क्रूर यातनाओं में जीने से परमेश्वर में मेरी आस्था मज़बूत हुई है

झाओ रुई, शानशी प्रांत
मेरा नाम झाओ रुई है। परमेश्वर के अनुग्रह के कारण, मेरा पूरा परिवार 1993 से प्रभु यीशु का अनुसरण करने लगा। 1996 में, जब मैं सोलह साल की थी, तो प्रभु यीशु के प्रेम से आकर्षित होकर मैं कलीसिया में काम करने लगी और उपदेश देने लगी। लेकिन जल्दी ही, मैंने कलीसिया में बहुत-सी चीज़ों को ध्यान से देखना शुरू किया, तो मुझे बेहद मायूसी हुई: सहकर्मी एक-दूसरे के खिलाफ़ षडयंत्र करने में लगे हुए थे, एक-दूसरे को नज़रंदाज़ करते थे, सत्ता और लाभ के लिए स्पर्धा करते थे। ऐसा लगता था जैसे एक-दूसरे से प्रेम करने की प्रभु की शिक्षाओं को बहुत पहले ही भुला दिया गया था। उपदेश देने वालों के पास जैसे कहने को कुछ था ही नहीं, कलीसियाई जीवन जीने में कोई आनंद नहीं था। बहुत सारे भाई-बहन नकारात्मक हो चुके थे और उन्होंने सभाओं में भाग लेना ही बंद कर दिया था…। कलीसिया की ऐसी रूखी और उजाड़ स्थिति देखकर, मुझे विशेष तौर पर दुख और बेबसी का एहसास हुआ। जुलाई, 1999 में, परमेश्वर के चमत्कारी आयोजनों और व्यवस्थाओं की बदौलत, मैंने प्रभु यीशु—सर्वशक्तिमान परमेश्वर की वापसी का स्वागत किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और कलीसियाई जीवन से जुड़कर, मैंने एक बार फिर पवित्र आत्मा के कार्य का आनंद लिया। जब मैंने भाई-बहनों के साथ सभाओं में भाग लिया, तो धार्मिक तरीके से जीने का मेरा पिछला जीवन खत्म हो गया; हर कोई उस बात को कह सकता था जो वो सचमुच महसूस करता था, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता ने जो रोशनी हमें दी थी, हम लोग उस पर सहभागिता करते थे और परमेश्वर के वचनों के अपने अनुभवों पर, और अपनी भ्रष्टता को दूर करने के लिए परमेश्वर पर कैसे भरोसा करें, इस बात पर चर्चा करते थे। इसके अलावा, भाई-बहन बहुत ही भक्तिमय और गरिमापूर्ण तरीके से रहते थे; एक-दूसरे को माफ कर देते थे, एक-दूसरे की कमियों और भ्रष्टता के प्रदर्शन के प्रति सहनशील थे, और बड़े प्रेम से एक-दूसरे की सहायता किया करते थे। अगर कोई मुश्किल दौर से गुज़र रहा होता था, तो उसे नीची नज़रों से नहीं देखते थे, या उसे छोटेपन का एहसास नहीं कराते थे, बल्कि उसकी समस्याओं के समाधान के लिए उसके साथ सत्य की तलाश करते थे। मैं हमेशा इसी कलीसियाई जीवन की कामना किया करती थी—एक ऐसा सच्चा मार्ग जिसकी खोज मैंने बरसों की थी! बरसों तक खोए रहने के बाद, आखिरकार मैं परमेश्वर के सामने लौट आयी थी! मैंने परमेश्वर से एक संकल्प किया: "मैं उन मासूम लोगों को परमेश्वर के सामने लाऊँगी जो अभी भी अंधेरे में जी रहे हैं, ताकि वे इस काबिल बन सकें कि पवित्र आत्मा के कार्य के मार्गदर्शन और आशीष में जी सकें, और परमेश्वर के सजीव जीवन जल द्वारा पोषित हो सकें। एक सृजित प्राणी होने के तौर पर यह मेरा आह्वान है और अपने जीवन को जीने का परम सार्थक और मूल्यवान तरीका है।" उसके साथ ही, मैंने स्वयं को अपने कर्तव्यों को पूरा करने में झोंक दिया।
लेकिन, सच्चे परमेश्वर से नफ़रत करने वाली, सत्य से घृणा करने वाली नास्तिक सीसीपी सरकार हमें न तो परमेश्वर का अनुसरण करने, न ही परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने की अनुमति देती थी, फिर परमेश्वर की कलीसिया के अस्तित्व को सहन करने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता है। 2009 की वसंत ऋतु में, सीसीपी सरकार ने बड़े पैमाने पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के प्रधान अगुवाओं की गिरफ्तारी का अभियान चलाया। एक-एक करके पूरे देश में कलीसियाओं के प्रधान अगुवाओं को गिरफ्तार करके जेल में ठूँस दिया गया। 4 अप्रैल को, रात को करीब 9.00 बजे मैं और एक बहन जो हमारे कर्तव्यों को निभाने में हमारे साथ थी, मेज़बानी करने वाले घर से बाहर निकलकर रास्ते पर जा रहे थे कि तभी सादे कपड़ों में अचानक तीन व्यक्ति लपककर हमारे पीछे आए और बाहों से पकड़कर हमें जबरन घसीटने लगे, और चिल्लाकर बोले, "चलो! तुम लोग हमारे साथ चलो!" इससे पहले कि हम कुछ कर पाते, उन्होंने हमें रास्ते पर खड़ी एक काली गाड़ी की पिछली सीट पर पटक दिया। यह बिल्कुल वैसे ही हुआ जैसे फिल्मों मे बदमाश आते हैं और दिन-दहाड़े किसी का अपहरण कर लेते हैं, फ़र्क सिर इतना था कि यह हमारे साथ असलियत में हो रहा था, और बहुत ही खौफ़नाक था। मैं बुरी तरह डर गयी और मन ही मन परमेश्वर को पुकारने लगी: "प्यारे परमेश्वर! मुझे बचा ले! हे परमेश्वर, प्लीज़ मुझे बचा ले…।" मैं संभल भी नहीं पायी थी की हमारी गाड़ी म्यूनिसिपल पब्लिक सेक्युरिटी ब्यूरो के मुख्य अहाते में आकर रुकी। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि हम लोग पुलिस के हत्थे चढ़ गए हैं। तभी वे लोग हमारे मेज़बान घर की बहन को भी ले आए। हम तीनों को दूसरी मंज़िल के दफ्तर में ले जाया गया। एक अधिकरी ने बिना कोई स्पष्टीकरण दिए, हमसे हमारे बैग ज़ब्त कर लिए और हमें दीवार की तरह मुँह करके खड़ा कर दिया। उसने जबरन हमारे कपड़े उतरवा दिए और हमारी पूरी तलाशी ली। फिर उसने हमसे ज़बर्दस्ती कलीसिया के काम से संबंधित कुछ सामग्री, कलीसिया के पैसे की रसीदें, हमारे मोबाइल फोन, 5,000 से ज़्यादा नकदी चीनी मुद्रा, एक बैंक कार्ड और घड़ी, इन सबके अलावा हमारे बैग में रखी निजी वस्तुएँ ज़ब्त कर लीं। जब यह सब चल रहा था, तो सात-आठ पुलिस अधिकारी कमरे में आते-जाते रहे। दो अधिकारी जो हम पर निगाह रखे हुए थे, उन्होंने अट्टहास करते हुए मेरी तरफ इशारा किया और कहा, "यह वाली तो कलीसिया में बहुत अहमियत रखती है, लगता है आज हमने बड़ी मछली को फाँसा है।" उसके फ़ौरन बाद, सादी वर्दी पहने पुलिस अधिकारियों ने मुझे हथकड़ी लगायी, आँखों पर पट्टी बाँधी, और शहर से बहुत दूर म्यूनिसिपल पब्लिक सेक्युरिटी ब्यूरो की शाखा में ले गए।
जब मैंने पूछताछ कमरे में जाकर ऊँची, लोहे की जाली वाली खिड़की, खौफनाक और बेजान-सी दिखने वाली टाइगर कुर्सी देखी, तो मुझे उन भाई-बहनों की भयानक कहानियाँ याद आ गयीं जिन्हें पहले यातनाएँ दी गयी थीं। उन अनजान यातनाओं के बारे में सोचकर, जो ये दुष्ट पुलिस अधिकारी मुझे देने वाले थे, मैं बेहद डर गयी, और अनचाहे ही मेरे हाथ काँपने लगे। ऐसी निराशाजनक स्थिति में, मेरे मन में अचानक परमेश्वर के वचन आए: "आपके दिल में अभी भी डर बैठा हुआ है, और क्या आपका दिल अब भी शैतान से आते विचारों से भरा हुआ नहीं है? एक विजेता क्या है? मसीह के अच्छे सैनिकों को बहादुर होना चाहिए और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होने के लिए मुझ पर निर्भर होना चाहिए; उन्हें योद्धा बनने के लिए लड़ना होगा और शैतान का सामना मौत तक करना होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 12")। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन ने धीरे-धीरे मेरे भयभीत हृदय को शांत किया और मुझे एहसास कराया कि मेरे भय का मूल शैतान है। मैंने सोचा: "शैतान मेरी देह को यातना देना चाहता है ताकि मैं उसकी निरंकुशता के आगे हार मान लूँ। लेकिन मैं उसकी धोखेबाज़ी के आगे झुक नहीं सकती। चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे भरोसा है कि परमेश्वर मेरे साथ है, मुझ पर नज़र रखे हुए है, मेरी देखभाल कर रहा है। हर समय, परमेश्वर मेरा पक्का सहारा और शाश्वत आसरा रहेगा। आध्यात्मिक युद्ध का यह महत्वपूर्ण पल है और यह ज़रूरी है कि इस समय मैं परमेश्वर की गवाही दूँ। मुझे परमेश्वर के साथ खड़ा होना चाहिए, मैं शैतान के आगे नहीं झुक सकती।" इस बात का एहसास होने के बाद, मैंने मन ही मन प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! तेरे नेक इरादों के कारण ही आज मैं इन दुष्ट पुलिसवालों के हाथ लगी हूँ। लेकिन मेरा कद बहुत ही छोटा है, मैं घबराई हुई और भयभीत हूँ। मैं तुझसे प्रार्थना करती हूँ कि तू मुझे आस्था और हौसला दे, ताकि मैं शैतान के प्रभाव के बंधनों से मुक्त हो सकूँ, उसके आगे न झुकूँ और दृढ़तापूर्वक तेरी गवाही दे सकूँ!" प्रार्थना समाप्त करने के बाद, मेरा दिल हौसले से भर गया, और मुझे उन दुर्जन-दिखने वाले दुष्ट पुलिसकर्मियों से उतना भय नहीं लगा।
तभी, दो अधिकारियों ने मुझे टाइगर कुर्सी पर पटक दिया और मेरे हाथ-पैरों में ताले डाल दिए। एक विशाकाय जानवर से दिखने वाले अधिकारी ने दीवार की तरफ इशारा किया जिस पर लिखा था "कानून का शिष्ट प्रवर्तन" और फिर मेज़ पर ज़ोर से हाथ मारते हुए चिल्लाया, "तुझे पता है तू कहाँ है? पब्लिक सेक्युरिटी ब्यूरो चीनी सरकार की एक ऐसी शाखा है जिसे हिंसा में महारथ हासिल है! अगर तूने सब-कुछ साफ़-साफ़ नहीं बताया, तो फिर तेरी खैर नहीं! चल बता! तेरा नाम क्या है? उम्र कितनी है? कहाँ से है? कलीसिया में तेरी हैसियत क्या है?" उसकी आक्रामक और बेबाक प्रकृति और पब्लिक सेक्युरिटी ब्यूरो नाम की राष्ट्रीय प्रवर्तन एजेंसी की उसकी निजी जानकारी से मैं तमतमा गयी। मैंने सोचा: "ये लोग हमेशा 'जनता की पुलिस' होने, 'दुष्टों के खात्मे और कानून का पालन करने वालों को शांति से रहने देने का दावा करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ये लोग ठगों, डाकु-हत्यारों के झुंड हैं। ये लोग ऐसे दरिंदे हैं जो इंसाफ़ पर आक्रमण करते हैं, नेक और ईमानदार लोगों को दंडित करते हैं! ये पुलिसवाले उन लोगों को नज़रंदाज़ कर देते हैं जो नियमों को तोड़ते हैं और अपराध करते हैं, उन्हें कानून के दायरे से बाहर रहने की छूट देते हैं। उसके बावजूद कि हम लोग परमेश्वर में आस्था रखते हैं, परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, सही राह पर चलते हैं, हम लोग इस वहशी झुंड की हिंसा का निशाना बन गए हैं। सीसीपी सरकार न्याय को पलटने वाली विकृत सरकार है।" हालाँकि मुझे उन दुष्ट पुलिसवालों से घृणा हो गयी थी, लेकिन मुझे पता था कि मेरा कद बहुत छोटा है, मैं उनके क्रूर दंड और यातना को सह नहीं पाऊँगी। इसलिए, मैंने बार-बार परमेश्वर को पुकार, उससे याचना की कि मुझे शक्ति दे। तभी, परमेश्वर के इन वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया: "विश्वास लकड़ी के इकलौते लट्ठे के पुल की तरह है, जो लोग अशिष्टापूर्वक जीवन से लिपटे रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो खुद का त्याग करने को तैयार रहते हैं वे बिना किसी फ़िक्र के उसे पार कर सकते हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 6")। परमेश्वर के वचनों की दिलासा और हौसले ने मुझे स्थिर रहने में मदद की, मैंने सोचा: "आज मुझे सब-कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार रहना चाहिए—अगर मरने की नौबत आती है, तो वही सही। अगर दरिंदों के इस गिरोह को यह लगता है कि वे लोग मुझसे कलीसिया के पैसे, काम या हमारे अगुवाओं के बारे में मुझसे उगलवा लेंगे, तो गलतफहमी में हैं!" इसके बाद, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की: "प्यारे परमेश्वर! तू हर चीज़ का शासक है, शैतान भी तेरी मुट्ठी में और तेरे आयोजनों के तहत है। आज तू मेरी आस्था और भक्ति को आज़माने के लिए शैतान का इस्तेमाल कर रहा है। हालाँकि इस वक्त मेरा शरीर कमज़ोर है, लेकिन मैं शैतान के कदमों में गिरने को तैयार नहीं हूँ। मैं मज़बूती के लिए तुझ पर भरोसा करना चाहती हूँ। शैतान मुझे चाहे जितना सताए, लेकिन मैं न तो तुझे धोखा दूँगी और न ही तुझे दुख पहुँचाऊँगी!" उन दरिंदों ने हर तरह से मुझसे पूछताछ की, मुझसे जानकारी निकलवाने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर के वचनों के कारण, मैंने अपनी ज़बान नहीं खोली।
यह देखकर कि मैं ज़बान नहींखोल रही हूँ, एक अधिकार ने गुस्से में ज़ोर से मेज़ पर हाथ मारा। उसने तेज़ी से मेरी तरफ आकर, टाइगर कुर्सी को लात मारी जिस पर मैं बँधी हुई थी। फिर उसने मेरे सिर को पकड़कर झिंझोड़ा और चिल्लाकर बोला, "उगल दे जो कुछ तुझे पता है! ये मत सोच कि हमें कुछ पता नहीं है। अगर हमें कुछ पता नहीं होता, तो हम लोग तुम तीनों की सही ठिकाने पर धर-पकड़ कैसे करते? "एक दूसरा लम्बा पुलिसवाला दहाड़ा, "देख मेरे सब्र का इम्तहान मत ले! अगर हमने तुझे थोड़े-बहुत दर्द का एहसास नहीं कराया, तो तू सोचेगी कि हम तुझे सिर्फ़ गीदड़-भभकी दे रहे हैं। चल खड़ी हो जा!" अपनी बात खत्म करते ही वह मुझे टाइगर कुर्सी से घसीटकर खिड़की के नीचे ले गया, खिड़की दीवार में काफी ऊँचाई पर थी और उसमें लोहे की जालियाँ लगी हुई थीं। उन्होंने मेरे दोनों हाथों में काँटेदार हथकड़ी लगा दी, एक सिरे को मेरे हाथों से बाँध दिया और दूसरे को लोहे की जाली से ताकि मैं सिर्फ हाथों के सहारे खिड़की से लटक जाऊँ और सिर्फ मेरी एड़ियाँ ही ज़मीन को छू पाएँ। एक दुष्ट पुलिसवाले ने कमरे के एयरकंडीशनर को चलाकर कमरे का तापमान कम कर दिया और एक गोल की हुई पत्रिका से मेरे सिर पर ज़ोर से मारा। उसके बावजूद मुझे शांत देखकर, वह गुस्से में पागल होकर चीखा: "तू ज़बान खोलेगी या नहीं? अगर नहीं खोली तो हम तुझे 'झूला झुलाएँगे'! "उसके बाद, उसने एक फौजी-स्तर की पैकिंग बेल्ट मेरे पैरों में बाँध दी और बेल्ट को टाइगर कुर्सी से बाँध दिया। दो पुलिसवाले टाइगर कुर्सी को खींचकर दूर ले गए और इस तरह मैं हवा में लटक गयी। ऐसी स्थिति में मेरा शरीर आगे की ओर हो गया, हथकड़ियाँ खिसककर मेरी कलाइयों के मुहाने पर आ गयीं जिसके कारण हथकड़ियों के काँटे मेरे हाथों के पिछले हिस्से में गड़ गए। मुझे भयंकर पीड़ा हो रही थी, लेकिन मैंने अपने होठों को कसकर काट लिया ताकि मेरी चीख न निकले और उन दुष्ट पुलिसवालों को मुझ पर हँसने का मौका न मिले। उनमें से एक ने अपनी कुटिल खीसें निपोरते हुए कहा, "लगता है इसे दर्द नहीं हो रहा! ला इसकी चूड़ियाँ थोड़ी और कस दूँ। "यह कहकर, उसने अपना पैर उठाया और मेरी पिंडलियों पर चढ़कर मेरे शरीर को दोनों तरफ झुला दिया। इसके कारण मेरी कलाइयों के आसपास और हाथों की पिछली तरफ हथकड़ियाँ और ज़्यादा कस गयीं। दर्द न सह पाने की वजह से आखिरकार मेरी चीख निकल गयी। इससे वे दोनों दुष्ट पुलिसवाले हँस-हँसकर लोट-पोट हो गए। तब जाकर उसने मेरे पैरों को दबाना बंद किया, उसके ऐसा करने से मैं फिर हवा में लटक गयी। करीब बीस मिनट के बाद, उस पुलिसवाले ने अचानक टाइगर कुर्सी को कर्कश ध्वनि के साथ मेरी तरफ धकेल दिया, अपने शरीर को पुरानी स्थिति में पाकर मेरी चीख निकल गयी, मेरा शरीर फिर से दीवार से लटक रहा था, सिर्फ मेरी एड़ियाँ ज़मीन को छू रही थीं। उसी समय, हथकड़ियाँ फिर से मेरी कलाइयों में चढ़ गयीं। हथकड़ियों के अचानक ढीला पड़ने के कारण खून का बहाव तेज़ी से हाथों से बाज़ुओं की तरह जाने लगा, खून के वापस जाने के दबाव की वजह से फड़कने वाला दर्द होनेलगा। मेरी पीड़ा देखकर दोनों पुलिसवाले कुटिलता से खिलखिलाकर हँस रहे थे, और फिर पूछताछ पर उतर आए, "तेरी कलीसिया में कितने लोग हैं? तू पैसा कहाँ रखती है?" उस आखिरी सवाल से साफ तौर पर शैतान की घिनौनी मंशा ज़ाहिर हो गयी: मुझे इस तरह की पीड़ा और यातना देने, इस तरह के पैशाचिक और क्रूर तरीके अपनाने के पीछे उनकी मंशा कलीसिया के पैसों को हड़पने की थी। वे लोग मुफ़्त में और निर्लज्जता से कलीसिया के पैसों को अपने निजीस्वार्थों की खातिर इस्तेमाल करनेकीउम्मीद लगाए बैठे थे। उनके लालची और दुष्ट चेहरे देखकर, मुझे गुस्सा आ गया और मैं लगातार परमेश्वर से याचना करने लगी कि वह मुझे यहूदा न बनने दे और इन डाकू-लुटेरों के गिरोह को अभिशाप दे। उसके बाद,उन्होंने मुझसे जो भी सवाल-जवाब किए, मैंने एक का भी उत्तर नहीं दिया, वे लोग इतने क्रोधित हो गए कि वे लोग मुझे गालियाँ बकने लगे: "कमीनी! तू बहुत ही टेढ़ी खीर है! देखते हैं तू कब तक टिकती है!" यह कहते हुए, उन्होंने टाइगर कुर्सी को फिर से दीवार से दूर खींच लिया, और मैं फिर से हवा में लटक गयी। इस बार, हथकड़ियों ने पहले से ही ज़ख्मी हाथों के पिछले हिस्से को कसकर जकड़ लिया, मेरे हाथ तेज़ी से सूज गए और उनमें खून उभर आया, ऐसा लगा जैसे ये अभी फट जाएँगे। अब की बार पिछली बार से ज़्यादा दर्द हुआ। वे लोग कैदियों को यातना और पीड़ा देने के अपने "अतीत के गौरवमय शोषण" के किस्से एक-दूसरे को सुनाने लगे। यह तमाशा करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा, फिर उन्होंने लात मारकर कुर्सी को दीवाल से झुका दिया और मैं फिर से सीधे खिड़की से लटकने और एड़ियों से ज़मीन को छू पाने भर की अपनी पुरानी स्थिति में लौट आयी। उनकी इस कारगुज़ारी के चलते, मैं एक बार फिर भयानक पीड़ा से गुज़री। तभी, एक थुलथुल पुरुष अधिकार आया और उनसे पूछने लगा, "इसने कुछ बताया?" दोनों पुलिसवालों ने जवाब दिया, "नहीं, बहुत ही अड़ियल घोड़ी है।" थुलथुल दुष्ट पुलिसवाला मेरे पास आया और उसने मुझे कसकर एक तमाचा मारा, फिर कुटिलता से फुँफकारते हुए बोला, "देखता हूँ तू कितनी अड़ियल है! ला तेरे हाथ ढीले कर दूँ।" मैंने अपने हाथों को देखा तो उनमें बहुत सूजन आ गयी थी और काले-नीले पड़ गये थे। तभी, दुष्ट पुलिसवाले ने मेरी उंगलियों को पकड़ा और उन्हें आगे-पीछे हिलाने, मसलने और चिकोटी काटने लगा, और वो ऐसा तब तक करता रहा जब तक कि मेरी सुन्न पड़ी उंगलियों में फिर से दर्द नहीं होने लगा।उसके बाद उसने मेरी हथकड़ियों को एकदम कस दिया और दो अधिकारियों को मुझे हवा में ऊपर की ओर खींचने का इशारा किया। मैं एक बार फिर हवा में लटक गयी। मैं बीस मिनट तक उसी स्थिति में रही, उसके बाद मुझे नीचे किया गया।वे लोग मुझेबार-बार ऊपर-नीचे खींचते-उतारते रहे। मुझे इस ढंग से यातना दी गयी कि मैं पीड़ा से बचने के लिए मौत की कामना करने लगी। हथकड़ियाँ जब भी मेरे हाथों में ऊपर-नीचे होतीं, तो पहले से ज़्यादा दर्द होता। अंत में, हथकड़ियों के काँटे मेरे हाथों के पिछले हिस्से की चमड़ी में घुस गए, और बहुत ज़्यादा खून बहने लगा। मेरे हाथों में खून का बहाव एकदम रुक गया और वे गुब्बारे की तरह फूल गए। ऑक्सिजन न मिलने के कारण मेरा सिर ज़ोर से चबक-चबक कर रहा था जैसे अभी फट जाएगा। मुझे वाकई लगा कि मैं मरने वाली हूँ।
जब मुझे लगा कि अब मैं यह सब और नहीं झेल पाऊँगी, तभी मेरे दिमाग में परमेश्वर के वचनों का एक अंश आया: "यरूशलेम जाने के मार्ग पर, यीशु ने संताप में महसूस किया, मानो कि कोई एक नश्तर उसके हृदय में भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं थी; हमेशा से एक सामर्थ्यवान ताक़त थी जो उसे लगातार उस ओर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाएगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें")। परमेश्वर के वचनों ने अचानक मुझे शक्ति दी और मैंने सोचा कि प्रभु यीशु ने किस तरह सलीब पर कष्ट सहा होगा: रोमन सैनिकों ने उसे कोड़े मारे, उसका मज़ाक उड़ाया, अपमानित किया और उसे बुरी तरह से पीटा। और उसके बाद भी उसे भारी सलीब लेकर चलवाया गया, वही सलीब जिस पर बाद में उसे ज़िंदा लटकाया गया। उसे भयंकर पीड़ा सहते हुए तब तक लटकाए रखा गया, जब तक कि उसके शरीर से खून की आखिरी बूंद न निकल गयी। कितना क्रूर अत्याचार! कितनी सहनीय पीड़ा! फिर भी प्रभु यीशु ने यह सब चुपचाप बर्दाश्त कर लिया। हालाँकि उस भयंकर पीड़ा को निश्चित रूप से बयाँ नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रभु यीशु ने इंसान के छुटकारे की खातिर अपनी इच्छा से स्वयं को शैतान के हवाले किया था। मैंने सोचा: "हाल ही में, परमेश्वर दूसरी बार देहधारण करके नास्तिक देश चीन में आया है। यहाँ, उसने अनुग्रह के युग से भी ज़्यादा भयानक खतरों का सामना किया है। जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रकट होकर अपना कार्य शुरू किया है, तब से सीसीपी सरकार ने उसे लाँछित करने, उसकी निंदा करने,पागलों की तरह उसका पीछा करके पकड़ने के लिए हर मुमकिन तरीके का इस्तेमाल किया है, और व्यर्थ में उम्मीद लगाए बैठी है कि वह परमेश्वर के कार्य को तबाह कर देगी। अपने दोनों देहधारणों में परमेश्वर ने जितना कष्ट उठाया है, उसकी कल्पना करना भी असंभव है, उसे बर्दाश्त करने की तो बात ही क्या है। परमेश्वर ने जितना कष्ट सहा है, उसकी तुलना में मैं जो कष्ट अब सह रही हूँ, वह तो बताने लायक भी नहीं है। इसके अलावा, ये दरिंदे मुझे इसलिए यातना दे रहे हैं क्योंकि मैं परमेश्वर की अनुयायी हूँ। सच्चाई यह है कि ये लोग परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसी को यातना देने की कोशिश कर रहे हैं। चूँकि परमेश्वर ने हमारे लिए इतने कष्ट सहे हैं, इसलिए मेरे अंदर अधिक विवेक होना चाहिए; मुझे परमेश्वर को संतुष्टि और सुख देना चाहिए, भले ही मेरी मौत हो जाए।" उस पल, मेरे मन में युगयुगांतर के तमाम संतों और नबियों की कड़ी मेहनत कौंध गयी: दनिय्येल का शेर की माँद में जाना, पतरस का सूली पर उलटा लटकना, याकूब का सिर धड़ से अलग किया जाना…। बिना किसी अपवाद के, इन संतों और नबियों ने मौत के कगार पर पहुँचकर परमेश्वर की शानदार गवाही दी। मुझे एहसास हुआ कि मुझे भी उनकी आस्था, भक्ति और समर्पण का अनुकरण करना चाहिए। इस तरह, मैंने परमेश्वर से मन ही मन प्रार्थना की: "प्यारे परमेश्वर! तू पाप-मुक्त है, लेकिन तू हमारे उद्धार के लिए सूली पर चढ़ा। अपना कार्य करने के लिए तूने चीन में देहधाण करके अपने जीवन को खतरे में डाला। तेरा प्रेम इतना महान है कि मैं तुझे कभी भी उसका प्रतिदान नहीं दे सकती। तेरे साथ-साथ यातनाओं को झेलना, आज मेरे लिए गौरव की बात है। तेरे दिल को सुख देने के लिए मैं गवाही देने को तैयार हूँ। भले ही शैतान मेरी जान ले ले, लेकिन मैं बिल्कुल शिकायत नहीं करूँगी!" परमेश्वर के प्रेम पर ध्यान केंद्रित होने से, मेरी शारीरिक पीड़ा काफी हद तक कम हो गयी। रात के दूसरे पहर में, दुष्ट पुलिसवाले लगातार बारी-बारी से मुझे यातना देते रहे। दूसरे दिन सुबह 9 बजे जाकर उन्होंने मेरे पैरों को खोला और मुझे खिड़की से लटकता छोड़ दिया। मेरे दोनों हाथ सुन्न हो गए थे, उनमें कोई संवेदना नहीं थी, मेरा पूरा बदन सूज गया था। उस समय, वे लोग उस बहन को भी मेरे बगल वाले पूछताछ कक्ष में ले आए जिसके साथ मिलकर मैं अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया करती थी। अचानक, आठ-नौ अधिकारी मेरे पूछताछ कक्ष में घुस आए, और एक छोटा, थुलथुल पुलिस अधिकारी गुस्से में कमरे में आया और मुझसे पूछताछ कर रहे दुष्ट पुलिसवालों से उसने पूछा, "इसने अभी तक अपनी ज़बान खोली या नहीं?" "नहीं खोली," उन्होंने जवाब दिया। जैसे ही उसने यह जवाब सुना, वो लपककर मेरी तरफ आया और मेरे चेहरे पर तड़ातड़ दो तमाचे मारे और तमतमाकर चिल्लाया, "तू अभी भी हमारा साथ नहीं दे रही है! हमें तेरा नाम पता है, हम यह भी जानते हैं कि तू कलीसिया की अहम अगुवा है। इस गलतफहमी में मत रहना कि हमें कुछ नहीं पता! तूने पैसा कहाँ रखा है? तुम लोगों के काम का निर्धारण और व्यवस्था कैसे होती है?" मुझे चुप देखकर, उसने मुझे धमकी दी, "अगर तूने अपना जुर्म कुबूल नहीं किया, और हमने पता लगा लिया, तो तेरी और भी ज़्यादा दुर्गति होगी। कलीसिया में तेरी हैसियत को देखते हुए, तू बीस साल के लिए जेल जाएगी!" ये दुष्ट पुलिसवाले कलीसिया के पैसों को हथियाने के लिए पागल हुए जा रहे थे। उनके जानवरों जैसे हाव-भाव देखकर गुस्से से मेरा लहू उबल रहा था, और ऐसी स्थित में मैं बस परमेश्वर से यही याचना कर सकती थी कि वो इनको शाप दे और इन्हें नरक के सबसे अंधेरे गड्ढों में पटक दे। बाद में, उन लोगों ने मेरा बैंक कार्ड हासिल कर लिया और मुझसे कार्ड पर मेरा नाम और उसका पिन पूछने लगे। मैंने सोचा: "देख लेने दो, क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी मेरे घरवालों ने खाते में कुछ ज़्यादा पैसे तो डाले नहीं थे। हो सकता है, देखने के बाद ये लोग मुझे कलीसिया के पैसों के लिए परेशान न करें।" यह सोचकर, मैंने उन्हें अपना नाम और पिन नम्बर बता दिया।
उसके बाद, मैंने कहा कि मुझे बाथरूम जाना है, तब जाकर उन्होंने मुझे नीचे उतारा। उस मुकाम तक, मैं पैरों पर अपना नियंत्रण खो चुकी थी, इसलिए उन्हीं लोगों को मुझे बाथरूम तक ले जाना पड़ा, वे लोग बाथरूम के बाहर चौकसी करते रहे। लेकिन न तो मेरे हाथों में किसी तरह की कोई संवेदना नहीं थी, न उन तक मेरे दिमाग की कोई बात पहुँच रही थी, इसलिए मैं बस दीवार से टेका लगाकर खड़ी हो गयी, मैं अपनी पैंट उतारने की स्थिति में भी नहीं थी। जब मैं काफी देर के बाद भी बाहर नहीं निकली, तो एक दुष्ट पुलिसवाले ने ज़ोर से दरवाज़े को धक्का मारा और कामुक मुस्कुराहट के साथ चिल्लाया, "अभी तक हुआ नहीं क्या?" यह देखकर कि मेरे हाथ काम नहीं कर रहे हैं, उसने मेरी पैंट उतारी और बाथरूम जाने के बाद दोबारा पहना दी। कुछ पुरुष अधिकारी बाथरूम के बाहर इकट्ठे होकर भद्दी फब्तियाँ कसने लगे और घटिया भाषा में मेरा अपमान करने लगे। करीब बीस साल की एक मासूम युवा लड़की के बारे में इन ठगों और दुष्टों की अपमानजनक फब्तियों और हाव-भाव ने अचानक मुझे अभिभूत कर दिया और मैं रोने लगी। मुझे यह भी ख्याल आया कि अगर मेरे हाथों को कहीं सचमुच लकवा मार गया, और आगे चलकर मैं अपनी देखभाल नहीं कर पायी, तो उससे बेहतर है कि मुझे मौत ही आ जाए। अगर उस वक्त मैं ठीक से चल पाती, तो मैं उसी समय बिल्डिंग से कूदकर अपनी जान दे देती। अपने सबसे कमज़ोर पलों में, मुझे कलीसिया का यह भजन याद आया: "परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है": "मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और परमेश्वर को महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा। मैं परमेश्वर की गवाही में डटे रहने, और शैतान के आगे कभी हार न मानने के लिये दृढ़निश्चयी हूँ। मेरा सिर फूट सकता है, मेरा लहू बह सकता है, मगर परमेश्वर-जनों का जोश कभी ख़त्म नहीं हो सकता। परमेश्वर के उपदेश दिल में बसते हैं, मैं दुष्ट शैतान को अपमानित करने का निश्चय करता हूँ। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, मैं उसके प्रति वफादार बने रहने के लिए अपमान सह लूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के आँसू बहाने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। परमेश्वर के प्रबोधन और प्रकाशन ने मेरे अंदर एक बार फिर आस्था भर दी और मेरी आत्मा को मज़बूती मिली। मैंने सोचा: "शैतान की चालाकियाँ मुझे बेवकूफ़ नहीं बना सकतीं। मुझे इस तरह की बात को लेकर अपनी जान नहीं देनी चाहिए। ये लोग जानबूझकर मेरा अपमान कर रहे हैं और तंज़ कस रहे हैं ताकि मैं ऐसा कुछ करूँ जो परमेश्वर को आहत करे और धोखा दे। मेरा जान देना उनके धूर्त षडयंत्र में फंसने वाली बात होगी। मैं शैतान की साज़िश को कामयाब नहीं होने दे सकती। अगर मैं सचमुच अपाहिज भी हो जाऊँ, तो भी जब तक मेरे अंदर एक भी साँस बाकी है, मुझे परमेश्वर की गवाही देते रहनी चाहिए।"
जब मैं पूछताछ कक्ष में लौटी, तो थकान के मारे फर्श पर लुढ़क गयी। कई पुलिसवाले मुझे घेरकर मुझ पर चिल्लाने लगे, और मुझे खड़े होने का हुक्म देने लगे। उस ठिगने, मोटे अधिकारी ने, जिसने मुझे तमाचे मारे थे, मुझे कसकर लात मारी और कहने लगा कि मैं नाटक कर रही हूँ। उस वक्त, मेरा शरीर काँपने लगा, मुझे साँस लेने में दिक्कत होने लगी, और मैं ज़ोर-ज़ोर से साँस लेने लगी। मेरा बायाँ पैर और सीने का बायाँ हिस्सा ऐंठने और एक-दूसरे की ओर सिकुड़ने लगे। मेरा पूरा शरीर ठंडा और सख्त होने लगा, दो अधिकारियों ने खींचकर मेरे शरीर को सीधा करने की कोशिश की, लेकिन वे लोग मुझे सीधा नहीं कर पाए। मैं मन में जानती थी कि परमेश्वर इस दर्द और तकलीफ़ का इस्तेमाल करके मेरे लिए कोई रास्ता खोल रहा है, वरना वे लोग मुझे लगातार क्रूर यातना देते रहते। मेरी इस विकट स्थिति को देखने के बाद ही, उन दुष्ट अधिकारियों ने आखिरकार मुझे पीटना बंद किया। उसके बाद उन्होंने मुझे टाइगर कुर्सी से बाँध दिया और दो अधिकारियों को मुझ नज़र रखने के लिए छोड़कर, मेरी कलीसिया की बहन को यातना देने के लिए बगल वाले कमरे में चले गए। अपनी बहन की रोंगटे खड़े कर देने वाली लगातार आती चीखों को सुनकर, मेरा मन तो ऐसा हुआ कि मैं उन दरिंदों पर झपट पड़ूँ और उन्हें मौत के घाट उतार दूँ, लेकिन मौजूदा हालात में, मैं थकान से चूर स्थिति में वहीं फर्श पर गिर गयी। मैं केवल परमेश्वर से यही प्रार्थना और याचना कर सकती थी कि वह मेरी बहन को शक्ति और सुरक्षा दे ताकि वो गवाही दे सके। उसी समय, मैंने उस नीच और दुष्ट पार्टी को दिल से बद्दुआ दी जिसने अपने लोगों को दुखों की गहराइयों में धकेल दिया था। मैंने परमेश्वर से इंसानी शक्ल में ऐसे जानवरों को सज़ा देने की गुहार लगायी। बाद में, मुझे वहाँ पड़े, आखिरी साँसें गिनते हुए देखकर, और यह झमेला पालने की इच्छा न रखते हुए कि कोई उनकी निगरानी में मर जाए, उन्होंने मुझे हस्पताल भेज दिया। हस्पताल आने के बाद, मेरे पैर और सीना फिर से ऐंठने और एक-दूसरे की ओर सिकुड़ने लगे, मुझे सीधा करने के लिए कई लोगों को मशक्कत करनी पड़ी। मेरे दोनों हाथ गुब्बारे की तरह सूज गए थे और उनमें खून के थक्के बन गए थे। हाथों में मवाद भर गया था जिसकी वजह से मुझे वो लोग आईवी नहीं दे पा रहे थे, जैसे ही सुई लगाते, नसों से बाहर खून बहकर आसपास के टिशूज़ में फैल जाता था और इंजेक्शन की जगह से खून निकलने लगता था। डॉक्टर ने जब यह देखा, तो वह बोला, "हमें इन हथकड़ियों को निकालना पड़ेगा!" उन्होंने पुलिस को यह भी सुझाव दिया कि आगे की जाँच के लिए मुझे म्युनिसिपल हस्पताल भेज दिया जाए, क्योंकि उसे अंदेशा था कि मुझे हृदय-रोग संबंधी कोई परेशानी हो गयी है। वे दुष्ट पुलिसवाले मेरी सहायता के लिए कुछ नहीं करना चाहते थे, लेकिन उसके बाद उन्होंने मुझे हथकड़ी नहीं लगायी। मुझे पता था कि परमेश्वर डॉक्टर के ज़रिए मेरे लिए रास्ता खोल रहा था। अगले दिन, जो अधिकारी मुझसे पूछताछ कर रहा था, उसने एक कागज़ पर ईशनिंदा और परमेश्वर को कलंकित करने वाली बातें लिखीं जिसे वो मेरे मौखिक बयान के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता था, और उसने मुझसे कहा कि मैं उस पर हस्ताक्षर करूँ। जब मैंने बयान पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, तो उसने उत्तेजित होकर मेरा हाथ पकड़ा और बयान पर मेरी उंगलियों की छाप लेने के लिए मुझसे ज़बर्दस्ती करने लगा।
9 अप्रैल की शाम को, डिविज़न डायरेक्टर और दो पुरुष पुलिस अधिकारी मुझे नज़रबंदी गृह लेकर गए। जब नज़रबंदी गृह के डॉक्टर ने देखा कि मेरा पूरा शरीर सूजा हुआ है, और मैं चल भी नहीं पा रही हूँ, मेरे बाज़ुओं में किसी तरह की कोई संवेदना नहीं है, और मेरी हालत बहुत ज़्यादा खराब है, तो उन्होंने मुझे भर्ती करने से मना कर दिया, उन्हें मेरी मौत हो जाने का अंदेशा था। उसके बाद, डिविज़न डायरेक्टर ने नज़रबंदी गृह के गवर्नर से एक घंटे तक कुछ सौदे-बाज़ी की और उससे वादा किया कि अगर मुझे कुछ हो गया, तो नज़रबंदी गृह को उसका ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। तब जाकर गवर्नर मुझे अपने संरक्षण में लेने को तैयार हुआ।
दस दिनों से भी ज़्यादा के बाद, दर्जनभर से भी अधिक दुष्ट पुलिसवालों को दूसरे सीमाप्रांतों से अस्थायी तौर पर नज़रबंदी गृह में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि वे लोग शिफ्टों में दिन-रात मुझसे पूछताछ कर सकें। किसी कैदी से पूछताछ करने की एक तय सीमा होती है, लेकिन पुलिस का कहना था कि चूँकि यह एक बड़ा और बहुत ही गंभीर किस्म का महत्वपूर्ण मामला है, इसलिए वे लोग मुझे यूँ ही अकेला नहीं छोड़ सकते। उन्हें डर था कि अगर उन्होंने मुझसे ज़्यादा समय तक पूछताछ की, तो मेरी नाज़ुक हालत को देखते हुए, कहीं कोई स्वास्थ्य संबंधी आपातस्थिति न आ जाए, इसलिए वो लोग रात को करीब एक बजे तक ही पूछताछ करते थे और उसके बाद मुझे मेरी जेल की कोठरी में वापस भेज देते थे और अगले दिन सुबह होते ही बुला लेते थे। उन्होंने लगातार तीन दिनों तक मुझसे हर दिन करीब 18 घंटे पूछताछ की। हालाँकि, उन्होंने मुझसे हर तरह से पूछताछ की, लेकिन मैंने अपनी ज़बान नहीं खोली। जब उन्होंने देखा कि उनकी सख्त चालें काम नहीं आ रही हैं, तो उन्होंने नर्म रुख अपनाया। वे मेरी चोटों के प्रति चिंता ज़ाहिर करने लगे, मुझे दवा लाकर देते, और मेरे ज़ख्मों पर मरहम लगाते। उनकी अचानक उभर कर आयी "हमदर्दी" से मैंने भी यह सोचकर सतर्कता थोड़ी कम कर दी: "अगर मैं इन्हें कलीसिया के बारे में कोई महत्वहीन बात बता दूँ, तो शायद ठीक रहेगा…।" उसी क्षण, मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन उभरे: "इसे बिगाड़ो मत, बल्कि जब तुम लोगों पर चीज़ें पड़ती हैं तो मेरे और करीब आ जाओ; मेरी ताड़ना को अपमानित करने और शैतान के कुटिल षड़यंत्रों में फँसने से बचने के लिए हर बात में अधिक सावधान और सतर्क रहो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 95")। अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतान की धूर्त चाल में फँस रही हूँ। क्या ये वही लोग नहीं हैं जो अभी कुछ दिन पहले तक मुझे यातना दे रहे थे? ये लोग अपना बर्ताव बदल सकते हैं, लेकिन इनकी दुष्ट प्रकृति नहीं बदल सकती—एक बार शैतान, हमेशा शैतान। परमेश्वर के वचनों ने मुझे इस सच्चाई से रूबरू करा दिया कि ये लोग भेड़ की खाल में भेड़िए हैं, ये लोग गुप्त मंसूबे पाले हुए हैं। एक बात और, ये लोग मुझे जितना चाहें लालच दें या गहन पूछताछ करें, मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगी। उसके फ़ौरन बाद, परमेश्वर ने उनकी कलई खोल दी; उनके एक अधिकार कैप्टन वू ने मुझसे बड़े ही भयावह अंदाज़ में पूछताछ की: "तू कलीसिया की अगुवा होते हुए भी यह नहीं जानती कि पैसा कहाँ रखा है? अगर तू नहीं बताएगी, तो पता लगाने के हमारे पास और भी तरीके हैं!" एक बूढ़ा, मरियल-सा पुलिस अधिकारी गालियों की बौछार करते हुए चिल्लाने लगा, "कमीनी, हम तुझे उंगली पकड़ा रहे हैं और तू पहुँचा पकड़ रही है! अगर तूने ज़बान नहीं खोली न, तो हम तुझे बाहर ले जाकर फिर से लटका देंगे। देखते हैं तू कैसे अब भी कलीसिया की वफादार कुतिया बनकर हमसे जानकारी छुपाती है! तेरी जैसी के साथ निपटने के लिए मेरे पास बहुत से तरीके हैं!" वो इस अंदाज़ में जितना ज़्यादा बोल रहा था, मेरा चुप रहने का निश्चय उतना ही दृढ़ हो रहा था। आखिरकार उत्तेजित होकर उसने मुझे धक्का दिया और बोला, "तेरे इस तरह के बर्ताव से तो बीस साल की सज़ा भी तेरे लिए कम है!" यह कहते हुए, कुंठित होकर वो कमरे से बाहर निकल गया। उसके बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के पब्लिक सिक्युरिटी के प्रांतीय विभाग प्रभारी से मुझसे पूछताछ के लिए एक अधिकारी आया। उसने परमेश्वर पर हमला करने और उसका विरोध करने वाली बहुत-सी बातें कहीं और वो लगातार अपने अनुभव और ज्ञान की शेखी बघारता रहा, दूसरे अधिकारी भी उसकी चापलूसी करते रहे। उसके दंभ और आत्म-संतुष्टि की बदसूरती को देखकर, सत्य को तोड़ने-मरोड़ने, अफवाह फैलाने, झूठ बोलने और झूठे आरोप मढ़ने वाली बातें सुनकर, मेरे मन में इस अधिकारी के प्रति नफरत और घृणा पैदा हो गयी। मैं उसकी शक्ल भी देखना बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, इसलिए मैं सीधे अपने सामने वाली दीवार की तरफ देख रही थी और मन ही मन उसकी हर बात का खंडन कर रही थी। सुबह का सारा वक्त उसने अपनी बकवास में निकाल दिया और खाली हो गया, तो पूछने लगा मेरी क्या राय है। मैंने अधीरता से कहा: "मैं तो अनपढ़ हूँ, इसलिए मुझे नहीं पता कि आप क्या बक-बक कर रहे हैं। वो उखड़ गया और एक सवाल-जवाब करने वाले अधिकारी से बोला, यह चिकना घड़ा है। मेरा ख्याल है, यह अपने परमेश्वर में डूबकर बर्बाद हो चुकी है!" यह कहते हुए वो कन्नी काटकर खिन्न मन से निकल गया। मैं बेहद खुश थी, मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि वो एक के बाद एक मुसीबत से निजात दिलाने में मेरा मार्गदर्शन कर रहा था।
उन दरिंदों की क्रूर यातनाओं को झेलते हुए, मैंने सीसीपी की दुष्ट पार्टी द्वारा शासित इस देश में, नारकीय जीवन का अनुभव किया जहाँ मानवीय अधिकार नाम की कोई चीज़ नहीं है। परमेश्वर के विश्वासी सीसीपी सरकार की आँखों में काँटों की तरह खटकते हैं; इन्होंने मुझे मौत के घाट उतारने के लिए हर नाकाम कोशिश कर के देख ली। लेकिन, परमेश्वर मेरा सच्चा सहारा और उद्धार है; उसने हर बार मुझे मौत के पँजों से छुड़ाया है, परमेश्वर के सच्चे प्रेम का अनुभव कराया है, और परमेश्वर के करुणामय और नेक दिल के दर्शन कराए हैं। जब दुष्ट पुलिस नज़रबंदी की मेरी कोठरी में मुझे खींचकर ले गयी, और मैंने देखा कि मेज़बान घर की मेरी बहन भी उसी कोठरी में है, तो इस दृश्य ने मेरे दिल को स्नेह से भर दिया। मैं समझ गयी कि यह परमेश्वर का आयोजन और व्यवस्था है, परमेश्वर का प्रेम मुझे खोज रहा है, परमेश्वर ने यह सब इसलिए किया है, क्योंकि उस समय, मैं अपाहिज अवस्था में थी। मेरी बाज़ुएँ और मेरे हाथ सूज गए थे, और मवाद के कारण फूल गए थे। मेरी उंगलियों में किसी प्रकार की कोई संवेदना नहीं थी, और मूली की तरह मोटी होकर कठोर हो गयी थीं। मैं अपने पैरों को हिला नहीं पाती थी, और एकदम कमज़ोर हो गयी थी, पूरा शरीर दर्द से कराहता था। छ्ह महीनों तक, मैं अपने ईंट के बिस्तर से करीब-करीब हिली भी नहीं। छ्ह महीनों के बाद ही, मेरे हाथों में थोड़ी-बहुत हरकत हुई, लेकिन फिर भी, मैं कोई चीज़ नहीं पकड़ पाती थी (आज भी, अगर मैं एक हाथ से प्लेट पकड़ने की कोशिश करूँ, तो कमज़ोरी के कारण हाथ दुखने लगता है, सुन्न पड़ जाता है, अगर मैं दूसरा हाथ इस्तेमाल न करूँ, तो प्लेट भी न पकड़ पाऊँ।) उस दौरान, मेरी बहन ने हर दिन मेरा ख्याल रखा—वो मुझे ब्रश कराती, मेरा मुँह धुलाती, निहलाती, मेरे बाल सँवारती और मुझे खाना खिलाती…। एक महीने के बाद, मेरी बहन को रिहा कर दिया गया, और मुझे सूचित किया गया कि मुझे औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया है। मेरी बहन की रिहाई के बाद, मैं अभी तक इस काबिल नहीं हो पायी थी कि अपना ध्यान रख पाऊँ, मुझे इस बात का भी पता नहीं था कि मुझे और कितने समय तक जेल में रखा जाएगा, ऐसी हालत में मुझे बहुत ही बेबसी और सूनेपन का एहसास होता था। मैं परमेश्वर को पुकारने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी: "हे परमेश्वर, मैं अपने आपको एक अपाहिज की तरह महसूस करती हूँ—ऐसा कैसे चल पाएगा? मैं तुझसे अपने दिल की रक्षा के लिए याचना करती हूँ, ताकि मैं इस स्थित पर काबू पा सकूँ।" बेहद उलझन और परेशानी के इन लम्हों में, मुझे परमेश्वर के इन वचनों से मन के अंदर से असाधारण मार्गदर्शन मिला: "क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि एक दिन परमेश्वर तुम लोगों को एक बहुत अपरिचित जगह में रखेगा? क्या तुम लोग किसी ऐसे दिन की कल्पना कर सकते हो जब मैं तुम लोगों से सब कुछ छीन लूँगा, तो तुम लोगों का क्या होगा? क्या उस दिन तुम लोगों की ऊर्जा वैसी ही होगी जैसी आज है? क्या तुम लोगों की आस्था फिर से प्रकट होगी?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "तुम लोगों को कार्य को समझना चाहिए—भ्रम में अनुसरण मत करो!")। परमेश्वर के वचनों ने किसी चमकते दीपस्तंभ की तरह मेरे दिल को रोशन कर दिया जिससे कि मैं परमेश्वर की इच्छा को समझ पायी। मैंने सोचा: "मैं जिस परिवेश का सामना कर रही हूँ, वह मेरे लिए एकदम अजनबी है। मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए परमेश्वर चाहता है कि मैं इस प्रकार के परिवेश में उसके कार्य का अनुभव करूँ। भले ही मेरी बहन चली गयी, लेकिन परमेश्वर तो निश्चित रूप से मेरे साथ है! जब मैं उस मार्ग का विचार करती हूँ जिस पर मैं चली हूँ, तो मैं देखती हूँ कि परमेश्वर ने हर कदम पर मुझे राह दिखायी है! परमेश्वर के साथ ने से, हमेशा कोई न कोई मार्ग निकल ही आता है। अपनी कायरता और आस्था में कमी के चलते, मैं अपने अनुभव में परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को समझने की अपेक्षा कैसे कर सकती हूँ?" इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की: "प्यारे परमेश्वर, मैं अपना पूरा अस्तित्व तेरे हाथों में सौंपने और तेरे आयोजनों के प्रति समर्पित होने को तैयार हूँ। भविष्य में मुझे चाहे जैसे हालात का सामना करना पड़े, लेकिन मुझे पता है, तू मेरे लिए आगे का रास्ता खोल देगा। मैं तेरे प्रति समर्पित हो जाऊँगी और फिर कभी कोई शिकायत नहीं करूँगी।" प्रार्थना करने के बाद, मुझे शांति और सुकून का एहसास हुआ, लेकिन यह बात मुझे अभी भी पता नहीं थी कि परमेश्वर की क्या योजना है या वह मुझे कैसे राह दिखाएगा। अगले दिन दोपहर को, सुधार अधिकारी एक नयी कैदी को लेकर आया। जब उस कैदी ने मेरी हालत देखी, तो वो मुझसे बिना कुछ पूछे, मेरी देखभाल करने लगी। इस घटना में, मुझे परमेश्वर की अद्भुतता और निष्ठा दिखायी दी; परमेश्वर ने मुझे त्यागा नहीं था—स्वर्ग और धरती की सभी चीज़ें, इंसान के विचारों समेत, परमेश्वर के हाथों में हैं। अगर ये परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाएँ न होतीं, तो यह महिला जिससे मैं कभी मिली नहीं, मेरे साथ इतनी भली क्यों होती? उसके बाद, मैंने और भी कई बार परमेश्वर के प्रेम के दर्शन किए। नज़रबंदी गृह से उस महिला की रिहाई के बाद, परमेश्वर एक के बाद एक महिला को मेरी देखभाल के लिए लाता रहा जिनसे मैं कभी मिली नहीं थी, और वे भी जाने से पहले मेरी देखभाल की ज़िम्मेदारी दूसरी कैदी को इस तरह सौंपती रहीं जैसे कोई रिले बैटन हो। कुछ कैदी तो ऐसी थीं जिन्होंने अपनी रिहाई के बाद, मेरे खाते में पैसे तक ट्रांसफर कर दिए। इस दौरान, हालाँकि मेरा शरीर ज़रूर थोड़ा-बहुत पीड़ित था, लेकिन मैंने इंसान के लिए परमेश्वर के निष्कपट प्रेम की प्रत्यक्ष अनुभूति की। इंसान चाहे जैसी भी परिस्थिति में फँसा हो, लेकिन परमेश्वर कभी उसका त्याग नहीं करता,बल्कि निरंतर उसकी सहायता करता रहता है। अगर इंसान परमेश्वर में अपनी आस्था न छोड़े, तो वो निश्चित रूप से परमेश्वर के कर्मों की अनुभूति करेगा।
मुझे एक साल तीन महीने नज़रबंद रखा गया और फिर मुझ पर "शी जियाओ संगठन में काम करने और उसके ज़रिए कानून-व्यवस्था में बाधा पहुँचाने" का इल्ज़ाम लगाकर तीन साल और छः महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। मुझे अपराधी सिद्ध करने के बाद, सज़ा काटने के लिए मेरा तबादला प्रांतीय महिलाओं की जेल में कर दिया गया। जेल में तो हमारे साथ और भी ज़्यादा अमानवीय व्यवहार किया जाता था। हम से हर रोज़ मज़दूरों वाला काम कराया जाता था और प्रतिदिन काम का बोझ इतना ज़्यादा होता था कि उसे किसी भी व्यक्ति के लिए पूरा करना संभव नहीं था। लेकिन अगर हम अपने काम को पूरा न कर पाते, तो हमें शारीरिक दंड दिया जाता था। हम मज़दूरी करके जो भी कमाते थे, वो सीधे-सीधे जेल के सुरक्षा गार्डों की जेबों में चला जाता था। हमें हर महीने कुछ ही युआन कथित गुज़ारा भत्ते के तौर पर दिए जाते थे। जेल वाले कहते यह थे कि श्रम के ज़रिए कैदियों को पुनर्शिक्षित किया जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि हम लोग उनके लिए सिर्फ़ पैसा कमाने की मशीन, उनके लिए बेगारी करने वाले नौकर थे। दिखाने को तो, कैदियों की सज़ा कम करने के लिए जेल के नियम कैदियों के हित में थे—कुछ शर्तों को पूरा करके, कैदी अपनी सज़ा कम करवाने के पात्र हो सकते थे। लेकिन हकीकत में, यह केवल मुखौटा था, सिर्फ़ दिखाने भर के लिए। वास्तविकता यह है, कि उनकी तथाकथित पद्धति कागज़ पर लिखे खोखले शब्दों के अलावा कुछ नहीं थी: गार्ड खुद जो हुक्म जारी कर देते थे, बस वही वहाँ का असली कानून होता था। जेल सख्ती से इस बात को देखती थी कि साल भर में सज़ायाफ़्ता कैदियों में कुल कितनी कमी आयी है, ताकि "मज़दूरों" की संख्या पर्याप्त बनी रहे और जेल के गार्डों की आमदनी में कोई कमी न आए। "सज़ा में छूट की सूची" तो श्रम उत्पादकता बढ़ाने के लिए जेलवालों की एक चाल थी। जेल में सैकड़ों कैदियों में से, "सज़ा में छूट की सूची" में दस एक कैदियों का नाम ही आ पाता था। इसलिए, सूची में अपना नाम डलवाने के लिए लोग जी-तोड़ मेहनत करते थे, एक-दूसरे के खिलाफ़ साज़िशें करते थे। लेकिन, सूची में ज़्यादातर उन्हीं कैदियों का नाम आ पाते थे, पुलिस में जिनकी पहुँच ऊपर तक थी, जिन्हें शरीरिक श्रम करना ही नहीं पड़ता था। इस बारे में कैदियों के पास अपनी नाराज़गी को अपने तक ही सीमित रखने के अलावा और कोई चारा न था।कुछ ने तो इसके विरोध में आत्महत्या ही कर ली थी, मगर ऐसा होने के बाद, जेल वाले पीड़ित के परिवारजनों को मनाने के लिए कोई भी कहानी गढ़ लेते थे, इसलिए उनकी मौत बेकार चली जाती थी। जेल के गार्ड हमें कभी इंसान समझते ही नहीं थे; अगर हमें कभी उनसे बात करनी होती थी, तो हमें थोड़ा झुककर या स्क्वाट करते हुए, उनकी ओर देखना होता था, और अगर कोई बात उन्हें नापसंद होती, तो वे लोग हमें भद्दी-भाद्दी गालियाँ देते हुए हमारा अपमान करते थे। जब कभी बड़े अधिकारी जाँच के लिए आते थे, तो हमें भी उन्हीं की तरह ढोंग करना पड़ता था, वे लोग हमें पहले ही धमकी दे देते थे कि हमें जेल के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कहनी हैं, जैसे: "हमारा खाना बहुत स्वादिष्ट होता है, गार्ड हमारा बहुत ख्याल रखते हैं, हम दिनभर में आठ घंटे से ज़्यादा काम कभी नहीं करते, हमारे लिए अक्सर मनोरंजन की व्यवस्था की जाती है…।" कभी-कभी तो ऐसे अवसरों पर, मैं इतनी गुस्सा हो जाती थी कि मेरा पूरा शरीर काँपने लगता था। ये लोग ऐसे पाखंडी थे: ये लोग साफ तौर पर आदमखोर राक्षस से ज़्यादा कुछ नहीं थे, लेकिन दिखाते ऐसे थे जैसे इनसे ज़्यादा दयालु और रहमदिल इंसान कोई है ही नहीं। कितनी कुटिल, घिनौनी और बेशर्मी की बात है! जब साढ़े तीन साल की लम्बी सज़ा काटने के बाद मैं घर लौटी, तो मुझे एक अस्थि-पिंजर के रूप में देखकर, मेरे घरवाले अपनी पीड़ा को छिपा न सके। मैं इतनी कमज़ोर और जर्जर हो गयी थी कि पहचान में भी नहीं आ रही थी। उन सबकी आँखों से झरझर आँसू बहने लगे। लेकिन हम सबके दिल परमेश्वर के प्रति आभारी थे। हमने परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि मैं अभी भी ज़िंदा थी और उसने मेरी रक्षा की ताकि मैं धरती के उस नरक से जीवित बाहर आ सकूँ।
घर वापस आने के बाद ही मुझे पता चला कि दुष्ट पुलिस घर पर आयी थी और उसने पूरे घर की तलाशी ली थी और सब-कुछ बेरहमी से तितर-बितर कर दिया था। मेरे माता-पिता परमेश्वर में आस्था रखते थे, उन्हें भी घर छोड़कर भागना पड़ा था, वे लोग सरकार के हाथों गिरफ्तारी से बचने के लिए दो साल तक इधर-उधर भागते रहे। अंतत: जब वे लोग वापस आए, तो अहाते में खरपतवार भी घर जितनी ऊँची उग आयी थी, छत का एक हिस्सा ढह चुका था, पूरे घर की सूरत भयावह हो गयी थी। पुलिस ने भी गाँव में हर जगह हमारे बारे में अफवाह फैला दी थी: उन्होंने कहा कि मैंने किसी को धोखा देकर उसके लाखों-करोड़ों रुपए हड़प लिए थे और मेरे माँ-बाप ने मेरे छोटे भाई को कॉलेज में पढ़ाने के लिए किसी को लाखों रुपए का चूना लगा दिया। दरिंदों का यह गिरोह पेशेवर अंदाज़ में सफेद झूठ बोलता था, जिसका कोई मुकाबला नहीं था! जबकि सच्चाई यह है कि मेरे माता-पिता के पलायन कर जाने के बाद, मेरे छोटे भाई को अपनी ट्यूशन फीस देने और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए अपनी स्कॉलरशिप के पैसों का इस्तेमाल और कर्ज़ उठाना पड़ा था। और तो और, उसने अपनी यात्रा का पैसा इकट्ठा करने के लिए खानदानी फसल का अनाज बेचा, नागफनी की फलियाँ बीनकर बेचीं। फिर भी उन दरिंदों ने बेशर्मी से कार्रवाई की, मेरे परिवार पर झूठे आरोप लगाए, उन अफवाहों ने आज तक हमारा पीछा नहीं छोड़ा। गाँववाले सज़ायाफ्ता राजनैतिक अपराधी और जालसाज़ मानकर आज भी मुझे ठुकराते हैं। दरिंदों का यह गिरोह जो पलक झपकते ही किसी की भी हत्या कर देता है, यह राक्षसी सरकार जो इंसानी ज़िंदगी की ज़रा भी इज़्ज़त नहीं करती, शैतान के ये गुर्गे जो लोगों को झूठे अपराधों में फँसाते हैं और इच्छानुसार आम जनता की राय बदल देते हैं—मुझे इन सबसे नफ़रत है! हालाँकि ये दरिंदे झूठे आरोपों में फँसाते हैं, लेकिन इन सबसे मैं साफ़ तौर पर सीसीपी सरकार के परमेश्वर विरोधी, विकृत, स्वर्ग की उपेक्षा करने वाली दुष्ट प्रकृति और असली घिनौने चेहरे को देख पायी। इसके अलावा, मुझे परमेश्वर के प्रेम और उद्धार की अनुभूति करने का अवसर भी मिला। शैतान हमें जितना ज़्यादा सताता है, अंत तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने का हमारा संकल्प उतना ही ज़्यादा मज़बूत होता है। अगर मुझे दरिंदों के हाथों क्रूर यातना झेलने का अनुभव न मिला होता, तो कौन जाने मेरी आत्मा का जागरण कब होता, या मुझे सचमुच शैतान से घृणा करने, हमेशा के लिए उसका त्यागने का अवसर कब मिल पाता। जब मैं परमेश्वर में अपनी आस्था के उन वर्षों को याद करती हूँ, तो पाती हूँ कि मैंने केवल परमेश्वर के उन्हीं वचनों को स्वीकार किया था, जिनमें सैद्धांतिक स्तर पर सीसीपी सरकार की शैतानी प्रकृति और सार उजागर होते हैं, लेकिन उनकी सच्ची समझ हासिल नहीं की थी। क्योंकि बचपन से ही, मेरे मन में "देशभक्तिपूर्ण शिक्षा" के सिद्धांत बैठा दिए गये थे, जिन्होंने मुझे प्रतिबंधित कर दिया था और व्यवस्थित रूप से एक खास तरह की सोच में ढाल दिया था, मैं तो यहाँ तक सोचती थी कि परमेश्वर के वचनों को बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है—यह सोचकर कि कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा सही है, हमारी सेना देश की रक्षक है, पुलिस समाज में व्याप्त असामाजिक तत्वों को सज़ा देती है, उन्हें मिटाती है और आम जनता के हितों की रक्षा करती है, मैं कभी देशभक्ति के भाव को छोड़ नहीं पायी। लेकिन उन दरिंदों के हाथों यातना का अनुभव करने के बाद ही मैं सीसीपी सरकार का असली चेहरा देख पायी; यह सरकार बेहद धोखेबाज़ और पाखंडी है, यह बरसों से चीन की जनता और पूरे विश्व की आँखों में धूल झोंकती रही है। यह लगातार "आस्था और प्रजातांत्रिक कानूनी अधिकारों की आज़ादी" को कायम रखने का दावा करती है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह धार्मिक आस्था को बुरी तरह कुचलती है। हकीकत में यह सिर्फ़ अपनी निरंकुशता को, जबरन नियंत्रण और तानाशाही को कायम रखती है। जो लोग चीन में सच्चे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उन्हें बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है, अगर उन्होंने थोड़ी-सी भी लापरवाही दिखायी, तो संभव है कि उन्हें जेल की हवा खानी पड़े। नतीजा यह होता है कि पुलिस द्वारा पकड़े जाने और गिरफ्तार किए जाने से बचने के लिए, हमें अपना सारा समय छिपने या भागते-फिरते रहने में बिताना पड़ता है। हम लोग अधिक समय तक एक जगह पर नहीं टिक सकते। हमें अपने घर में भी भजन सुनने के लिए उसकी आवाज़ धीमी रखनी पड़ती है। जैसे जब हम घरवालों के साथ परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करते हैं, तो हमें अपनी आवाज़ धीमी रखनी पड़ती है, जब हम लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, तो हमें घर के सारे खिड़की-दरवाज़े बंद करने पड़ते हैं, इस डर से कि शायद पुलिस हम पर नज़र रख रही हो, छिपकर हमारी बातें सुन रही हो और कहीं अचानक धड़धड़ाते हुए घर में न घुस आये। इसके अलावा, चीन की जेलों में, जो जितना ज़्यादा परमेश्वर में आस्था रखता है, उसे सताए जाने, धमकाए जाने, उसका उपहास उड़ाए जाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है। जबकि बदमाशों, हत्यारों, चोरों और गबन करने वालों के संबंध अक्सर पुलिस से ज़्यादा अच्छे होते हैं, वे लोग पुलिस के लिए कातिलों और मुख्य कैदियों की तरह काम करते हैं। इन सच्चाइयों ने चीन को बहुत पहले ही दुष्टों को पसंद करने और उन्हें उकसाने वाले और न्याय का गला घोंटने वाले देश के रूप में उजागर कर दिया है। जो जितना ज़्यादा दुष्ट होता है, उसे सीसीपी सरकार से उतनी ही ज़्यादा सराहना मिलती है। जबकि, जो लोग नैतिक रुप से जितने नेक हैं, वे जितना अधिक सही मार्ग पर चलते हैं, उन्हें सीसीपी सरकार उतना ही ज़्यादा दबाती है, उनका उत्पीड़न करती है। जब परमेश्वर अपना कार्य करने और इंसान को बचाने के लिए आया, तो शैतान बिल्कुल नहीं चाहता था कि हम परमेश्वर का अनुसरण करें और सही मार्ग पर चलें, इसलिए उसने मुझे रोकने और यातना देने के लिए हर मुमकिन तरीका अपनाया। हालाँकि क्रूर यातनाओं के चलते, मेरा शरीर बुरी तरह से ज़ख्मी हो गया है, लेकिन मैं यह बात समझ गयी कि मुझे ये कष्ट उठाने ही थे, क्योंकि मैं शैतान की संतान हूँ, उसके बहुत से ज़हर मेरी नसों में समाए हुए हैं, और मैं शुरू से ही उसके धोखे और उत्पीड़न की शिकार रही हूँ। चूँकि मैं शैतान के सार को और उसकी धूर्त साज़िशों को समझ नहीं पायी, इसलिए उसे परमेश्वर ने मुझे यातना देने की इजाज़त दी, ताकि कष्ट सहकर मुझे यह बात समझ में आ जाए कि जिस चीनी सरकार को मैं अपना "उद्धारक" मानती आयी हूँ, उसकी असलियत क्या है। इससे मुझे चीनी सरकार के "महानता, गौरव और ईमानदारी" के दावों के पीछे की अधम, घिनौनी और भ्रष्ट अंदरूनी कहानी समझ में आ गयी। इन्हीं सबके दौरान, मुझे परमेश्वर के बचाने वाले अनुग्रह की विशालता समझ में आयी, जिसने मुझे सत्य का अनुसरण करने, शैतान का पूरी तरह से त्याग करने और परमेश्वर की ओर अपने दिल को मोड़ने के लिए प्रेरित किया।
मेरे जीवन की सबसे मुश्किल और कष्टप्रद अवधि में, परमेश्वर का प्रेम तब भी निरंतर मेरे साथ था जब मैं कमज़ोर और पीड़ित थी। जब मैं खुद को कमज़ोर महसूस करती, तो परमेश्वर के वचन मुझे प्रबुद्ध करते, मुझे आस्था और मज़बूती देते, जिससे कि मैं रुकावटों, अंधेरों और मौत से मुक्त हो जाऊँ। जब शैतान कोई कुटिल षडयंत्र रचता, तो सही समय पर परमेश्वर का मुझे आगाह करना मुझे मेरी मदहोशी से जगा देता, जिससे कि मैं शैतान के षडयंत्रों को देख पाऊँ, ताकि मैं परमेश्वर की गवाही दे सकूँ। जब मुझे उन दुष्टात्माओं द्वारा इस हद तक क्रूरता से यातना दी जा रही थी कि मैं मौत की दुआ करने लगी थी, तो परमेश्वर के चमत्कारी आयोजनों ने ही मेरे लिए रास्ते खोले थे, उन दुष्टों के सामने मेरी ऐसी छवि बनायी जैसे कि मैं मौत के कगार पर हूँ और, ऐसा करने से, शैतानों ने मेरे साथ हिंसा करनी बंद कर दी। जब मैं पीड़ित और बेबस थी, अपनी देखभाल करने की स्थिति में नहीं थी, तो परमेश्वर छह महीनों तक एक के बाद एक कैदियों को मेरी दैनिक देखभाल के लिए भेजता रहा, जैसे एक से दूसरे को मेरी देखभाल का रिले बैटन सौंप रहा हो, उसके बाद से मेरे हाथों में थोड़ी-थोड़ी संवेदना लौटने लगी और मैं हल्का-फुल्का काम करने की स्थिति में आ पायी। इस अद्भुत अनुभव ने मेरे अंदर परमेश्वर के प्रेम और करुणा की गहरी समझ पैदा की और मैं साफ तौर पर परमेश्वर के शत्रु के रूप शैतान के सार को देख पायी। इन अनुभवों से, परमेश्वर ने मुझे जीवन की सबसे बहुमूल्य संपत्ति प्रदान की है, इस तरह शैतान का त्याग करने और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने में अपने जीवन को लगा देने के मेरे संकल्प को मज़बूत किया है। जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं: "यही समय है: मनुष्य अपनी सभी शक्तियों को लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयासों को समर्पित किया है, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अनुमति दे कि वे अपने दर्द से उठें और इस दुष्ट प्राचीन शैतान को अपनी पीठ दिखाएं" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "कार्य और प्रवेश (8)")। अब मैं कलीसिया में वापस आ गयी हूँ और उन लोगों के साथ जुड़ गयी हूँ जो अपना कर्तव्य निभाने में जुटे हैं। मैं परमेश्वर के राज्य सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करके अपना कर्तव्य निभा रही हूँ, और चाहती हूँ कि और भी ज़्यादा लोग शैतान के उत्पीड़न से बचें और परमेश्वर के शाश्वत उद्धार को प्राप्त करें।

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