ईसाई गीत | लोगों को दंडित करने में परमेश्वर का आधार (Hindi Subtitles)


ईसाई गीत | लोगों को दंडित करने में परमेश्वर का आधार (Hindi Subtitles)

उन दिनों में, जब परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था,
तब क्या किसी मनुष्य ने परमेश्वर का विरोध किया है
इसका मापन इस बात पर आधारित था कि
क्या मनुष्य ने स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना की और उनकी खोज की।
परमेश्वर के प्रति विरोध की परिभाषा
उस समय इतनी वास्तविक नहीं थी,
परमेश्वर के प्रति विरोध की परिभाषा
उस समय इतनी वास्तविक नहीं थी,
क्योंकि तब मनुष्य परमेश्वर को समझ नहीं सकता था और
न ही उसकी छवि को या इस बात को जान सकता था
कि उन्होंने कैसे कार्य किया और कैसे वचन बोले।
मनुष्य की परमेश्वर के बारे में कोई अवधारणा नहीं थी,
और वह परमेश्वर पर अस्पष्ट रूप में विश्वास करता था,
क्योंकि वे मनुष्यों पर प्रकट नहीं हुए थे।
इस कारण, मनुष्य ने अपनी कल्पनाओं में परमेश्वर पर जैसे भी विश्वास किया,
परमेश्वर ने मनुष्य की निंदा नहीं की या मनुष्यों से अधिक कुछ नहीं माँगा,
क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को बिल्कुल भी नहीं देख सकता था।

जब परमेश्वर ने देहधारण किया और मनुष्यों के बीच काम करने आया,
तो सभी ने उन्हें देखा और उसके वचनों को सुना,
और सभी ने देह में परमेश्वर के कार्यों को देखा।
उस समय, मनुष्य की जितनी भी अवधारणाएँ थी, वे सब मानो साबुन के झाग में घुल कर बह गईं।
वे जो परमेश्वर को देहधारण करते हुए देखते हैं,
और अपने-अपने हृदयों में आज्ञाकारी हैं, उन सभी की निंदा नहीं की जाएगी,
जबकि वे जो जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं,
परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे।
ऐसे लोग ईसा-विरोधी हैं और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं।
ऐसे लोग जो परमेश्वर के बारे में अवधारणाएँ रखते हैं,
मगर खुशी से आज्ञा मानते हैं,
निंदित नहीं किए जाएँगे, निंदित नहीं किए जाएँगे।
परमेश्वर मनुष्य की उसके आशयों और क्रियाकलापों के आधार पर निंदा करते हैं,
कभी भी विचारों और मत के आधार पर नहीं।
यदि मनुष्य की ऐसे आधार पर निंदा की जाए,
तो कोई भी परमेश्वर के कुपित हाथों से
बच कर नहीं भाग पाएगा।

जो जानबूझकर देहधारी परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं,
वे उसके द्वारा की गई अवज्ञा के कारण दण्ड पाएँगे।
उनका जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करना,
परमेश्वर की उनकी अवधारणाओं से उत्पन्न होता है,
जिसका परिणाम परमेश्वर के कार्य में उनका व्यवधान है।
ऐसे व्यक्ति जानते-बूझते हुए परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध करते हैं और उसे नष्ट करते हैं।
उनकी न केवल परमेश्वर के बारे में अवधारणाएँ हैं,
बल्कि वे उन कामों को करते हैं जो परमेश्वर के कार्य में व्यवधान डालते हैं,
और यही कारण है कि ऐसे मनुष्यों के इस तरीके की निंदा की जाएगी।
वे जो परमेश्वर के कार्य में जानबूझकर व्यवधान डालने में संलग्न नहीं होते हैं,
उनकी पापियों के समान निंदा नहीं की जाएगी,
क्योंकि वे इच्छा से आज्ञापालन कर सकते हैं और
विघ्न एवं व्यवधान उत्पन्न नहीं करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों की निंदा नहीं की जाएगी।
"मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" से

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