परमेश्वर का अंत का दिनों का कार्य चीन में क्यों किया जा रहा है, इस्राएल में क्यों नहीं?


परमेश्वर के वचन से जवाब:
अंत के दिनों का कार्य चीन में, जो कि सबसे अंधकारमय, पिछड़े स्थानों में से एक है, क्यों किया जा रहा है? यह परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता प्रकट करने के लिए है। संक्षेप में, जितना अधिक अंधकारमय कोई स्थान होता है उतनी ही अच्छी तरह से उसकी पवित्रता प्रकट हो सकती है। सच्चाई यह है कि यह सब करना परमेश्वर के कार्य के वास्ते है। अब तुम केवल यह जानते हो कि स्वर्ग के परमेश्वर ने पृथ्वी पर अवरोहण कर लिया है और वह तुम्हारे बीच खड़ा है, और उसे तुम्हारी गंदगी और विद्रोहशीलता के खिलाफ विशिष्टता से दर्शाया गया है, ताकि तुम्हें परमेश्वर की समझ आनी शुरू हो जाए—क्या यह एक महान उत्थान नहीं है?

"वचन देह में प्रकट होता है" से "विजय के कार्य का दूसरा कदम किस प्रकार से फल देता है" से
यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, यह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था,और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र में एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण, दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए, सभी देशों में से सबसे अशुद्ध में किया जाता है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान में किया गया था, और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान में किया जाता है, और इस अंधकार को बाहर निकाल दिया जाएगा,प्रकाश को प्रकट किया जाएगा, और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब सभी जगहों में इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी, और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि एक परमेश्वर है, जो सच्चा परमेश्वर है, और हर व्यक्ति सर्वथा आश्वस्त हो जाएगा, तब समस्त जगत में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है: एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का 6000 वर्षों कार्य पूरा हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि हर अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। वैसे तो, केवल चीन में विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्तरूप है, और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं,शैतान के हैं,मांस और रक्त के हैं। ये चीनी लोग हैं जो बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, जिनका परमेश्वर के प्रति सबसे मज़बूत विरोध है, जिनकी मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, और इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूलरूप आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई भी समस्या नहीं है; मनुष्य की धारणाएँ पूरी तरह से समान हैं,और यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं, तो यह अवश्य होगा कि वे उसका विरोध करते हैं। यहूदियों ने भी क्यों परमेश्वर का विरोध किया और उसकी अवहेलना की? फ़रीसियों ने भी क्यों उसका विरोध किया? यहूदा ने क्यों यीशु के साथ विश्वासघात किया? उस समय,बहुत से अनुयायी यीशु को नहीं जानते थे। क्यों यीशु को सलीब पर चढ़ाये जाने और उसके फिर से जी उठने के बाद भी, लोगों ने फिर भी उस पर विश्वास नहीं किया? क्या मनुष्य की अवज्ञा पूरी तरह से समान नहीं है? यह केवल ऐसा है कि चीन के लोग इसका एक उदाहरण बनाए जाते हैं, और जब उन पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी तो वे एक नमूना और प्रतिदर्श बन जाएँगे, और दूसरों के लिए संदर्भ के रूप में कार्य करेंगे। मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? यह चीन के लोगों में है कि भ्रष्टाचार, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता सर्वाधिक पूर्णता से व्यक्त होते हैं और अपने सभी विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं, और दूसरी ओर, उनके जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़े हुए हैं, और उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जन्म का परिवार—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी कम है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, और इस परीक्षा के कार्य के इसकी संपूर्णता में पूरा कर दिए जाने के बाद, उसका बाद का कार्य बहुत बेहतर तरीके से होगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सकता है, तो इसके बाद का कार्य ज़ाहिर तौर पर होगा ही। एक बार कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जाता है, तो बड़ी सफलता पूर्णतः प्राप्त कर ली गई होगी, और समस्त विश्व में विजय का कार्य पूर्णतः पूरा हो गया होगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल हो जाता है, तो यह समस्त विश्व में सफलता के बराबर होगा। यही इस बात का महत्व है कि क्यों मैं तुम लोगों से एक प्रतिदर्श और नमूने के रूप में कार्यकलाप करवाता हूँ।

"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)" से

उसने सम्पूर्ण संसार की रचना की है; उसने अपनी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना को न सिर्फ़ इस्राएल में बल्कि ब्रह्माण्ड के सभी प्राणियों के साथ भी कार्यान्वित किया। इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि वे चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाईटेड किंगडम में रहते हैं या रूस में; प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सभी परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं। एक भी व्यक्ति परमेश्वर की सृष्टि के दायरे से अलग नहीं हो सकता है और एक भी व्यक्ति "आदम का वंशज" होने से बच कर भाग नहीं सकता है। वे सभी परमेश्वर की रचनाएँ हैं, और वे सभी आदम के वंशज हैं; वे आदम और हवा के भ्रष्ट किए गए वंशज भी हैं। केवल इस्राएली ही नहीं, बल्कि सभी लोग, परमेश्वर की रचना हैं; फिर भी, रचनाओं में से कुछ लोग श्रापित हैं, और कुछ धन्य हैं। इस्राएलियों के बारे में कई वांछनीय बातें हैं; परमेश्वर ने आरम्भ में इस्राएलियों के बीच कार्य किया था क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट लोग थे। उनकी तुलना में चीनी फीके पड़ते थे और उनकी बराबरी की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे। इस प्रकार, आरम्भ में परमेश्वर ने इस्राएलियों के बीच कार्य प्रारम्भ किया और दूसरे चरण का उसका कार्य केवल यहूदिया में किया गया। इसके परिणामस्वरूप, लोग कई प्रकार की धारणाएँ और नियम बनाते हैं। वास्तव में, यदि उसे मनुष्यों की धारणाओं के अनुसार कार्य करना होता, तो परमेश्वर केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता; इस प्रकार से, वह अन्यजाति के देशों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता; क्योंकि वह सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर होने के बजाय केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति देशों में महान होगा और यह कि अन्यजाति देशों में यहोवा का नाम फैल जाएगा—वे ऐसा क्यों कहते? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इसके अलावा, वह इस कार्य का विस्तार नहीं करता और वह ऐसी भविष्यवाणी नहीं करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की है, तो उसे अन्यजाति देशों में और प्रत्येक देश तथा स्थान में अपने कार्य का विस्तार करने की आवश्यकता होगी। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए, वह ऐसा ही करेगा। यह उसकी योजना है, क्योंकि वही स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु है और सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर है। इस बात की परवाह किए बिना कि वह अपना कार्य इस्राएल में करता है या सम्पूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्य होता है और सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य होता है। आज वह जो कार्य बड़े लाल अजगर—एक अन्यजाति देश में करता है—यह अभ भी सम्पूर्ण मानवता का कार्य है। पृथ्वी पर इस्राएल उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति देशों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि "यहोवा का नाम अन्यजाति देशों में महान होगा?" अन्यजाति देशों के बीच उसके कार्य का पहला चरण उस कार्य को संदर्भित करता है जिसे वह बड़े लाल अजगर के देश में कर रहा है। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस देश में कार्य करना और इन श्रापित लोगों के बीच कार्य करना विशेष रूप से मानवीय धारणाओं के विपरीत चलता है; इसलिए ये लोग बहुत ही निम्न स्तर के हैं और बिना किसी मूल्य के हैं। ये सभी वे लोग हैं जिन्हें यहोवा ने आरम्भ में त्याग दिया था। दूसरे लोगों के द्वारा लोगों को त्यागा जा सकता है, परन्तु यदि वे परमेश्वर के द्वारा त्यागे जाते हैं, तो इन लोगों की कोई हैसियत नहीं होगी, और उनका सबसे न्यूयतम मूल्य होगा। सृष्टि के एक भाग के रूप में, शैतान के द्वारा कब्ज़े में लिया जाना या अन्य लोगों के द्वारा त्याग दिया जाना, ये दोनों चीज़ें कष्टदायक हैं, परन्तु यदि सृष्टि के एक भाग को सृष्टि के प्रभु द्वारा त्याग दिया जाता है, तो यह दर्शाता है कि उसकी हैसियत बहुत ही निम्न स्तर पर है। मोआब के वंशज श्रापित थे और वे इस अल्प-विकसित देश में पैदा हुए थे; बिना संदेह के, मोआब के वंशज अंधकार के प्रभाव में सबसे निम्न हैसियत वाले लोग हैं। क्योंकि अतीत में भी इन लोगों का स्तर सबसे निम्न था, इसलिए उनके बीच किया गया कार्य मानवीय धारणाओं को चूर-चूर करने में सबसे समर्थ है, और यह कार्य छः-हजार-वर्षीय प्रबंधन की योजना के लिए सबसे लाभदायक भी है। क्योंकि उसका इनके बीच कार्य करना, मानवीय धारणाओं को तोड़ने में सबसे अधिक सक्षम है; इसलिए इसके साथ वह एक नया युग आरंभ करता है; इसके साथ वह सभी मानवीय धारणाओं को चूर-चूर कर देता है; इसके साथ वह सम्पूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य को समाप्त करता है। उसका आरम्भिक कार्य, इस्राएल के दायरे में, यहूदिया में किया गया था; उसने अन्यजाति देश में कोई भी युग-आरम्भ करने का कार्य ज़रा भी नहीं किया; उसका अंतिम चरण का कार्य न केवल अन्यजाति देशों के लोगों के बीच किया जाता है; बल्कि इससे भी अधिक, यह उन श्रापित लोगों के बीच किया जाता है। यह एक बिन्दु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे सक्षम प्रमाण है; इस प्रकार, परमेश्वर ब्रह्माण्ड में सम्पूर्ण सृष्टि का परमेश्वर "बन" जाता है और सभी चीज़ों का प्रभु, जीवन से युक्त हर चीज़ के लिए आराधना का उद्देश्य बन जाता है।

…चूँकि परमेश्वर अपनी सृष्टि के बीच कार्य करना चाहता है, इसलिए वह इसे निश्चित रूप से पूरी सफलतापूर्वक पूर्ण करेगा; वह उन लोगों के बीच कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक हैं। इसलिए, वह मनुष्यों के बीच कार्य करने में सभी परम्पराओं को तोड़ देता है; उसके लिए "श्रापित," "ताड़ित," और "धन्य" शब्द बेमतलब के हैं! यहूदी लोग काफी अच्छे हैं, और इस्राएल के चुने हुए लोग भी बुरे नहीं हैं, ये अच्छी क्षमता और मानवता वाले लोग हैं। यहोवा ने शुरूआत में अपना कार्य इनके बीच आरम्भ किया और अपना आरम्भिक कार्य किया, परन्तु यह सब बेमतलब का होता यदि अब वह उन्हें अपने विजयी होने के कार्य के लिए प्राप्तकर्ताओं के रूप में इस्तेमाल करता। यद्यपि वे भी सृष्टि का एक हिस्सा हैं और उनमें बहुत से सकारात्मक पहलू हैं, किन्तु उनके बीच इस चरण के कार्य को करना बेमतलब होगा। वह किसी को भी जीतने में असमर्थ होगा, न ही वह सम्पूर्ण सृष्टि को समझाने में समर्थ होगा। बड़े लाल अजगर के देश के लोगों तक उसके कार्य के अंतरण का यही महत्व है। यहाँ सबसे गहरा अर्थ एक युग को आरम्भ करने में, सभी नियमों और मानवीय धारणाओं को उसके तोड़ने में और सम्पूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य के उसके समापन में है। यदि उसका वर्तमान का कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, तो छः-हज़ार-वर्षीय प्रबंधन के उसके कार्य के समाप्त होने के समय तक, हर कोई यह विश्वास करता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, यह कि सिर्फ़ इस्राएल के लोग ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, यह कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के आशीष और वादे प्राप्त करने के योग्य हैं। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर बड़े लाल अजगर के अन्यजाति देश में देहधारी होता है; उसने सम्पूर्ण सृष्टि के परमेश्वर के रूप में परमेश्वर का कार्य पूर्ण कर लिया है; उसने अपना सम्पूर्ण प्रबंधन कार्य पूर्ण कर लिया है, और वह बड़े लाल अजगर के देश में अपने कार्य के सबसे मुख्य भाग को समाप्त करेगा। कार्य के इन तीनों चरणों का सबसे महत्वपूर्ण भाग है मनुष्य की मुक्ति—अर्थात्, संपूर्ण सृष्टि से सृष्टि के प्रभु की आराधना करवाना। ...परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में किए गए थे। यदि अंत के दिनों के दौरान उसके कार्य का यह चरण अभी भी इस्राएलियों के बीच किया जा रहा होता, तो न केवल सम्पूर्ण सृष्टि यह विश्वास करती कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर की सम्पूर्ण प्रबंधन योजना भी अपने वांछित प्रभाव को प्राप्त नहीं करती। जिस समय इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण पूरे किए गए थे उस दौरान, कोई भी नया कार्य कभी भी नही किया गया था और अन्यजाति देशों में नया युग आरम्भ करने का परमेश्वर का कोई भी कार्य कभी भी नहीं किया गया था। युग आरम्भ करने के कार्य का यह चरण सबसे पहले अन्यजाति देशों में किया जाता है, और इसके अलावा, सबसे पहले मोआब के वंशजों के बीच किया जाता है; इसने सम्पूर्ण युग का आरम्भ किया है। परमेश्वर ने मानवीय धारणाओं में निहित किसी भी ज्ञान को चूर-चूर कर दिया और इसमें से किसी भी बात को अस्तित्व में बने रहने की अनुमति नहीं दी है। विजय करने के अपने कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को, ज्ञान के उन पुराने मानवीय तरीकों को ध्वस्त कर दिया है। वह लोगों को देखने देता है कि परमेश्वर के साथ कोई भी नियम नहीं हैं, कि परमेश्वर के बारे में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, कि वह जो कुछ करता है उसमें वह सही है। वह सृष्टि के बीच जो भी कार्य करता है, उसके प्रति आपको पूरी तरह से समर्पित अवश्य होना चाहिए। वह जो भी कार्य करता है वह सार्थक होता है और उसकी स्वयं की इच्छा और बुद्धि के अनुसार किया जाता है और मानवीय पसंदों और धारणाओं के अनुसार नहीं किया जाता है। वह उन चीज़ों को करता है जो उसके कार्य के लिए लाभप्रद होती हैं; यदि कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभप्रद नहीं है तो वह उसे नहीं करेगा, चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो! वह कार्य करता है और अपने कार्य की सार्थकता और प्रयोजन के अनुसार अपने कार्य के लिए प्राप्तकर्ता एवं स्थान का चयन करता है। वह पुराने नियमों के मुताबिक नहीं चलता है, न ही वह पुराने सूत्रों का पालन करता है; इसके बजाय, वह कार्य की महत्ता के आधार पर अपने कार्य की योजना बनाता है; अंत में वह इसके सच्चे प्रभाव और इसके प्रत्याशित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। यदि आप इन बातों को अभी नहीं समझेंगे, तो इस कार्य का आप पर कोई प्रभाव प्राप्त नहीं होगा।

"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है" से

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