परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" (अंश 2)


परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" (अंश 2)

परमेश्वर ने इस संसार को बनाकर मनुष्य नामक प्राणी को इसमें बसाया, और उसे जीवन प्रदान किया। इसके बदले में, मनुष्य को माता-पिता और परिजन मिले और अब वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने इस भौतिक संसार पर अपनी पहली नज़र डाली, तो उसे परमेश्वर के विधान के भीतर ही अस्तित्व में रहने के लिए नियत किया गया था। यह जीवन की श्वास परमेश्वर की ओर से थी जो प्रत्येक जीवित प्राणी को युवावस्था की ओर बढ़ने में सहायता करती है। इस प्रक्रिया के दौरान, कोई भी यह विश्वास नहीं करता कि मनुष्य परमेश्वर के देखभाल में जीवित रहता और बढ़ता है। बल्कि, वे मानते हैं कि मनुष्य अपने माता-पिता के प्रेम और देखभाल में बढ़ता है, और उसका बढ़ना जीवन की प्रवृत्ति से संचालित होता है। इसका कारण यह है कि मनुष्य नहीं जानता है कि कौन जीवन देता है या वह कहां से आया, और इससे बेखबर है कि जीवन की प्रवृत्ति चमत्कारों को कैसे बनाती है। मनुष्य सिर्फ यह जानता है कि जीवन की निरंतरता के लिए भोजन आवश्यक है, यह कि जीवन के अस्तित्व का स्रोत दृढ़ता से आता है, और उसके मन का विश्वास उसके अस्तित्व की पूंजी है। मनुष्य परमेश्वर के अनुग्रह और प्रावधानों को महसूस नहीं करता है। मनुष्य इसलिए परमेश्वर के द्वारा उसे दिए हुए जीवन को व्यर्थ में गवां देता है...। कोई भी मनुष्य जिस पर परमेश्वर दिन और रात नज़र रखे रहता है, उसकी आराधना करने के पहल नहीं करता। परमेश्वर अपनी योजना के तहत मनुष्यों के लिए लगातार कार्य करता रहता है जिसके लिए वह किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं करता है। वह इस आशा में इस कार्य को करता है कि एक दिन मनुष्य अपने स्वप्न से जागेगा और अचानक जीवन के मूल्यों और उद्देश्यों को समझ लेगा, उस कीमत को समझेगा जिस पर परमेश्वर ने मनुष्य को सब कुछ दिया है, और जानेगा कि कितनी उत्सुकता से परमेश्वर मनुष्य की राह देखता है कि वह उसके पास लौट आए। किसी ने कभी भी मनुष्य के जीवन की उत्पत्ति और निरंतरता के रहस्यों को नहीं जाना है। फिर भी, केवल परमेश्वर ही है जो मनुष्य की ओर से प्राप्त होने वाले दुखों और चोट को चुपचाप सहन करता है, जिसने परमेश्वर से सब कुछ प्राप्त किया परन्तु वह उसके प्रति कृतज्ञ नहीं है। मनुष्य अपने जीवन में आने वाली हर एक बात को यूं ही ले लेता है, और आदतन मनुष्य द्वारा परमेश्वर को धोखा दिया जाता है, उसे भुला दिया और उससे बलपूर्वक ले लिया जाता है। क्या परमेश्वर की योजना वाकई इतनी महत्वपूर्ण है? क्या मनुष्य, जीवित प्राणी जो परमेश्वर के हाथ से आया, सच में इतना महत्व रखता है? परमेश्वर की योजना अत्यंत महत्वपूर्ण है; और अपनी योजना के लिए ही परमेश्वर ने प्राणी की रचना की है। इसलिए, परमेश्वर मनुष्य से घृणा के कारण अपनी योजना को बर्बाद नहीं कर सकता। परमेश्वर अपनी योजना के लिये, जो श्वास उसने छोड़ी उसके लिए कष्ट उठाता है वह मनुष्य की देह के लिये नहीं बल्कि उसके जीवन के लिये ही इतने सब कष्ट उठाता है। वह मनुष्य के देह को नहीं बल्कि जीवन के रूप में जो श्वास उसने छोड़ा है, उसे वापिस लेना चाहता है। यही उसकी योजना है।

जो भी इस संसार में आता है उसे जीवन और मृत्यु का अनुभव करना आवश्यक है, और कई लोगों ने मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का अनुभव किया है। जो जीवित हैं वे जल्द ही मर जाएंगे और मरने वाले जल्द ही वापस आएंगे। परमेश्वर के द्वारा यह सब कुछ प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए निर्धारित किया हुआ है। हालांकि, यह विषय और चक्र वे सत्य है जो परमेश्वर मनुष्य को दिखाना चाहता है, कि मनुष्य को परमेश्वर के द्वारा दिया हुआ जीवन अंतहीन और, देह, समय या स्थान से मुक्त है। यह जीवन का रहस्य परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया है और यह सिद्ध करता है कि जीवन उसी के द्वारा आता है। हालांकि कई लोग यह विश्वास नहीं करेंगे कि जीवन परमेश्वर की ओर से प्रदान किया जाता है, मनुष्य उसके अस्तित्व पर विश्वास करे या न करे, लेकिन वह निश्चय ही परमेश्वर की ओर से प्रदान की गई प्रत्येक चीज़ का आनन्द लेता है। अगर परमेश्वर का हृदय एक दिन अचानक परिवर्तित हो जाये और दुनिया में मौजूद प्रत्येक चीज़ को वह पुनः मांगे और जो जीवन उसने दिया उसे वापस ले ले, तब कुछ भी नहीं बचेगा। परमेश्वर अपने जीवन का प्रयोग सभी को पोषण प्रदान करने के लिये करता है, फिर वह चाहे सजीव हो या निर्जीव, सभी को अपने सामर्थ्य और अधिकार के बल से सही व्यवस्था में लाता है। यह एक सत्य है जो कोई भी आसानी से धारण नहीं कर सकता है या समझ नहीं सकता है और ये परमेश्वर के द्वारा जीवन शक्ति के न समझ में आने वाले सत्यों का सही प्रगटीकरण और आदेश है। अब मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं: परमेश्वर के जीवन की महानता और सामर्थ्य किसी भी प्राणी के द्वारा मापी नहीं जा सकती। यह ऐसा ही है, ऐसा ही था और आने वाले समय में भी इसी प्रकार से रहेगा। और दूसरा रहस्य है: सभी प्राणियों के लिये परमेश्वर के द्वारा ही जीवन का स्रोत आता है, चाहे वह किसी भी रूप या स्वरूप में हो। तुम किसी भी प्रकार के प्राणी हो, तुम परमेश्वर के द्वारा निर्धारित जीवन के मार्ग को बदल नहीं सकते। किसी भी मामले में, मैं मनुष्य के लिए यही इच्छा करता हूं कि मनुष्य यह समझें कि बिना देखभाल, सुरक्षा और परमेश्वर के प्रावधान के, मनुष्य जो प्राप्त करने के लिए रचा गया है वह प्राप्त नहीं कर सकता, चाहे वह कितना भी अधिक प्रयास या संघर्ष कर ले। परमेश्वर की ओर से प्रदान किये गये जीवन के बिना, मनुष्य अपने जीवन के मूल्य और उद्देश्य को खो देता है। परमेश्वर ऐसे मनुष्य को कैसे लापरवाह होने दे सकता है जो अपने जीवन के मूल्य को व्यर्थ गंवा देता है? और फिर इस बात को भी न भूलो कि परमेश्वर तुम्हारे जीवन का मुख्य स्रोत है। यदि परमेश्वर ने जो कुछ भी मनुष्य को दिया है वह उसे संजो कर रखने में विफल रहता है तो जो कुछ परमेश्वर ने उसे दिया है वह उसे न केवल वापस ले लेगा, बल्कि उससे भी ज्यादा परमेश्वर ने मनुष्य के लिए जो कुछ भी खर्च किया है उसका दुगुना उसे भरना पड़ेगा।
 — "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है" से उद्धृत

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