा तन पीड़ित है, लेकिन फिर भी मैं शैतान को धिक्कारने के लिए तेरी गवाही देने को तैयार हूँ। मैं किसी भी परिस्थिति में शैतान के आगे हार नहीं मानूँगा। मैं तुझसे आस्था और बुद्धि प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों के इस अंश का ख़्याल आया: “मेरे अभ्यंतर चुप रहो, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, तुम लोगों का एकमात्र उद्धारक। तुम लोगों को हर समय अपने दिलों को शांत करना चाहिए, मेरे अभ्यंतर रहना चाहिए; मैं तुम्हारी चट्टान हूँ, तुम्हारा समर्थक” (“वचन देह में प्रकट होता है” में आरम्भ में मसीह के कथन के “अध्याय 26”)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे और भी अधिक शक्ति और संकल्प दिया। हर चीज़ पर परमेश्वर का शासन और प्रभुत्व है, इंसान की ज़िंदगी और मौत उसी के हाथों में है। मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अ‍टल साथ मिला हुआ था, इसलिए मुझे डरने की कोई आवश्यकता नहीं थी! उसके बाद, मेरी आस्था को और अभ्यास के मेरे मार्ग को और भी अधिक बल मिला। मैं आने वाले किसी भी क्रूर उत्पीड़न का सामना करने के लिए तैयार था।
मुझे अपने होमटाउन पहुँचने में 18 घंटे लग गए, इस दौरान पता नहीं मैं कितनी बार दर्द के कारण बेहोश हुआ। लेकिन किसी भी पुलिसवाले ने मेरे प्रति ज़रा भी हमदर्दी नहीं दिखायी। पहुँचते- पहुँचते हमें रात के ढाई बज गए। लगा जैसे मेरा सारा खून जम गया है—हाथ-पाँव सूज गए और सुन्न पड़ गए, मैं हिल भी नहीं पा रहा था। मैंने एक पुलिसवाले को यह कहते सुना, “लगता है यह मर गया।” उनमें से एक ने लोहे की ज़ंजीर को इतनी ज़ोर से खींचा कि उसके कंटीले किनारे मेरे शरीर में गड़ गए। मैं लुढ़ककर गाड़ी से बाहर जा गिरा और दर्द के कारण एक बार फिर बेहोश हो गया। पुलिसवाले ने ज़ोर से लात मारकर मुझे उठाया और वह चिल्लाया, “साले! मरने का नाटक कर रहा है क्या? हम थोड़ा आराम कर लें, फिर तेरी खबर लेते हैं!” उन्होंने मुझे बुरी तरह से घसीटा और मुझे मौत के सज़ायाफ़्ता कैदियों की कालकोठरी में पटक दिया, जाते-जाते बोले, “इस कालकोठरी का इंतज़ाम हमने ख़ास तौर से तेरे लिए किया है।” मुझे घसीट कर लाने की वजह से कई कैदियों की नींद खुल गई, वे लोग मुझे इतने खूंखार ढंग से घूर रहे थे कि मैं डरकर एक कोने में दुबक गया, और हिलने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था। मुझे लगा जैसे मैं धरती के किसी नरक में आ गया हूँ। सुबह होते ही, सारे कैदी मुझे घेरकर खड़े हो गए, और ऐसे देखने लगे जैसे मैं किसी और लोक का प्राणी हूँ। सब मुझ पर झपट पड़े, मैं डर के मारे फ़र्श से चिपक गया। इस कोलाहल से मुखिया कैदी की नींद खुल गई—उसने मुझ पर एक नज़र डाली और फिर ठंडे स्वर में बोला, “तुम्हें इसके साथ जो करना है करो, लेकिन इसे जान से मत मारना।” सारे कैदियों ने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे कि मुखिया कैदी ने कोई शाही फ़रमान सुनाया हो। मेरी कुटाई करने के लिए वे लोग मेरी तरफ़ लपके। मैंने सोचा, “अब मेरी हालत खराब होगी। मेरी दुर्गति करने के लिए पुलिसवालों ने मुझे मौत के सज़ायाफ़्ता कैदियों के हवाले कर दिया—ये लोग जानबूझकर मुझे मौत के मुँह में ढकेल रहे हैं।” मैंने ख़ुद को बेहद डरा हुआ और बेबस महसूस किया, मेरे पास अपने जीवन को परमेश्वर को सौंपने और उसके आयोजनों को स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जब मैं अपने आपको मार खाने के लिए तैयार कर रहा था, तभी अजीब-सी बात हुई: मैंने किसी को फ़ौरन “रुक जाओ!” कहते सुना। मुखिया कैदी दौड़ता हुआ आया और मुझे पकड़कर खड़ा हो गया और कई मिनट तक मेरी ओर ताकता रहा। मैं इतना डरा हुआ था कि पलटकर उसकी ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। “आप जैसा अच्छा इंसान यहाँ क्या कर रहा है?” जब मैंने देखा कि वह मुझसे ही बात कर रहा है, तो मैंने उसे ध्यान से देखा, मुझे एहसास हुआ कि वो मेरे एक दोस्त का दोस्त है जो मुझे बहुत पहले एक बार मिला था। फिर वह कैदियों से बोला, “यह आदमी मेरा दोस्त है। अगर किसी ने इसे हाथ भी लगाया तो वो जवाबदेह होगा!” फिर, वह तेज़ी से गया और मेरे लिए खाना लेकर आया और फिर जेल में काम आने वाली रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए उसने मेरी मदद की। उसके बाद, किसी कैदी की हिम्मत नहीं हुई कि मेरे नज़दीक भी आए। मुझे पता था कि यह सब परमेश्वर के प्रेम का परिणाम है, उसकी विवेकपूर्ण व्यवस्था है। पुलिस निर्दयता से मेरा उत्पीड़न करवाने के लिए कैदियों का इस्तेमाल करना चाहती थी, लेकिन उसने कभी सोचा भी नहीं था कि परमेश्वर मुखिया कैदी को ही निशाना बनाकर मुझे इस संकट से बचा लेगा। मैं अपने आँसू न रोक सका, मैं मन ही मन परमेश्वर की स्तुति में पुकार उठा, “प्रिय परमेश्वर! तेरा धन्यवाद तूने मुझ पर दया की! जब मैं सबसे ज़्यादा डरा हुआ था, बेबस और कमज़ोर था, उस समय तूने इस मित्र के ज़रिए मेरी मदद की, जिसकी वजह से मैं तेरे कर्मों को देख पाया। तू सारी चीज़ों को अपनी सेवा के लिए संगठित करता है ताकि तेरे विश्वासियों को उसका लाभ मिल सके।” उस पल, परमेश्वर में मेरी आस्था और भी बढ़ गई, क्योंकि मैंने व्यक्तिगत रूप से उसके प्रेम का अनुभव किया था। हालाँकि मैं उस समय शेर की माँद में था, लेकिन परमेश्वर ने मुझे छोड़ा नहीं था। जब परमेश्वर मेरे साथ था, तो मुझे डर किस बात का था? मेरे मित्र ने मुझे हौसला दिया, “घबराओ मत, चाहे तुमने कुछ भी किया हो, लेकिन इन्हें कुछ भी बताने की ज़रूरत नहीं है, भले ही इस वजह से तुम्हारी मौत हो जाए। मानसिक रूप से ख़ुद को तैयार कर लो, चूँकि इन्होंने तुम्हें मौत के सज़ायाफ़्ता कैदियों के साथ रखा है, ये लोग तुम्हें आसानी से छोड़ेंगे नहीं।” अपने दोस्त की बातों से मुझे और भी लगा कि परमेश्वर लगातार मेरा मार्गदर्शन कर रहा है और जो कुछ होने वाला है, उसके बारे में चेतावनी के रूप में उसने मेरे साथी कैदी के मुँह से बुलवा दिया है। मैंने अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर लिया और मैंने मन ही मन शपथ ली: ये दरिंदे मुझे चाहे जैसे यातना दें, लेकिन मैं परमेश्वर को कभी धोखा नहीं दूँगा!
दूसरे दिन, दस से भी ज़्यादा सशस्त्र पुलिसवाले मुझे नज़रबंदी गृह से ले गयी जैसे कि मैं दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाके का कोई मृत्युदंड प्राप्त कैदी हूँ। पुलिस जहाँ मुझे ले गयी वह जगह ऊँची दीवारों वाला कम्पाऊंड थी जिसके प्रांगण में सशस्त्र पुलिस का पहरा था। मुख्यद्वार पर एक नामपट्ट था जिस पर लिखा था, “पुलिस डॉग प्रशिक्षण केंद्र।” हर कमरा उत्पीड़न के तरह-तरह के औज़ारों से भरा पड़ा था। मैंने चारों तरफ़ नज़र घुमाकर देखा तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए और मैं भय से काँप गया। दुष्ट पुलिसवालों ने मुझे प्रांगण के बीचोंबीच शांत खड़ा रहने के लिए कहा और फिर उन्होंने लोहे के पिंजरे से चार खूँखार-से दिखने वाले असामन्य रूप से विशालकाय शिकारी कुत्ते मेरी तरफ़ छोड़ दिए और उन कुत्तों को आदेश दिया, “जाओ उसे ख़त्म कर दो!” कुत्ते फ़ौरन मुझ पर भेड़ियों की तरह टूट पड़े। मैं इतना ज़्यादा डर गया कि मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरे कान बजने लगे और मेरा दिमाग सुन्न हो गया—मेरे मन में केवल एक ही विचार था, “हे परमेश्वर! मेरी रक्षा कर!” मैं लगातार मदद के लिए परमेश्वर को पुकारता रहा, करीब दस मिनट के बाद, मुझे महसूस हुआ कि कुत्ते सिर्फ़ मेरे कपड़ों को नोच रहे हैं। ख़ास तौर से एक बड़ा शिकारी कुत्ता मेरे कंधे पर चढ़कर, मुझे सूँघने लगा और मेरे चेहरे को चाटने लगा, लेकिन उसने मुझे काटा नहीं। अचानक मुझे बाइबल की वह कहानी याद आ गई जिसमें नबी दानिय्येल को भूखे शेरों के गड्ढे में डाल दिया गया था, क्योंकि वह परमेश्वर की आराधना किया करता था, लेकिन शेरों ने उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। चूँकि परमेश्वर उसके साथ था, इसलिए परमेश्वर ने स्वर्गदूत को भेजकर शेरों के जबड़े बंद करवा दिए। अचानक मेरे अंदर गहरी आस्था जागी और मेरे मन से सारा भय जाता रहा। मेरे मन में गहरा विश्वास था कि हर चीज़ का आयोजन परमेश्वर कर रहा है, इंसान की ज़िंदगी और मौत परमेश्वर के हाथों में है। इसके अलावा, अगर मुझे परमेश्वर में अपनी आस्था की वजह से खूँखार कुत्तों द्वारा काटे जाने से शहीद होना था, तो यह भी मेरे लिए सम्मान की बात होती और मुझे इससे कोई शिकायत न होती। जब मेरे मन से मौत का भय निकल गया और मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपना जीवन देने को तैयार था, तो मैंने एक बार फिर परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और चमत्कारी कर्मों के दर्शन किए। इस बार पुलिसवाले ज़ोर-ज़ोर से कुत्तों पर चिल्लाने लगे “फाड़ डालो, फाड़ डालो!” लेकिन, अचानक ऐसा लगने लगा जैसे ये अतिप्रशिक्षित कुत्ते अपने मालिक के हुक्म को समझ नहीं पा रहे थे। उन कुत्तों ने सिर्फ़ मेरे कपड़े फाड़े, मेरे चेहरे को चाटा और चले गए। कुछ दुष्ट पुलिसवालों ने कुत्तों को रोककर फिर से मुझ पर हमला करवाने की कोशिश की, लेकिन कुत्ते अचानक डर गए और अलग-अलग दिशाओं में भाग गए। जब पुलिसवालों ने देखा कि यह क्या हुआ, तो उन्हें भी बड़ा आश्चर्य हुआ और बोले, “बड़ी अजीब बात है, किसी भी कुत्ते ने इसे काटा नहीं!” मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आ गए: “मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, और उसका पूरा जीवन परमेश्वर की दृष्टि में है। भले ही तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीजों को इसी तरीके से संचालित करता है” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है”)। “परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी, और इस प्रकार वह समूची सृष्टि को अपने प्रभुत्व के अधीन लाता है, और अपने प्रभुत्व के प्रति समर्पित करवाता है; वह सभी चीज़ों को आदेश देगा, ताकि सभी चीज़ें उसके हाथों में हों। परमेश्वर की सारी सृष्टि, जिसमें जानवर, पेड़-पौधे, मानवजाति, पहाड़ एवं नदियां, और झीलें शामिल हैं—सभी को उसके प्रभुत्व के अधीन आना होगा। आकाश एवं धरती की सभी चीज़ों को उसके प्रभुत्व के अधीन आना होगा” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है”)। अपने अनुभव से मैंने असल जीवन में देख लिया था कि जीवित-मृत सभी चीज़ें परमेश्वर के आयोजन के अधीन हैं, सभी परमेश्वर के विचारों के अनुसार चलती और बदलती हैं। मैं पुलिस के शिकारी कुत्तों से बच पाया क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उनके मुँह बंद कर दिए थे ताकि वे मुझे काट न सकें। मुझे अच्छी तरह से पता था कि ऐसा परमेश्वर के असीम सामर्थ्य के कारण हुआ था, परमेश्वर ने अपना चमत्कारी कर्म प्रकट किया था। चाहे पुलिस के ठग हों या पुलिस के शिकारी कुत्ते, सबको परमेश्वर के अधिकार के आगे समर्पित होना ही था। परमेश्वर के प्रभुत्व के ऊपर कोई नहीं जा सकता। मेरा सीसीपी के नारकीय चंगुल में फँसना और उसी प्रकार के परीक्षण के अनुभव से गुज़रना जिससे नबी दानिय्येल गुज़रा था, निश्चित रूप से मेरे लिए परमेश्वर का विशेष उत्कर्ष और उसका अनुग्रह है। परमेश्वर के सर्वशक्तिमान कर्मों को देखकर, उसमें मेरी आस्था और भी प्रबल हो गयी। मैंने संकल्प लिया कि मैं अंत तक शैतान से लड़ूँगा। मैंने शपथ ली कि मैं सदा परमेश्वर में आस्था रखूँगा,उसकी आराधना करूँगा, उसका गौरवगान और सम्मान करूँगा!

जब पुलिसवाले शिकारी कुत्तों के ज़रिए अपने मकसद को हासिल नहीं कर पाए, तो वे मुझे वापस पूछताछ कक्ष में ले आए। उन्होंने मुझे हथकड़ियों के सहारे दीवार से लटका दिया। मुझे कलाइयों में भयानक पीड़ा हुई, लगा जैसे मेरे हाथ अभी उखड़ जाएँगे। चेहेरे से पसीने की मोटी-मोटी बूँदें टपकने लगीं। लेकिन अभी उन ठग पुलिसवालों के मन की निकली नहीं थी, उन्होंने मुझ पर लात-घूँसे बरसाने शुरू कर दिए। वे मुझे मारते जाते और चिल्लाते जाते, “अब देखते हैं तुझे तेरा परमेश्वर कैसे बचाता है!” वे बारी-बारी से मुझे पीटने लगे—एक थक जाता, तो दूसरा आ जाता। वे मुझे तब तक मारते रहे जब तक कि मेरे जिस्म पर सिर से लेकर पैर तक घाव और खरोंच न हो गए। मेरे शरीर से बुरी तरह से खून बह रहा था। उसके बावजूद उस रात उन्होंने मुझे दीवार से नहीं उतारा। उन्होंने दो मातहतों को टेज़र (एक प्रकार का हथियार) लेकर मुझ पर नज़र रखने के लिए तैनात कर दिया। मैं जब भी आँख झपकता, वे लोग टेज़र गन से मुझे जगा देते। इसी तरह वे लोग मुझे रात भर यातना देते रहे। एक पुलिसवाला मुझे यातना देते हुए अपनी छोटी-छोटी चमकीली आँखों से घूरते हुए बोला, “मैं तुझे तब तक पीटूँगा जब तक कि तू बेहोश न हो जाए, और दूसरा तुझे तब तक पीटेगा जब तक तुझे फिर से होश न आ जाए!” परमेश्वर की प्रबुद्धता के कारण मुझे उस सबका होश था जो चल रहा था: शैतान मुझे यातना देने के हर तरह के तरीकों का इस्तेमाल कर रहा था ताकि मैं उनकी बात मान जाऊँ। उनका मकसद था यातना दे-देकर मेरी आत्मा को तोड़ देना जिससे कि मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठूँ, और शायद तब मैं उन्हें वो जानकारी दे दूँ जिसकी उन्हें तलाश है। तब वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गिरफ़्तार कर सकते थे, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य में बाधा उत्पन्न करके, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की संपत्ति को लूटकर, उस पर कब्ज़ा करके अपनी तिजोरियाँ भर सकते थे—ये थी उनकी पाशविक प्रकृति की नीच ख़्वाहिशें। मैंने दाँत भींचकर दर्द को बर्दाश्त किया। मैंने तय कर लिया कि किसी भी सूरत में उनके मकसद को पूरा नहीं होने दूँगा, भले ही इसकी कीमत मुझे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। दूसरे दिन सुबह तक भी उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वे मुझे उतारने वाले हैं। मैं पहले ही थककर चूर हो चुका था; मुझे लगा इससे तो मर जाना ही बेहतर है, जीते रहने की मेरी इच्छा-शक्ति ख़त्म हो चुकी थी। मैं मदद के लिए केवल परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था, “हे परमेश्वर! मैं जानता हूँ कि मुझे दुख उठाने चाहिए, लेकिन मेरा शरीर इतना कमज़ोर है कि मैं ज़्यादा देर तक जीवित नहीं रह सकता। जब तक मेरी साँसें चल रही हैं और मुझमें चेतना बाकी है, मैं चाहता हूँ कि तू मेरी आत्मा को इस दुनिया से ले जाए। मैं यहूदा बनकर तुझे धोखा नहीं देना चाहता।” जब मैं टूटने के कगार पर था, तभी मुझे परमेश्वर के वचनों ने एक बार फिर प्रबुद्ध किया और राह दिखायी: “‘इस बार देह में आना शेर की माँद में गिरने जैसा है।’ इसका अर्थ यह है कि क्योंकि परमेश्वर के कार्य का यह चक्र परमेश्वर का देह में आना है और बड़े लाल अजगर के निवास स्थान में पैदा होना है, इसलिए इस बार उसके पृथ्वी पर आने के साथ-साथ और भी अधिक चरम ख़तरे हैं। जिसका वह सामना करता है वे हैं चाकू और बंदूकें और लाठियाँ; जिसका वह सामना करता है वह है प्रलोभन; जिसका वह सामना करता है वह हत्यारी दिखाई देने वाली भीड़। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम लेता है” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “कार्य और प्रवेश (4)”)। परमेश्वर सभी सृजन में सर्वोच्च सत्ता है—उसका सबसे अधिक भ्रष्ट इंसानों को बचाने के लिए उनके बीच आना पहले ही अविश्वसनीय अपमान था, लेकिन उसे भी सीसीपी सरकार के हाथों उत्पीड़न सहना पड़ा। परमेश्वर जिस यातना से गुज़रा है वह सचमुच भयंकर है। अगर परमेश्वर यह सब दुख-दर्द सह सकता है, तो उसके लिए मैं अपने जीवन का बलिदान क्यों नहीं दे सकता? मैं अब तक अगर ज़िंदा रहा हूँ तो केवल परमेश्वर की सुरक्षा और देखभाल के कारण, वरना तो दरिंदों के इस गिरोह ने मुझे यातना देकर कब का मार दिया होता। दरिंदों की उस माँद में, उन नर-पिशाचों ने मुझ पर क्रूर अत्याचार का हर तरीका आज़माया, लेकिन फिर भी परमेश्वर मेरे साथ था, उत्पीड़न के हर दौर में मैं परमेश्वर के चमत्कारी कर्मों को देखता, उसके उद्धार और सुरक्षा को देखता। मैंने मन ही मन सोचा, “परमेश्वर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, मैं उसके दिल को सुकून कैसे पहुँचा सकता हूँ? आज जो अवसर परमेश्वर ने मुझे प्रदान किया है, मुझे उसके लिए जीवित रहना चाहिए!” उस पल, परमेश्वर के प्रेम ने मेरे ज़मीर को फिर से जगा दिया, और मुझे बहुत गहनता से यह एहसास हुआ कि मुझे हर सूरत में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। मैंने तय किया, “आज मुझे यीशु मसीह के साथ कष्ट उठाने चाहिए!” यह देखकर कि मैं अभी भी न बात कर रहा हूँ, न दया की भीख माँग रहा हूँ, लेकिन कहीं उन्हें जानकारी देने के बजाय मेरी मौत न हो जाए, और वे लोग कहीं अपने वरिष्ठों के आगे किसी मुसीबत में न फँस जाएँ, उन दुष्ट पुलिसवालों ने मुझे पीटना छोड़ दिया। उसके बाद, उन्होंने मुझे दो दिन, दो रात हथकड़ियों के सहारे दीवार से लटकाकर छोड़ दिया।
उन दिनों, बहुत ठंड पड़ रही थी, मैं बुरी तरह से भीगा हुआ था, मेरे कपड़े इतने महीन थे कि उनसे ठंड रुक नहीं रही थी, कई दिनों से मैंने कुछ खाया नहीं था, मुझे भूख भी लग रही थी और ठंड भी, दोनों बर्दाश्त से बाहर थी। जब मैं लगभग टूटने की कगार पर था, तो उस दुष्ट पुलिस के गिरोह ने मेरी इस हालात का फ़ायदा उठाकर एक और साज़िश रची: मेरा मत-परिवर्तन करने के लिए वे लोग एक मनोचिकित्सक को पकड़ लाए। वह बोला, “अभी आप युवा हैं, आपके माँ-बाप हैं, बच्चे हैं, इन्हें आपकी ज़रूरत है। जब से आप यहाँ आए हैं, आपके किसी साथी विश्वासियों ने, ख़ास तौर से आपकी कलीसिया के किसी अगुवा ने आपकी ज़रा भी परवाह नहीं की, और आप हैं कि यहाँ कष्ट उठा रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि आप थोड़ा बेवकूफ़ बन रहे हैं? इन पुलिसवालों के पास आपका उत्पीड़न करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था…” उसकी झूठ सुनने के बाद, मैंने सोचा, “अगर मेरे भाई-बहन मुझसे मिलने यहाँ आते, तो क्या यह उनका समर्पण करना नहीं होता? तुम यह बात सिर्फ़ मुझे धोखा देने के लिए कर रहे हो, मुझमें और मेरे भाई-बहनों में फूट के बीज बोने के लिए कर रहे हो, मेरे अंदर गलतफ़हमी पैदा करने के लिए कर रहे हो ताकि मैं परमेश्वर पर दोषारोपण लगाऊँ और उसे त्याग दूँ। मैं तुम्हारे झाँसे में आने वाला नहीं!” उसके बाद, वे लोग मेरे लिए खाना-पीना लेकर आए, अपनी उदारता से मुझे फुसलाने की कोशिश की। उन ठग पुलिसवालों की अचानक उमड़ती “दया” देखकर, मेरा दिल परमेश्वर के और भी करीब आ गया, क्योंकि मैं जानता था कि ये मेरे सबसे कमज़ोर पल थे, और मौके का फ़ायदा उठाने के लिए शैतान किसी भी पल झपटने को तैयार बैठा था। मैं उन दिनों के अपने अनुभव से सीसीपी सरकार के सार को देख पाया। इसने चाहे जितना दयालु और परवाह करने वाली सरकार दिखने की कोशिश की, लेकिन इसका दुष्ट, प्रतिक्रियात्मक और शैतानी सार बदलने वाला नहीं था। शैतान की “प्रेम और करुणा से मन-परिवर्तन” वाली रणनीति से इसकी छल-कपट की गहराई और भी ज़्यादा उजागर हुई। परमेश्वर का धन्यवाद, कि मैं उसके मार्गदर्शन के कारण शैतान की धूर्त साज़िश को देख पाया। अंत में, मनोचिकित्सक को कोई सफलता नहीं मिली, वह अपना सिर झटकते हुए बोला, “मैं इससे कुछ नहीं उगलवा सकता। यह अड़ियल टट्टू है, इससे कोई उम्मीद मत करो!” वह खिन्न मन से चला गया। शैतान को हारकर जाते देख, मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि मैं बयाँ नहीं कर सकता!
जब उन दुष्ट पुलिसवालों ने देखा कि उनकी नरम चालबाज़ियाँ काम नहीं आ रहीं, तो उन्होंने तुरंत ही अपना असली रंग दिखा दिया। उन्होंने मुझे फिर से दिन भर दीवार से लटकाकर रखा। उस रात, मैं ठंड में ठिठुरता हुआ लटका रहा, मेरे हाथों में इतना भयानक दर्द था कि लगता था उखड़ जाएँगे, मैं बेहोशी की स्थिति में सोच रहा था कि शायद अब मैं जीवित न रह पाऊँ। तभी कई अधिकारी अंदर आए, मैं विचार करने लगा कि पता नहीं ये लोग मुझे अब और किस तरह की यातना देंगे। अपने कमज़ोर पलों में, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, तू तो जानता है मैं कमज़ोर हूँ, अब मैं वाकई यह सब और नहीं सह सकता। तू अभी मेरे प्राण ले ले। मैं यहूदा बनकर तुझे धोखा देने के बजाय मरना पसंद करूँगा। मैं इन दरिंदों की साज़िश को कामयाब नहीं होने दूँगा!” पुलिसवालों ने अपने एक मीटर लम्बे डंडे निकाले और फिर मेरे पैरों के जोड़ों पर प्रहार करने लगे। कुछ तो प्रहार करते समय पागलों की तरह हँस रहे थे, कुछ मुझे प्रलोभन देने लगे, “हमें सज़ा देने का कोई शौक नहीं है। तुमने कोई बड़ा अपराध नहीं किया है, कोई हत्या-आगज़नी नहीं की है, बस जो कुछ जानते हो, हमें बता दो, हम तुम्हें उतार देंगे।” मैंने तब भी ज़बान नहीं खोली तो वे पागल हो गए और चिल्लाने लगे, “तुझे क्या लगता है, इस वक्त यहाँ खड़े दर्जनों पुलिसवाले निकम्मे हैं? हमने मृत्युदंड पाए हुए अनगिनत कैदियों से सवाल-जवाब किए हैं और हमेशा उनसे जुर्म कुबूल करवाया है, भले ही उन्होंने कोई जुर्म न किया हो। जब हम उनसे कहते हैं कि ज़बान खोलो, तो वो खोलते हैं। तुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू उनसे कुछ अलग है?” उनमें से कुछ मेरे पास आए और मेरे पैरों और कमर में चिकोटी काटने लगे, और वे ऐसा तब तक करते रहे, जब तक कि मेरे शरीर पर घाव नहीं हो गए। कुछ जगह तो उन्होंने इतनी ज़ोर से चिकोटी काटी कि खून बहने लगा। इतने लम्बे समय तक लटके रहने के कारण एक तो मैं पहले ही बेहद कमज़ोर हो गया था, दूसरे इस क्रूर पिटाई ने मेरे दर्द को इस हद तक बढ़ा दिया कि मैं मौत की दुआ करने लगा। उस मुकाम पर मैं पूरी तरह से टूट गया था—मुझसे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। जब आँसू बह रहे थे, तो मेरे मन में धोखे का ख़्याल आया: “शायद मुझे इन्हें कुछ बता देना चाहिए। अगर इससे मेरे भा‌‌ई-बहनों को कोई परेशानी नहीं होती है तो, फिर चाहे ये लोग मुझे सज़ा दें या फाँसी पर चढ़ा दें, तो भी कोई बात नहीं!” जब उन दुष्ट पुलिसवालों के गिरोह ने मुझे रोते देखा, तो वे ठहाका मार कर हँसे, वे बेहद ख़ुश हो गए और बोले, “अगर तूने पहले ही हमें कुछ बता दिया होता, तो हमें तुझे इतना पीटना न पड़ता।” उन्होंने मुझे दीवार से उतारा और ज़मीन पर लिटा दिया। पीने को थोड़ा पानी दिया और थोड़ा आराम करने का समय दिया। उसके बाद उन्होंने मुझे पेन और कागज़ दिया जो उन्होंने शुरू से ही तैयार रखा हुआ था और मेरा बयान दर्ज करने को तैयार हो गए। जैसे ही मैं शैतान की चाल में फँसने लगा, तभी परमेश्वर के वचन साफ़ तौर पर मेरे दिमाग में आए: “मैं उन लोगों पर और अधिक दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मुझ पर रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। साथ ही साथ, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ संबद्ध होना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। यही मेरा स्वभाव है, इस बात की परवाह किए बिना कि व्यक्ति कौन हो सकता है। मुझे तुम लोगों को अवश्य बता देना चाहिए कि: जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई भी मेरे प्रति निष्ठावान रहा है वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्मों की तैयारी करो”)। परमेश्वर के वचनों में, मैंने परमेश्वर का वह स्वभाव देखा जो अपमान सहन नहीं करता और परमेश्वर को धोखा देने के परिणाम देखे। मुझे अपनी विद्रोहशीलता भी समझ में आई। परमेश्वर में मेरा विश्वास बहुत ज़्यादा कमज़ोर था और मुझे उसकी कोई वास्तविक समझ नहीं थी, मैं उसके प्रति आज्ञाकारी तो था ही नहीं। इसलिए, मैं यकीनी तौर पर परमेश्वर से धोखा करता। मैंने विचार किया कि किस तरह यहूदा ने मात्र चाँदी के तीस सिक्कों की ख़ातिर यीशु मसीह के साथ गद्दारी की थी, और अब, एक पल के सुख और आराम के लिए मैं परमेश्वर को धोखा देने के लिए तैयार था। अगर परमेश्वर के वचनों ने मुझे सही समय पर प्रबुद्ध न किया होता, तो मैं परमेश्वर को धोखा देने वाला ऐसा गद्दार बन जाता जिसे हमेशा-हमेशा के लिए धिक्कारा जाता! परमेश्वर की इच्छा को समझकर, मैंने जाना कि परमेश्वर ने सर्वोत्तम व्यवस्था की थी। मैंने सोचा, “परमेश्वर चाहता है कि मैं दुख उठाऊँ या प्राण त्याग दूँ, तो मैं समर्पित होने और परमेश्वर के हाथों में अपनी ज़िंदगी और मौत सौंपने को तैयार हूँ। इस मामले में मेरी कोई मर्ज़ी नहीं है। अगर आख़िरी साँस भी बची हो, तो भी मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने का और प्रयास करूँगा और उसकी गवाही दूँगा।” उस पल, मेरे दिमाग में यह कलीसिया-भजन आया: “मेरा सिर फूट सकता है, मेरा लहू बह सकता है, मगर परमेश्वर-जनों का जोश कभी ख़त्म नहीं हो सकता। परमेश्वर के उपदेश दिल में बसते हैं, मैं दुष्ट शैतान को अपमानित करने का निश्चय करता हूँ” (“मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना” में “परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा हैत”)। जब मैं मन ही मन यह भजन गुनगुनाने लगा, तो मेरी आस्था में एक नया जोश भर गया, और मैंने संकल्प लिया कि अगर मुझे मरना ही हुआ, तो मैं परमेश्वर के लिए मरूँगा। मैं किसी भी सूरत में, पुराने शैतान, सीसीपी सरकार के आगे हार नहीं मान सकता। मुझे ज़मीन पर निश्चेष्ट पड़ा देखकर, दुष्ट पुलिसवालों ने मुझे यह कहकर प्रलोभन देना शुरू कर दिया, “क्या इन सारी तकलीफ़ों का कोई मतलब है? हम यहाँ तुम्हें एक अच्छा काम करने का अवसर दे रहे हैं। तुम्हें जो भी पता है हमें बता दो। अगर तुम हमें कुछ नहीं बताओगे, तो भी हमारे पास इतने साक्ष्य और प्रमाण हैं कि हम तुम्हें अपराधी सिद्ध कर सकते हैं।” ये आदमखोर दरिंदे जिस ढंग से मुझे परमेश्वर को धोखा देने और परमेश्वर के कार्य को बर्बाद करने की ख़ातिर अपने भाई-बहनों से दगा करने के लिए लालच दे रहे थे, उसे देखकर मैं अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था। मैं उन पर ज़ोर से चिल्लाया, “अगर तुम्हें पहले से ही सब-कुछ पता है, तो मुझसे सवाल-जवाब करने का क्या मतलब है। और अगर मुझे सब-कुछ पता भी होता, तो भी मैं तुम लोगों को कभी न बताता!” पुलिसवाला पलटकर गुस्से से चिल्लाया, “अगर तूने नहीं उगला, तो हम तुझे यातना दे-देकर मार डालेंगे! तू यहाँ से ज़िंदा बचकर नहीं जा सकता! हम तो उन मृत्युदंड प्राप्त कैदियों तक से उगलवा लेते हैं, तू किस खेत की मूली है?” मैंने कहा, “अब जब तुमने मुझे कैदी बनाकर रखा है, तो मेरी भी यहाँ से ज़िंदा जाने की कोई योजना नहीं है!” पुलिसवाला बिना एक भी शब्द बोले, मुझ पर टूट पड़ा और सीधे मेरे पेट में लात मारी। दर्द इतना भयानक था कि लगा मेरी आँतें बिखर गईं हैं। उसके साथ ही, बाकी पुलिसवाले भी मुझे तब तक पीटते रहे, जब तक कि मैं बेहोश नहीं हो गया…। जब मैं होश में आया, तो देखा मैं पहले की तरह ही दीवार से लटक रहा हूँ, लेकिन इस बार उन्होंने मुझे और भी ऊपर लटका दिया था। मेरा पूरा शरीर सूज गया था, मैं बोल नहीं पा रहा था, लेकिन परमेश्वर की सुरक्षा के कारण, मुझे ज़रा-सी भी पीड़ा नहीं हुई। उस रात, ज़्यादातर पुलिसवाले चले गए, और जिन चार पुलिसवालों को मेरी निगरानी का ज़िम्मा सौंपा गया था, वे घोड़े बेचकर सो रहे थे। अचानक मेरी हथकड़ियाँ चमत्कारिक रूप से खुल गईं और मैं धीरे से ज़मीन पर गिरा। उस पल, मुझे तुरंत होश आ गया और मुझे ख़्याल आया कि जब पतरस कैद में था तो किस तरह प्रभु के स्वर्गदूत ने उसकी रक्षा की थी। पतरस के हाथों से ज़ंजीरें गिर गईं थीं और उसकी कोठरी के लोहे के दरवाज़े अपने आप खुल गए थे। परमेश्वर के महान उत्कर्ष और अनुग्रह से मैंने परमेश्वर के उन्हीं चमत्कारी कर्मों का अनुभव किया जो पतरस ने किया था। मैंने तुरंत फ़र्श पर झुककर परमेश्वर को धन्यवाद दिया और कहा, “प्रिय परमेश्वर! तेरी करुणा और कोमल देखभाल के लिए धन्यवाद। तेरा धन्यवाद कि तूने मुझ पर निरंतर नज़र बनाए रखी। जब मेरा जीवन ख़तरे में था, और मैं मृत्यु के आगोश में था, तो तूने गुप्त रूप से मेरी रक्षा की। तेरे महान सामर्थ्य ने मेरी रक्षा की, जिसके कारण मैं एक बार फिर तेरे चमत्कारी कर्मों और तेरे सर्वशक्तिमान प्रभुत्व को देख पाया। अगर मैंने स्वयं इसका अनुभव न किया होता, तो मुझे कभी यकीन न होता कि यह सब सच है!” अपने कष्टों के ज़रिए, एक बार फिर मैंने परमेश्वर के उद्धार को देखा, मैं बेहद भावुक गया और असीम स्नेह से भर गया। मैं वहाँ से जाना चाहता था, लेकिन दर्द इतना ज़्यादा था कि मैं हिल भी नहीं पा रहा था, इसलिए मैं वही फ़र्श पर सो गया। सुबह किसी ने मुझे लात मारकर उठाया। जब उन दुष्ट पुलिसवालों ने मुझे फ़र्श पर पड़ा देखा, तो वे लोग आपस में बहस करने लगे कि मुझे उतारा किसने। जिन चार पुलिसवालों को मेरी निगरानी का ज़िम्मा सौंपा गया था, उन सबने कहा कि उनके पास मेरी हथकड़ियों की चाभी नहीं थी। वे सब लोग खाली-खाली नज़रों से हथकड़ियों को ताकते रहे—लेकिन उन्हें कहीं से भी हथकड़ियों में दरार नज़र नहीं आई। फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि हथकड़ी कैसी खुली। मैंने कहा, “अपने आप खुल गई!” उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन मैं मन में जानता था: यह परमेश्वर का महान सामर्थ्य था, और उसका एक चमत्कारी कर्म था।
बाद में, जब उन दुष्ट पुलिसवालों ने देखा कि मेरी हालत बहुत नाज़ुक है, तो मुझे फिर से दीवार पर लटकाने की उनकी हिम्मत नहीं हुई, इसलिए उन्होंने मुझे यातना देने की तरकीब बदल दी। वे मुझे एक कमरे में घसीट कर ले गए और एक यातना-कुर्सी पर बैठा दिया। मेरे सिर और गर्दन को उन्होंने धातु के एक शिकंजे में कस दिया, मेरे हाथ-पाँव भी बाँध दिए ताकि मैं ज़रा भी हिल न सकूँ। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! यह सब तेरे नियंत्रण में है। मैं पहले ही ज़िंदगी और मौत के कई इम्तहानों से गुज़र चुका हूँ, मैं अपना जीवन एक बार फिर तेरे हवाले करता हूँ। मैं तेरी गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए तेरे साथ सहयोग करने को तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे शांति और सुकून मिला, मेरे अंदर ज़रा-सा भी भय नहीं था। उस पल, एक पुलिसवाले ने बिजली का बटन ऑन कर दिया, सारे मातहत कर्मचारी दम साधे देख रहे थे कि किस तरह मैं बिजली के करंट से मरता हूँ। लेकिन जब मेरे अंदर ज़रा भी प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो उन्होंने बिजली के कनेक्शन की जाँच की। लेकिन जब फिर भी मेरे अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो वे अविश्वास से एक-दूसरे की ओर देखने लगे, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। उनमें से एक मातहत ने कहा, “शायद यातना-कुर्सी का कनेक्शन ही गड़बड़ है।” इतना कहकर, वह मेरे पास आया, जैसे ही उसने मेरा हाथ छुआ, उसके मुँह से चीख निकल गई—उसे बिजली का ऐसा झटका लगा कि वह एक मीटर दूर जाकर गिरा और दर्द से चिल्लाने लगा। जब दर्जन भर गुर्गों ने देखा कि क्या हुआ, तो वे लोग मौत के ख़ौफ़ से डर गए और कमरे से बाहर भाग गए। उनमें से एक तो इतना डर गया कि वह फिसलकर धड़ाम से ज़मीन पर गिरा। काफी देर के बाद, दो मातहत आए और उन्होंने मेरे बंधन खोले, वे झटका खाने के डर से काँप रहे थे। मैं पूरे आधा घंटे तक यातना-कुर्सी से बँधा रहा, लेकिन मुझे एक बार भी बिजली का करंट नहीं लगा। ऐसा लगा जैसे कि मैं एक सामान्य कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ। मैंने एक बार फिर परमेश्वर के महान सामर्थ्य के दर्शन किए, मुझे उसकी मनोहरता और करुणा का बोध हुआ। अगर मैं अपने सर्वस्व के साथ-साथ अपने प्राण भी गँवा देता, तो भी जब तक परमेश्वर मेरे साथ था, मेरे पास सब-कुछ था।
उसके बाद, दुष्ट पुलिसवाले मुझे वापस नज़रबंदी गृह ले गए। मैं सिर से लेकर पैर तक बुरी तरह से ज़ख्मी था, हाथ-पाँव बेहद सूजे हुए थे—मेरे अंदर ज़रा-सी भी ताकत नहीं थी कि मैं खड़ा रह पाऊँ, बैठ पाऊँ या खाना खा पाऊँ। मैं मौत के मुहाने पर खड़ा था। जब उस कालकोठरी के मृत्युदंड पाए हुए कैदियों को पता चला कि मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, तो उन्होंने मुझे एक नए नज़रिए से देखा और अनुमोदन करते हुए कहा, “तुम असली हीरो हो, हम नकली हीरो हैं!” उनमें मुझे खिलाने और कपड़े देने की होड़-सी लग गई… जब दुष्ट पुलिसवालों ने देखा कि किस प्रकार से परमेश्वर ने मेरे अंदर कार्य किया, तो फिर उनकी हिम्मत नहीं हुई कि मुझे यातना दें, उन्होंने मेरी हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ भी खोल दीं। उस दिन से, किसी का साहस नहीं हुआ कि मुझसे फिर पूछताछ करे। लेकिन इस सबके बावजूद, पुलिस ने हार नहीं मानी थी, इसलिए मुझसे कलीसिया के बारे में जानकारी निकलवाने के लिए, उन्होंने दूसरे कैदियों को उकसाने की कोशिश की ताकि मैं हार मान लूँ। उन्होंने यह कहकर कैदियों को भड़काने की कोशिश की, “जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखते हैं, उनकी पिटाई की जानी चाहिए!” लेकिन उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब एक हत्यारा कैदी बोला, “आप जो कह रहे हैं मैं वो कभी नहीं करूँगा। न तो मैं इसे मारूँगा, न ही इस कालकोठरी का कोई और कैदी इसे मारेगा! हम सब यहाँ इसलिए हैं क्योंकि किसी और ने हमें धोखा दिया। अगर हर कोई इस व्यक्ति की तरह वफ़ादार होता, तो हम में से किसी को मृत्युदंड न मिलता।” एक दूसरा मृत्युदंड पाया हुआ कैदी बोला, “हम सब लोग इसलिए गिरफ़्तार किए गए, क्योंकि हम लोगों ने वाकई गलत काम किया था, इसलिए हम सज़ा के हकदार हैं। लेकिन यह व्यक्ति परमेश्वर में आस्था रखता है, इसने कोई अपराध नहीं किया, लेकिन फिर भी आपने इसे बेइंतिहा यातना दी है!” एक-एक करके सारे कैदी मेरे साथ हुई नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ बोलने लगे। जो कुछ हो रहा था, उसे देखकर पुलिसवाले नहीं चाहते थे कि बात हाथ से निकल जाए, इसलिए वे लोग कुछ नहीं बोले, और खिन्न मन से वहाँ से खिसक गए। उस पल, मुझे बाइबल के इस अंश का ख़्याल आया, “राजा का मन नालियों के जल के समान यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको मोड़ देता है” (नीतिवचन 21:1)। यह देखकर कि किस तरह परमेश्वर ने सारे कैदियों को मेरे हक में कर दिया था, मेरे अंदर यह विश्वास और भी मज़बूत हो गया कि ये सब परमेश्वर के ही कर्म हैं, और उसके प्रति मेरी आस्था और भी अधिक दृढ़ हो गई!
एक चाल कामयाब नहीं हुई, तो दुष्ट पुलिसवालों ने दूसरी चाल चली। इस बार, उन्होंने नज़रबंदी गृह के वार्डन से कहकर मुझे कमर-तोड़ मेहनत वाला काम दिलवाया: मुझे प्रतिदिन दो बंडल पेपर मनी यानी कागज़ी मुद्रा बनाने का काम सौंपा गया (कागज़ी मुद्रा चीनी संस्कृति का हिस्सा है जिसमें लोग अपने पूर्वजों तक पहुँचाने के लिए कागज़ी मुद्रा को जलाते हैं। कागज़ी मुद्रा का एक-एक बंडल 1,600 टीन की चादरों और 1,600 ज्वलनशील कागज़ों को आपस में चिपका कर बनाया है)। मेरे काम का बोझ दूसरे कैदियों से दुगुना था, काम करते-करते मेरे हाथ-पैर इतनी बुरी तरह से दुखने लगते कि मैं मुश्किल से कोई चीज़ उठा पाता या पकड़ पाता। अगर मैं रात भर भी काम करता, तो भी मैं काम पूरा नहीं कर पाता। पुलिसवाले मेरी नाकाबिलियत का इस्तेमाल मुझे हर तरह का शारीरिक दंड देने के लिए करते। जब तापमान -4 डिग्री होता, तो वे मुझे ठंडे पानी से निहलाते; मुझसे रात भर काम करवाते या खड़ा रखकर पहरेदारी करवाते। उसका नतीज़ा यह हुआ कि मुझे सोने के लिए तीन घंटे से ज़्यादा न मिलते। अगर मैं लगातार अपना काम पूरा न कर पाता, तो वे लोग मेरी कोठरी के सारे कैदियों को को इकट्ठा करके बाहर ले जाते, अपनी बंदूकों से हमें घेरकर अपने हाथ सिर के पीछे लगाकर झुकने के लिये कहते। अगर कोई ज़रा भी अपनी स्थिति से डिगता, तो वे लोग उसे बिजली की छड़ी से झटका देते। वे दुष्ट पुलिसवाले हर वह तरीका आज़माते जिससे कि बाकी के कैदी मुझसे नफ़रत करें और गाली दें। ऐसी स्थिति में मैं केवल परमेश्वर से प्रार्थना ही कर सकता था: “प्रिय परमेश्वर, मैं जानता हूँ ये दुष्ट पुलिसवाले कैदियों को उकसाते हैं ताकि वे मुझसे घृणा करें और यातना दें जिससे कि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ। यह एक आध्यात्मिक लड़ाई है! हे परमेश्वर! कैदी मुझसे जैसे चाहे पेश आएँ, मैं तेरे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने को तैयार हूँ, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू मुझे ये कष्ट सहने की शक्ति दे। मैं तेरी गवाही देना चाहता हूँ!” उसके बाद, मैंने एक बार फिर परमेश्वर के कर्मों को देखा। मृत्युदंड प्राप्त कैदियों ने मुझसे नफ़रत करने के बजाय, मेरे पक्ष में हड़ताल कर दी, और माँग करने लगे कि अधिकारी मेरे काम के बोझ को आधा कर दें। आख़िरकार, पुलिसवालों को कैदियों की माँगों के सामने झुकना पड़ा।
हालाँकि उन्हें मजबूरन मेरे काम का बोझ आधा करना पड़ा, लेकिन पुलिसवालों के पास भी चालबाज़ियों की कमी नहीं थी। कुछ दिनों के बाद, सेल में एक नया “कैदी” आया। वह मेरे प्रति बड़ा दयालु था, मुझे किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती, वह खरीदकर दे देता, वह मेरे लिए खाना ला देता, मेरा हाल-चाल पूछता, वह मुझसे यह भी पूछता कि मुझे क्यों गिरफ़्तार किया गया है। शुरू में तो मैंने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, और उसे बता दिया कि मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और मुझे धार्मिक सामग्री छापने के कारण गिरफ़्तार किया गया है। वह लगातार मुझसे पुस्तक-छपाई के काम की बारीकियों के बारे में पूछता रहता, जब मैंने देखा कि वह किस तरह सवाल पर सवाल करता रहता है, तो मुझे बेचैनी होने लगी और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मेरे आस-पास जो लोग, चीज़ें और हालात हैं, उसकी अनुमति स्वयं तूने दी है। अगर यह व्यक्ति पुलिस का ख़बरी है, तो मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू इसकी सच्चाई मेरे सामने उजागर कर।” प्रार्थना करने के बाद, मैं परमेश्वर के आगे शांत रहा। मेरे मन में परमेश्वर के वचनों के ये अंश आए: “मेरी उपस्थिति में मौन रहो और मेरे वचन के अनुसार जीते रहो, जिससे तुम वास्तव में जागरूक रहोगे और अपने उत्साह में विवेकशील बने रहोगे। जब भी शैतान आएगा, तुम तुरंत उसके सामने अपनी रक्षा करने में सक्षम रहोगे, और उसके आने का पूर्वाभास भी कर लोगे; तुम अपनी आत्‍मा में वाकई बेचैनी महसूस करोगे” (“वचन देह में प्रकट होता है” में आरम्भ में मसीह के कथन के “अध्याय 19”)। मैंने बार-बार उन सवालों पर विचार किया जो यह तथाकथित “नया कैदी” पूछ रहा था। मुझे एहसास हुआ कि उसके सवाल बिल्कुल वैसे ही थे, जो बातें पुलिसवाले मुझसे उगलवाना चाहते थे। उस पल, मुझे लगा जैसे मैं सपने से जागा हूँ: यह भी दुष्ट पुलिस की एक चाल थी और यह व्यक्ति ख़बरी था। “कैदी” ने देखा कि मैं अचानक ख़ामोश हो गया हूँ। उसने मुझसे पूछा कि मेरी तबियत तो ठीक है न। मैंने कहा कि मेरी तबियत ठीक है, और फिर मैंने उससे सख्ती और ईमानदारी से कहा, “मैं आपकी परेशानी कम कर दूँ और आपको बता दूँ कि आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। अगर मुझे सब-कुछ पता भी होता, तो भी मैं आपको कुछ नहीं बताता!” सारे कैदियों ने मेरे बर्ताव की तारीफ़ की, “हम सब लोग आप विश्वासियों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वाकई आप में दम है!” ख़बरी से कोई जवाब देते नहीं बना। दो दिन बाद, वह खिसक गया।
मैं उस नज़रबंदी गृह में एक साल और आठ महीने रहा। हालाँकि उन ठग पुलिसवालों ने मेरी ज़िंदगी दूभर करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन परमेश्वर ने मृत्युदंड प्राप्त कैदियों को मेरी देखभाल के लिए मेरे पक्ष में कर दिया। बाद में मुखिया कैदी को दूसरी जगह भेज दिया गया और कैदियों ने अपना नया मुखिया कैदी चुन लिया। जब कभी किसी कैदी को कोई परेशानी होती, तो मैं उसकी मदद करने की पूरी कोशिश करता। मैं उनसे कहता, “मैं परमेश्वर का एक निष्ठावान विश्वासी हूँ। परमेश्वर चाहता है कि हम सब इंसानियत से जिएँ। भले ही हम जेल में रहें, जब तक ज़िंदा हैं, हमें इंसानियत से जीना चाहिए।” मेरी इस बात के बाद, कैदियों ने नए कैदियों को सताना छोड़ दिया। कभी “सेल संख्या 7” के नाम से कैदियों के मन में ख़ौफ़ पैदा होता था, लेकिन मेरे रहने के दौरान, यह सेल एक सभ्य सेल बन गया। सारे कैदी कहते, “ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोग बहुत अच्छे इंसान हैं। अगर हम कभी यहाँ से आज़ाद हुए, तो हम लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखेंगे!” नज़रबंदी गृह के मेरे अनुभव ने मुझे यूसुफ़ की कहानी की याद दिला दी। जब वह मिस्र में कैद था, तो परमेश्वर उसके साथ था, परमेश्वर ने उस पर अनुग्रह किया, और यूसुफ़ के लिए सब-कुछ आसान हो गया। इस दौरान, मैंने सब-कुछ परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप किया और अपने आपको उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित कर दिया। इस तरह, परमेश्वर मेरे साथ था, और उसने हर मुसीबत का सामना करने में मेरी मदद की। मैंने परमेश्वर को उसके अनुग्रह के लिए तहेदिल से धन्यवाद दिया!
बाद में, बिना किसी भी सबूत के, सीसीपी सरकार मुझ पर झूठे आरोप मढ़कर मुझे पूरे तीन साल के लिए जेल में डाल दिया। अंतत: 2009 में मुझे रिहा कर दिया गया। मेरे जेल से निकलने के बाद, स्थानीय पुलिस मुझ पर पूरी नज़र रखती रही और अपेक्षा करती रही कि मैं पूरे नियम-कानून का पालन करूँ। अब मेरी कोई व्यक्तिगत आज़ादी नहीं रही, मेरी सारी गतिविधियाँ सीसीपी सरकार के नियंत्रण के अधीन हो गईं। मुझे मजबूरन घर छोड़कर भागना पड़ा और कहीं और अपने कर्तव्य का निर्वाह करना पड़ा। इसके अलावा, चूँकि मैं परमेश्वर का वफ़ादार था, इसलिए सीसीपी सरकार ने मेरे पारिवारिक घर के पंजीकरण रिकॉर्ड की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया (मेरे दो बेटों के पंजीकरण रिकॉर्ड की प्रक्रिया आज भी जारी है) इससे मेरे सामने यह बात और भी स्पष्ट हो गई कि सीसीपी सरकार के शासन में जीवन जीता-जागता नरक है। सीसीपी सरकार ने मुझ पर जो क्रूर अत्याचार किये हैं, मैं उन्हें आजीवन नहीं भूल सकता। मैं पूरे मन-प्राण से उससे घृणा करता हूँ, उसकी दासता में रहने के बजाय मैं मरना पसंद करूँगा। मैं पूरी तरह से इसका त्याग करता हूँ!
इस अनुभव से मुझे परमेश्वर के बारे में बहुत समझ प्राप्त हुई है। मैंने उसकी सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धि और उसकी अच्छाई का सार देखा है। मैंने यह भी देखा है कि शैतानी सीसीपी सरकार परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर जितने चाहे अत्याचार करे, इसकी हैसियत परमेश्वर के कार्य में सेवा-पात्र और विषमता से अधिक कुछ नहीं है। सीसीपी सरकार परमेश्वर की परास्त शत्रु है और हमेशा रहेगी। कितनी ही बार, हताशा के पलों में परमेश्वर की चमत्कारी सुरक्षा ने मुझे बचाया है, जिससे कि मैं शैतान के चंगुल से आज़ाद हो पाया और मौत के कगार पर पहुँचकर पुन: जीवन को प्राप्त कर पाया; कितनी ही बार, परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिलासा दी और मेरे अंदर जोश भरा, वे वचन उस समय मेरा सहारा और आश्रय बने जब मैं सबसे कमज़ोर महसूस कर रहा था और बेहद मायूस था, इन्हीं वचनों के कारण मैं अपनी देह से परे जाकर अपने आपको मौत के पंजे से छुड़ा पाया; कितनी ही बार, जब मैं आख़िरी साँसें गिन रहा था, तो परमेश्वर की जीवन-शक्ति ने मुझे संभाला और जीने की शक्ति दी। जैसे कि परमेश्वर के वचन कहते हैं, “परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी शक्ति पर प्रभुत्व कर सकती है; इसके अलावा, वह किसी भी शक्ति से अधिक है। उसका जीवन अनन्त काल का है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसके जीवन की शक्ति आसानी से किसी भी प्राणी या शत्रु की शक्ति से पराजित नहीं हो सकती। परमेश्वर की जीवन-शक्ति का अस्तित्व है, और अपनी शानदार चमक से चमकती है, चाहे वह कोई भी समय या स्थान क्यों न हो। स्वर्ग और पृथ्वी बहुत बड़े बदलावों से गुज़र सकते हैं, लेकिन परमेश्वर का जीवन हमेशा समान ही रहता है। हर चीज़ का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा, परन्तु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा। क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत है, और उनके अस्तित्व का मूल है” (“वचन देह में प्रकट होता है” में “केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है”)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की महिमा बनी रहे!

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